गुवाहाटी हाईकोर्ट का स्पष्ट‌ीकरण, जब तक हेडमास्टर की गवाही न हो, स्कूल प्रमाण पत्र नागरिकता का सबूत नहीं

हाईकोर्ट ने यह कहते हुए रिट याचिका खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता फॉरेनर्स एक्ट की धारा 9 के अनुसार नागरिकता साबित करने में विफल रही हैं।

Update: 2020-02-26 04:30 GMT

Gauhati High Court

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने फॉरेनर्स ट्र‌िब्यूनल की एक घोषणा को बरकरार रखा है, जिसमें उसने एक महिला को विदेश करार दिया था। हाईकोर्ट ने कहा है कि नागरिकता साबित करने के लिए पेश किए गए स्कूल प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज को जारीकर्ता की गवाही से साबित किया जाना चाहिए।

हाईकोर्ट ये टिप्‍पणी 42 वर्षीय महिला साहेरा खातून की याचिका पर की है। याचिका में उन्होंने एक दिसंबर, 2018 के फॉरेनर्स ट्र‌िब्यूलन के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें असम एकॉर्ड के अनुसार विदेशी ठहराया गया था।

याचिकाकर्ता ने फॉरेनर्स ट्र‌िब्यूनल के समक्ष 24 मार्च, 1971 की कट-ऑफ डेट से पहले के अपने पूर्वजों के साथ अपना संबंध साबित करने के लिए 12 दस्तावेज पेश किए थे। ओमकार सरकार स्कूल, कटहरा के हेड मास्टर की ओर से जारी एक स्कूल प्रमाण पत्र का हवाला देते हुए उन्होंने कहा था कि उनकी जन्म तिथि 2 फरवरी, 1978 है और उनके पिता का नाम सईद अली है। उन्होंने 1966, 1970, 1977,1989, 1997, 2005 और 2017 की मतदाता सूची भी पेश की थी, जिसमें उनके अनुमानित दादा-दादी, माता-पिता और भाई-बहनों के नाम शामिल थे।

याचिकाकर्ता ने मफिदुल इस्लाम को अपने अनुमानित भाई के रूप में और जैतून न‌ेसा को अनुमा‌नित मां के रूप में मौखिक साक्ष्य के लिए पेश किया था।

हाईकोर्ट ने उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता के पास अपने अनुमानित माता-पिता और पूर्वजों के साथ संबंध प्रदर्श‌ित करने के लिए एकमात्र दस्तावेज लारूअजान और कान्हारा गांवों के गांवबुराह की ओर से जारी किए गए प्रमाण पत्र और स्कूल प्रमाणपत्र थे।

हालांकि इन दास्तावेजों की सामग्री जारीकर्ता अधिकरण ने साबित नहीं की थी, इसलिए इन्हें कोर्ट में सबूत के रूप में स्वीकार्य नहीं माना गया।

जस्टिस मनोज भूयन और जस्टिस पार्थिवज्योति सैकिया की की खंडपीठ ने कहा-

"हालांकि यह तर्क दिया जा सकता है कि चूंकि एक्ज़िबिट-9 में विचाराधीन स्कूल एक प्रांतीय स्कूल है और उस आधार पर उसका प्रमाण-पत्र साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य है, फिर भी हम कह सकते हैं कि एक दस्तावेज का स्वीकार्य होना ही मामले का अंत नहीं है। दस्तावेज की सामग्री को जारीकर्ता प्राधिकारी की कानूनी गवाही के जरिए साबित करना पड़ता है। वर्तमान मामले में स्कूल प्रमाण पत्र की सामग्री को साबित करने के लिए स्कूल हेडमास्टर का परीक्षण नहीं किया गया।"

कोर्ट ने अनुमानित भाई की गवाही को यह कहकर खारिज कर दिया कि दस्तावेजों के बिना, मौखिक साक्ष्य नागरिकता साबित नहीं कर सकते। कोर्ट ने उल्‍लेख किया कि अनुमानित मां जिरह के लिए पेश नहीं हुई ‌थी।

"फॉरेनर्स एक्‍ट, 1946 और फॉरेनर्स (ट्रिब्यूनल) आडॅर 1964, की कार्यवाही में, दस्तावेजी साक्ष्यों के बिना मौखिक गवाही निरर्थक है। मौखिक गवाही नागरिकता का सबूत नहीं है।"

कोर्ट ने यह कहते हुए रिट याचिका खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता फॉरेनर्स एक्ट की धारा 9 के अनुसार नागरिकता साबित करने में विफल रही हैं।

कोर्ट ने कहा-

"फॉरेनर्स एक्ट 1946 और फॉरनेर्स (ट्र‌िब्यनूल्स) ऑर्डर, 1964 के तहत कार्यवाही में प्राथमिक मुद्दा यह निर्धारित करना है कि कार्यवाही प्रभावित व्यक्ति विदेशी है या नहीं? चूंकि सभी तथ्य उसी की जानकारी में हैं, इसलिए साक्ष्य अधिनियम, 1872 के बावजूद, नागरिकता साबित करने का भार उसी व्यक्ति पर है। यह फॉरेनर्स एक्ट, 1946 की धारा 9 के तहत अनिवार्य है। मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता न केवल नागरिकता साबित करने में विफल रही हैं, बल्‍कि अपने अनुमानित माता-पिता और दादा से संबंध स्थापित करने में भी विफल रही हैं।"

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