वादकर्ता इस आधार पर जज को मामले की सुनवाई से हटाने की मांग नहीं कर सकता कि उसे पसंद का निर्णय नहीं मिलेगाः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नाम पर आपत्ति जाहिर करने पर एक याचिका को रद्द करते हुए कहा कि एक वादकारी को अपनी पसंद की बेंच की मांग करते हुए अदालत को धमकाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
अदालत ने देखा कि एक वादकारी किसी जज के नाम पर, उसके मामले की सुनवाई करने से इस आधार पर आपत्ति नहीं कर सकता है कि उसे अनुकूल आदेश नहीं मिल सकता है।
मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट, बेंगलुरु के समक्ष आया यह मामला घरेलू हिंसा की शिकायत था, जिसे उन्होंने खारिज कर दिया था। इस आदेश के खिलाफ दायर अपील को अपर सत्र न्यायाधीश, बेंगलुरु ने खारिज कर दी थी। उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता की पुनरीक्षण याचिका को भी खारिज कर दिया था।
याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका दायर कर एकल न्यायाधीश के फैसले को 'शून्य' घोषित करने की प्रार्थना की। बाद में, यह रिट याचिका सुप्रीम कोर्ट को स्थानांतरित कर दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और केएम जोसेफ की खंडपीठ ने पिछले साल सितंबर में पारित अपने आदेश में कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दायर संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक रिट याचिका सुनवाई `योग्य नहीं होगी।
आवेदनकर्ता के आदेश वापस लेने के आवेदन पर जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ विचार कर रही थी, हालांकि याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत रूप से पेश होने के बाद कहा कि मामले की सुनवाई से जस्टिस चंद्रचूड़ को खुद को हटा लेना चाहिए।
आदेश को लिखने वाले जस्टिस शाह ने कहा, "हममें से कोई भी हटने का कोई वैध और अच्छा आधार नहीं देखता है। केवल इसलिए कि आदेश आवेदक के पक्ष में नहीं हो सकता है, पक्षपात की आपत्ति का आधार नहीं हो सकता। एक वादकारी को अपनी पसंद की पीठ की मांग करने के लिए अदालत को धमकाने की अनुमति नहीं दी जा सकती । इसलिए, आवेदक याचिकाकर्ता की यह प्रार्थना कि हममें से एक (डॉ धनंजय वाई चंद्रचूड़, जे ) को खुद को हटा लेना चाहिए, स्वीकार नहीं किया गया है और उक्त प्रार्थना को अस्वीकार कर दी गई है।"
यह कहते हुए हुए, पीठ ने पहले के आदेश को वापस लेने की मांग वाली अर्जी को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि आवेदक ने राहत के लिए पहले एक अन्य आवेदन दायर किया था, और उस आवेदन को खारिज कर दिया गया था।
आपत्तियों पर अन्य निर्णय
अगस्त 2019 में पारित एक फैसले में, [सीमा सपरा बनाम कोर्ट ऑन इट्स ओन मोशन] सुप्रीम कोर्ट ने देखा था कि एक न्यायाधीश अपनी इच्छा से हट सकता है, लेकिन वादकारी के कहने भर से ऐसा करने की जरूरत नहीं है।
अक्टूबर 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस अरुण मिश्रा को भूमि अधिग्रहण, पुनःस्थापन और पुनर्वास में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम की धारा 24 (2) की व्याख्या के लिए गठित संविधान पीठ के शीर्ष पद से हटने की प्रार्थना को खारिज कर दिया था।
जस्टिस मिश्रा, जिन्होंने फैसला लिखा था, कहा कि मामले की सुनवाई से नहीं हटना न्याय के हित में है और यदि वह मामले से हटते हैं तो वे एक बड़ी गलती होगी। उन्होंने यह भी कहा कि बेंच का चुनाव किसी वादकारी के कहने पर नहीं नहीं किया जा सकता है और यह संबंधित न्यायाधीश पर है कि वह हटने का का निर्णय ले।
हर्ष मंदर की याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने, जिन्होंने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को असम डिटेंशन सेंटर मामलों की सुनवाई से हटाने की मांग की थी, कहा था कि एक वादकारी को एक जज पर 'कथित पूर्वाग्रह' आधार सवाल उठाने की की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच, जिसने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को चुनौती देने वाली याचिकाओं के बैच को सुना था, ने जस्टिस जगदीश सिंह खेहर को हटाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था।
CASE: नीलम मनमोहन अट्टावर बनाम मनमोहन अट्टावर (D) LRs के माध्यम से [2021 की विविध आवेदन संया 4]
कोरम: जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह
सीटेशन: एलएल 2021 एससी 65
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