सुप्रीम कोर्ट ने कहा, लिखित बयान दर्ज करने के लिए अनिवार्य समय सीमा गैर-वाणिज्यिक मामलों पर लागू नहीं होती है

Update: 2020-01-21 05:52 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, लिखित बयान दर्ज करने के लिए अनिवार्य समय सीमा गैर-वाणिज्यिक मामलों पर लागू नहीं होती है

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि गैर-वाणिज्यिक मामले में लिखित बयान दर्ज करने के लिए अनिवार्य समय सीमा लागू नहीं होती है। कोर्ट ने कहा कि नॉन-कमर्शियल मुकदमे के संबंध में, समय सीमा लिखित बयान के लिए एक निर्देशिका है, जो अनिवार्य नहीं है।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबड़े, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने कहा कि गैर-वाण‌िज्‍यिक मुकदमो में लिख‌ित बयान दर्ज करने में हुए विलंब के लिए माफ‌ी देना कोर्ट का विवेका‌ध‌िकार है।

सुप्रीम कोर्ट दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ अपील पर विचार कर रहा था, जिसने ट्रायल कोर्ट के एक आदेश का अनुमोदन किया था, जिसमें अपीलकर्ता की दलील को ऑर्डर 8 रूल 1 सिव‌िल प्रोसिज़र कोर्ड 1908 के तहत लिख‌ित बयान में दर्ज हुए विलंब के कारण रद्द कर दिया गया था।

हाईकोर्ट ने ओकु टेक प्राइवेट लिमिटेड बनाम संगीत अग्रवाल और अन्य के मामले में एक को-ऑर्डिनेटेड बेंच के दिए फैसले का पालन किया था, जिसमें कहा गया था कि सम्मन के 120 दिनों के बाद लिखित बयान दर्ज करने की अवधि को बढ़ाने के संबंध में अदालतों के पास कोई विवेकाधिकार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट में अपीलकर्ता ने दलील दी थी कि ओकु टेक प्राइवेट लिमिटेड के मामले में दिए फैसला एक वाणिज्यिक मुकदमे में दिया गया फैसला था। एक गैर-वाणिज्यिक मुकदमे के संबंध में, लिखित बयान के लिए 90 दिनों की समय सीमा एक निर्देशिका मात्र है और यह अनिवार्य नहीं है, अपीलार्थी सलेम एडवोकेट बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ में के मामले में ‌दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अपना बचाव किया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ओकू टेक के मामले में कायम सिद्धांत सुप्रीम कोर्ट द्वारा SCG कॉन्ट्रैक्ट्स इंडिया प्रा लिमिटेड बनाम केएस चमनकर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रा लिमिटेड में दिए फैसले से अनुमोदित था, जो कहता है कि लिखित बयान दाखिल करने की समय सीमा वाणिज्यिक मामलों में अनिवार्य है, लेकिन यह सिद्धांत गैर-वाणिज्यिक मामलों पर लागू नहीं होगा:

"जहां तक एक गैर-वाणिज्यिक विवाद में लिखित बयान दर्ज करने के लिए समय सीमा का संबंध है, इस कोर्ट ने कई फैसलों में टिप्पणियां की है, विशेषकर हाल के एटकॉम टेक्नोलॉजी लिमिटेड बनाम वाईए चूनावाला एंड कंपनी, के फैसले में इस कोर्ट की टिप्पणी महत्वपूर्ण है। असंशो‌धित आदेश 8 नियम 1, सीपीसी एक निर्देशिका के रूप में कायम है, और किसी विलंब को रोकने के लिए न्यायालयों के विवेकाधिकार को खत्म नहीं करती है। सुप्रीम कोर्ट कहा कि ओकु टेक के फैसले में हाईकोर्ट की निर्भरता गलत थी।

सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता को एक सप्ताह के भीतर लिखित बयान दायर करने की अनुमति देकर अपील का निपटारा कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "न्यायालयों को यह कठोरता से सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी कार्यवाही उचित समय में तय हो लेकिन यह न्याय‌िक तंत्र की जिम्‍मेदारी है कि वह न्यायालय, उसके अधिकारियों और साथ ही प्रतिद्वंद्वियों के समय सीमा के सम्‍मन की संस्कृति पैदा करे।" 

निर्णय डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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