सीआरपीसी की धारा 362 अदालत को अपना ही आदेश वापस लेने का अधिकार नहीं देती : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 362 किसी अदालत को उसके द्वारा पारित पहले के आदेश को वापस लेने का अधिकार नहीं देती। कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 362 केवल किसी लिपिकीय या अंकगणितीय भूल सुधारने के प्रावधान का उल्लेख करती है।
न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने इस मामले में आरोपियों के खिलाफ बलात्कार और बाल यौन उत्पीड़न के आरोप रद्द करने के अपने पहले के फैसले को वापस लेने के केरल हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।
न्यायमूर्ति के. हरिपाल की अध्यक्षता वाली हाईकोर्ट की पीठ ने इस मामले की शुरुआत में पीड़िता के साथ आरोपी की शादी होने के आधार पर आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी थी। बाद में न्यायाधीश ने इन आदेशों को वापस लेते हुए जियान सिंह बनाम पंजाब राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ध्यान में रखते हुए हत्या, बलात्कार जैसे जघन्य और गंभीर अपराधों को स्वीकार किया और कहा कि ऐसे अन्य अपराधों को "आरोपी और पीड़ित या पीड़ित के परिवार के बीच समझौते के बावजूद उचित रूप से रद्द नहीं किया जा सकता। इसके बाद आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
अदालत ने देखा कि सीआरपीसी की धारा 362 के मद्देनजर न्यायालय के पास एक बार पारित निर्णय और आदेश को बदलने की शक्ति नहीं है। न्यायालय केवल लिपिकीय या अंकगणितीय त्रुटि ठीक कर सकता है, लेकिन एक बार पारित निर्णय और आदेश को बदल नहीं सकता।
कोर्ट ने कहा,
"इस मामले में दिनांक 20.04.2021 को एक निर्णय और एक विस्तृत तर्कपूर्ण आदेश द्वारा हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द कर दी थी, जिसे दिनांक 28.04.2021 के आक्षेपित आदेश द्वारा वापस ले लिया गया। अदालत के पास इस प्रकार की कोई शक्ति नहीं है कि वह अपना निर्णय/आदेश वापस ले सके, सिवाय इसके कि धारा 362 सीआरपीसी के तहत वह केवल किसी भी लिपिक या अंकगणितीय त्रुटि के सुधार सकती है। सीआरपीसी की यही धारा (362) अदालत को पारित पहले के आदेश वापस लेने का अधिकार नहीं देती है और वह भी स्वत: संज्ञान के रूप में।"
पीठ ने अपील की अनुमति देते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने पहले के आदेश को गलत तरीके से वापस लिया।
केस का नाम: XXX बनाम केरल राज्य एलएल 2021 एससी 684
केस नंबर और दिनांक: सीआरए 1444/2021 | 22 नवंबर 2021
कोरम: जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस अनिरुद्ध बोस
वकील: अधिवक्ता रजित, अधिवक्ता अब्राहम मथन, अपीलकर्ता-आरोपी के लिए अधिवक्ता जस्टिन जॉर्ज, प्रतिवादी-पीड़ित के लिए अधिवक्ता आनंद कल्याणकृष्णन, राज्य के लिए एओआर जी. प्रकाश
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