लॉकडाउन के दौरान पूरा वेतन देने का MHA का सर्कुलर : सुप्रीम कोर्ट ने जूट मिल मामले में कठोर कार्रवाई न करने के आदेश को बढ़ाया, बाकी मामलों में सुनवाई टली
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 29 मार्च को पारित दिशा-निर्देशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई टाल दी जिसमें नियोक्ताओं को लॉकडाउन के दौरान कटौती के बिना श्रमिकों को पूर्ण वेतन देने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने केंद्र को जवाब दाखिल करने और दो सप्ताह बाद मामलों को सूचीबद्ध करने का भी निर्देश दिया।
पीठ ने केंद्र से कहा, "तत्परता से कार्रवाई करें, जवाब दाखिल करें।"
जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने जूट मिल्स एसोसिएशन मामले में निर्देश दिया कि 15 मई को दिए गए अंतरिम आदेश में MHA दिशा- निर्देशों के तहत मजदूरी का भुगतान न करने पर नियोक्ता के खिलाफ कठोर कार्रवाई पर रोक जारी रहेगी।
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल केंद्र के लिए पेश हुए और पीठ को सूचित किया कि अब 17 मई को सरकार द्वारा एक नई अधिसूचना पारित की गई है जिसने पहले 29 मार्च की अधिसूचना को रद्द कर दिया है।
इसके प्रकाश में, अदालत ने केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए और समय दिया और मामले को दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया।
इसके बाद, अन्य दो मामलों में, वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी (जूट मिल्स एसोसिएशन के लिए उपस्थित) ने तर्क दिया कि "जूट नियंत्रण आदेश" के तहत, सभी नियोक्ताओं को निश्चित राशि का भुगतान करना होगा।
"इस मामले को दूसरों के साथ टैग नहीं किया जा सकता है। यह एक अजीब बात है। हालांकि लॉकडाउन के दौरान हमें छूट दी गई थी, लेकिन फिर भी हमने इसे आवश्यक वस्तु के रूप में आगे बढ़ाया" - रोहतगी
कोर्ट ने इस बिंदु पर निर्देश दिया कि 15 मई का अंतरिम आदेश लागू रहेगा।
पृष्ठभूमि
15 मई को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार को 29 मार्च के केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा पारित दिशा-निर्देशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर नोटिस जारी किया था , जिसमें नियोक्ताओं को लॉकडाउन के दौरान कटौती के बिना श्रमिकों को पूर्ण वेतन देने का निर्देश दिया गया है।
हालांकि, एक मामले में, पीठ ने MHA के दिशा- निर्देशों के अनुसार मज़दूरी का भुगतान न करने के लिए नियोक्ता के खिलाफ एक सप्ताह की अवधि के लिए कठोर कार्रवाई पर रोक लगाने के लिए अंतरिम आदेश जारी किया था।
"इस बीच कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाएगी, " हैंड टूल्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन की ओर से दायर रिट याचिका में जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी कर एक सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया था।
उसी समय, इस पीठ ने अन्य मामलों में कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया और अगले हफ्ते तक जवाब दाखिल करने को कहा। इनमें पैक्स प्राइवेट लिमिटेड, लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन, द ट्विन सिटी इंडस्ट्रियल इम्प्लॉईज एसोसिएशन, राजस्थान स्टील चैंबर, इंस्ट्रूमेंट्स एंड केमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड और अन्य, चैंबर ऑफ स्मॉल इंडस्ट्री एसोसिएशन और अन्य, केरल स्टेट स्मॉल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन, फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्रीज एंड एसोसिएशन, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ मास्टर प्रिंटर्स, टेक्नोमिन कंस्ट्रक्शन लिमिटेड और गारमेंट्स एक्सपोर्ट्स मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन और अन्य द्वारा दायर की गई ऐसी ही याचिकाओं में नोटिस जारी किया था।
इन सभी याचिकाओं में गृह सचिव द्वारा 29 मार्च को जारी आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 10 (2) (एल) के तहत शक्तियों के तहत निर्देश जारी किए गए :
"सभी कर्मचारी, चाहे वह उद्योग में हों या दुकानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में, अपने श्रमिकों के वेतन का भुगतान उनके कार्य स्थलों पर, नियत तिथि पर, बिना किसी कटौती के करेंगे, लॉकडाउन में जिस अवधि के दौरान उनके प्रतिष्ठान बंद हैं।"
MHA के दिशा- निर्देशों को अनुचित और मनमाना और नियोक्ताओं के व्यवसाय और व्यापार के मौलिक अधिकार के उल्लंघन के रूप में चुनौती दी गई थी। चूंकि लॉकडाउन के दौरान संचालन पूरी तरह से बंद हो गया है, इसलिए नियोक्ताओं के लिए कर्मचारियों के पूर्ण वेतन का बोझ जारी रखना असंभव है, याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया।
याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क भी दिया कि ये दिशा- निर्देश आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत प्रदत्त शक्तियों के दायरे से परे है।
दलीलों में कहा गया कि
"आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 10 (2) (एल) की व्याख्या करना, क्योंकि लॉकडाउन अवधि के दौरान कर्मचारियों को मजदूरी का पूरा भुगतान करने के लिए निजी प्रतिष्ठान को निर्देश देने के लिए केंद्र सरकार पर शक्ति का इस्तेमाल करना मनमाना और अनुच्छेद 14, 19 (1) (जी) और भारत के संविधान के 300A का उल्लंघन है।"