मणिपुर हिंसा | सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट के उस आदेश की आलोचना की, जिसमें राज्य सरकार को मेइती जनजाति को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने का निर्देश दिया गया था
सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर राज्य में अशांति से संबंधित मामले में बुधवार को अनुसूचित जनजाति सूची में मेइती समुदाय को शामिल करने पर विचार करने के लिए राज्य सरकार को हाईकोर्ट के निर्देश के खिलाफ कुछ कड़ी टिप्पणियां कीं।
सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की इच्छा व्यक्त किया, हालांकि अंततः इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए निर्णय पर रोक लगाने वाला कोई आदेश पारित नहीं किया कि आदेश के खिलाफ खंडपीठ के समक्ष एक अपील लंबित है।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की-
"मुझे लगता है कि हमें हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगानी होगी। हमने जस्टिस मुरलीधरन को खुद को सही करने का समय दिया है, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। मेरा मतलब है कि यह बहुत स्पष्ट है कि यदि हाईकोर्ट संविधान न्यायाधीशों की पीठों का पालन नहीं करता है तो क्या करना चाहिए।"
मणिपुर हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एमवी मुरलीधरन की पीठ ने अपने आक्षेपित आदेश के माध्यम से निर्देश दिया था कि राज्य अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेइती समुदाय को शामिल करने पर विचार करेगा। उक्त आदेश मणिपुर में चल रही मौजूदा अशांति का कारण बना।
अपनी टिप्पणियों के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने का आदेश नहीं दिया।
पिछली सुनवाई के दौरान, सीजेआई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की थी कि हाईकोर्ट का फैसला कई संविधान पीठ के फैसलों के विपरीत था, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जनजातियों की सूची को बदलने के लिए न्यायिक आदेश पारित नहीं किए जा सकते, क्योंकि यह राष्ट्रपति की शक्ति है।
पक्षकारों को हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष पेश होना है
अदालत ने कहा कि चूंकि एकल न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष अपील दायर की गई है, इसलिए पीड़ित पक्ष खंडपीठ के समक्ष अपना मामला पेश कर सकते हैं।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा-
"अब जब अपील हाईकोर्ट के समक्ष दायर की गई है, तो आप उनके सामने उपस्थित हो सकते हैं।"
मणिपुर ट्राइबल फोरम दिल्ली की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने प्रस्तुत किया-"हम हाईकोर्ट के सामने पेश नहीं हो सकते। कोई कुकी वकील हाईकोर्ट के सामने पेश नहीं हो रहा है क्योंकि गांव एक किमी दूर है... यह बहुत खतरनाक है। कुकियों के लिए जाना संभव नहीं है...न पीड़ित जा सकते हैं और न ही वकील।"
गोंजाल्विस ने तब मामले में पीड़ितों की सुरक्षा के लिए सेना की मांग की थी।
इस दलील पर एसजी मेहता ने कहा- "यह वास्तव में गलत है।"
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने प्रस्तुतियां पर ध्यान देते हुए टिप्पणी की-
"आप वर्चुअल सुनवाई के माध्यम से उपस्थित हो सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश को एडजस्ट करने के लिए कहें।"
चूंकि अपील हाईकोर्ट के समक्ष लंबित थी, सुप्रीम कोर्ट ने पक्षकारों को मणिपुर हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष अपनी दलीलें पेश करने की स्वतंत्रता प्रदान की।