आनंद मोहन की समयपूर्व रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका: सुप्रीम कोर्ट दिवंगत आईएएस अधिकारी की पत्नी की याचिका पर 8 मई को सुनवाई करेगा
सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में गोपालगंज के जिलाधिकारी जी कृष्णैया की मॉब लिंचिंग के मामले में बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन को समय से पहले रिहाई देने के बिहार सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर 8 मई को सुनवाई करने पर सहमति जताई।
याचिका जिला मजिस्ट्रेट जी कृष्णैया की विधवा उमा कृष्णैया द्वारा दायर की गई, जिन्हें मोहन के नेतृत्व वाली भीड़ के हमले के बाद मार दिया गया था। इस अपराध के लिए मोहन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, बिहार सरकार द्वारा दी गई सजा में छूट के मद्देनजर 14 साल की कैद की सजा काटने के बाद वह 24 अप्रैल को जेल से बाहर आया।
बिहार राज्य की छूट नीति के अनुसार, जो व्यक्ति ड्यूटी पर लोक सेवकों की हत्या के लिए दोषी हैं, वे समय से पहले रिहाई के पात्र नहीं थे। हालांकि, अप्रैल में छूट नीति में संशोधन कर राज्य सरकार ने आनंद मोहन की रिहाई का मार्ग प्रशस्त करते हुए इस रोक को हटा दिया।
उमा कृष्णैया ने बिहार गृह विभाग (जेल) द्वारा 10 अप्रैल को बिहार जेल नियमावली, 2012 के नियम 481(1)(ए) में संशोधन के लिए जारी सर्कुलर को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके अनुसार 'ड्यूटी पर लोक सेवक की हत्या' के दोषी व्यक्तियों को भी छूट के पात्र ठहराया गया हैं। उन्होंने आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई को भी चुनौती दी।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष याचिकाकर्ता की वकील एडवोकेट तान्याश्री ने तत्काल लिस्टिंग के लिए याचिका का उल्लेख किया, जिस पर सीजेआई ने इसे 8 मई को सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की।
राज्य सरकार के फैसले को "बाहरी विचारों" के आधार पर लिया गया, याचिकाकर्ता का तर्क है कि जेल में कैदी के आचरण, पिछले आपराधिक पूर्ववृत्त जैसे प्रासंगिक कारकों को नजरअंदाज कर दिया गया।
आगे यह तर्क दिया गया कि मोहन की रिहाई को सुविधाजनक बनाने के लिए राज्य की छूट नीति में संशोधन सार्वजनिक नीति के विपरीत है और लोक सेवकों का मनोबल गिराने जैसा होगा। यह तर्क दिया जाता है कि अपराध के समय प्रचलित नीति को लागू किया जाना चाहिए।