बाजार मूल्य निर्धारण में अधिग्रहित भूमि की क्षमता पर विचार किया जाए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अधिग्रहित भूमि की क्षमता को बाजार मूल्य निर्धारित करने में प्राथमिक कारक के रूप में विचार किया जाए।
यह सवाल कि जमीन का संभावित मूल्य है या नहीं, यह मुख्य रूप से उसकी स्थिति, स्थल और उपयोग, जिसमें इसे लिया जाता है या जिसमें इसे लिए जा सकने की उचित क्षमता है, या इसकी आवासीय, वाणिज्यिक या औद्योगिक क्षेत्रों / संस्थाओं से निकटता पर निर्भर करता है, जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस रवींद्र भट ने उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट के, उत्तर प्रदेश के कुछ गांवों में अधिग्रहित भूमि के भूस्वामियों को मुआवजे में वृद्धि करने के फैसले खिलाफ दायर अपील की अनुमति देते हुए कहा।
अधिग्रहण भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 28 के तहत परिषद की ओर से 26.06.1982 को जारी किए गए नोटिफिकेशन से संबंधित था, जिसमें 1229.914 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया जाना था।
अदालत ने कहा कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 193 की धारा 4 (1) के तहत अधिसूचना की तिथि पर भूमि के बाजार मूल्य का अनुमान लगाने के लिए अपनाए जाने वाले मूल्यांकन के तरीके हैं: (i) विशेषज्ञों की राय, (ii) उचित समय के भीतर अधिग्रहित की गई जमीनों, या उससे लगी जमीनों के वास्तविक खरीद-फरोख्त के लेन-देन में दिया गया मूल्य, और इसी प्रकार फायदे रखने वाली जमीन की कीमत; और (iii) अधिगृहीत जमीन की वास्तविक या तुरंत संभावित लाभ की कई वर्षों की खरीद। कोर्ट को अधिग्रहण के मामलों में बाजार मूल्य का निर्धारण करने में, जिस एसिड टेस्ट अनिवार्य रूप से हमेशा अपनाना चाहिए, वह कल्पना के करतबों से बचना है और विवेकपूर्ण इच्छुक क्रेता की जगर पर खड़े होकर देखना है, पीठ ने कहा:
अधिग्रहित जमीन की क्षमता जमीन के बाजार मूल्य को निर्धारित करने के लिए ध्यान में रखा जाने वाले प्राथमिक कारकों में से एक है। संभाव्यता का तात्पर्य वास्तविकता की स्थिति में परिवर्तन या विकास की क्षमता या संभावना से है। संपत्ति का बाजार मूल्य सभी मौजूदा लाभों के साथ इसकी मौजूदा स्थितियों के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए। यह सवाल कि जमीन का संभावित मूल्य है या नहीं, यह मुख्य रूप से उसकी स्थिति, स्थल और उपयोग, जिसमें इसे लिया जाता है या जिसमें इसे लिए जा सकने की उचित क्षमता है, या इसकी आवासीय, वाणिज्यिक या औद्योगिक क्षेत्रों / संस्थाओं से निकटता पर निर्भर करता है, जैसे पानी, बिजली जैसी सुविधाओं की मौजूदगी के साथ-साथ आगे के विस्तार की संभावना। साथ ही, पास के शहर में हो रहे विकास या विकास की संभावनाओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। यह क्षेत्र की कनेक्टिविटी और समग्र विकास पर भी निर्भर करता है।
पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में रिकॉर्ड यह नहीं बताता है कि बड़े पैमाने पर विकास गतिविधियां हुईं और सबूत छोटे एरिया की बिक्री के हैं।
कोर्ट ने कहा, "औद्योगिक इकाइयों की स्थापना कब हुई और जमीन की कीमत क्या थी, इस संबंध में रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है। इसके अलावा, 23 अधिसूचना की तारीख यानी 26.6.1982 से पहले ग्राम मकनपुर में स्थित भूमि की बिक्री के कोई उदाहरण नहीं हैं।"
अदालत ने यह भी कहा कि अधिसूचना से पहले नेशनल हाइवे -24 के उत्तरी हिस्से में भूमि के अधिग्रहण पर भूमि मालिकों ने किसी अन्य बिक्री विलेख या मुआवजे का आदेश नहीं दिया है। अदालत ने यह भी कहा कि पांच साल बाद एक अधिसूचना के आधार पर निर्धारित मुआवजा उस भूमि के मुआवजे का निर्धारण करने के लिए कदम नहीं हो सकता है, जो वर्षों पहले वर्तमान अधिग्रहण का विषय है।
अपील की अनुमति देते हुए, पीठ ने कहा कि रेफरेंस कोर्ट की ओर से दिए गए बढ़े हुए मुआवजे यानी रु 120 रुपए/प्रति वर्ग गज का कोई औचित्य नहीं है।
मामला: उत्तर प्रदेश अवास एवं विकास परिषद बनाम आशा राम (डी) Thr.Lrs [CA 337 of 2021]
कोरम: जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस रविंद्र भट।
उद्धरण: LL 2021 SC 180
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