अनिश्चितता अपनाएँ, सोचें क्या आपको खुश करता है: जस्टिस सूर्यकांत

Update: 2025-09-06 07:40 GMT

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने हाल ही में युवा वकीलों को संदेश दिया कि वे बदलाव को स्वीकार करें और अपने करियर में नए रास्तों की खोज से न डरें। उन्होंने कहा कि वकीलों को यह सोचने और समझने की हिम्मत रखनी चाहिए कि वास्तव में उन्हें क्या खुश करता है।

विशाखापट्टनम स्थित दमोदरम संजीवय्या नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में बोलते हुए जस्टिस कांत ने कहा कि सफल और खुशहाल जीवन के लिए बदलाव को अपनाना ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद या उसके दौरान किसी भी व्यक्ति की पेशेवर यात्रा कभी सीधी और तयशुदा नहीं होती, बल्कि मोड़ों और आत्म-खोज से भरी होती है।

उन्होंने कहा,"अक्सर आप पर एक ही रास्ता चुनने और उसी पर जीवनभर टिके रहने का दबाव होता है। लेकिन यह सच नहीं है। सच यह है कि बहुत कम लोग हैं जिन्हें रातों-रात अपना असली मकसद मिल जाता है। जैसे-जैसे आपकी रुचियाँ और जुनून बदलते हैं, वैसे-वैसे आपका जीवन उद्देश्य भी बदलता है। यह उलझन नहीं, बल्कि विकास का संकेत है।"

सपनों का बदलना और आत्म-खोज की यात्रा

जस्टिस कांत ने कहा कि बहुत से लोग बीच रास्ते अपने सपने बदल लेते हैं—कभी किसी व्याख्यान, कभी किसी वरिष्ठ की सलाह, तो कभी किसी क्षणिक प्रेरणा से। दुनिया हमें यक़ीन दिलाती है कि हमारे पास हर सवाल का जवाब होना चाहिए, लेकिन सच्चाई यह है कि आत्म-खोज की यात्रा जीवनभर चलती है।

"महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि आपका लक्ष्य कितना कठोर और तयशुदा है, बल्कि यह है कि आपकी खोज कितनी सच्ची है।"

उन्होंने यह भी कहा कि क़ानून की पढ़ाई से लेकर पेशे तक की यात्रा में ज़रूरी है कि आप यह समझें कि सच में आपको खुशी किससे मिलती है। व्यक्ति को हमेशा अपने भीतर झाँकना चाहिए और खुद को बदलने व नए रास्तों पर चलने से नहीं डरना चाहिए।

"कुछ लोग वकालत में खुशी पाएँगे, कुछ कॉर्पोरेट क्षेत्र में, कुछ अध्यापन, लोकसेवा या किसी और क्षेत्र में। क़ानून की खूबसूरती यही है कि यह आपको बार-बार नए रूप में गढ़ने, रास्ता बदलने और फिर से शुरू करने की आज़ादी देता है। अनिश्चितता से न डरें, बल्कि उसे गले लगाएँ। और खुद से यह पूछने की हिम्मत रखें – 'क्या सच में मुझे खुश करता है?'"


अपने अनुभव साझा किए

जस्टिस कांत ने अपने जीवन के अनुभव साझा करते हुए कहा कि करियर के शुरुआती दिनों में उन्हें भी कई बार संशय और डर का सामना करना पड़ा।

• एक बार, न्यायिक सेवा की अंतिम इंटरव्यू से ठीक पहले एक हाईकोर्ट जज, जिन्होंने उनकी बहस सुनी थी, ने उन्हें सलाह दी कि वे न्यायिक अधिकारी न बनें क्योंकि उनमें हाईकोर्ट में वकील बनने की अधिक संभावना है। उन्होंने सलाह मान ली और इंटरव्यू नहीं दिया।

• सालों बाद, जब वे पहले से ही हाईकोर्ट जज थे, तब भी उन्होंने एलएलएम करने का फ़ैसला किया। न्यायिक कामकाज के साथ पढ़ाई का संतुलन कठिन लग रहा था, लेकिन यही अनिश्चितता उनके लिए विकास का ज़रिया बनी।

उन्होंने कहा,"अपने आपको सोचने, भटकने और कभी-कभी फिर से शुरू करने की आज़ादी दें। क़ानून की पढ़ाई का असली विशेषाधिकार यही है कि यह न केवल दुनिया को बदलने की ताक़त देती है, बल्कि खुद को बदलने का सामर्थ्य भी। अपने बदलते स्वरूप के प्रति सच्चे रहें और भरोसा रखें कि खुशी उसी रास्ते पर मिलेगी, जिसे आपने अभी तक नक़्शे पर नहीं बनाया है। नई खोजों में ऊर्जा लगाएँ, अवसर बनाएँ और खुले दिमाग व मज़बूत इच्छाशक्ति से आगे बढ़ें। क़ानून अनंत संभावनाएँ देता है—बस साहस रखें कोशिश करने, असफल होने, फिर दिशा बदलने और अंततः सफल होने का।"

परिवार और समुदाय का महत्व

जस्टिस कांत ने यह भी याद दिलाया कि वकीलों और नए स्नातकों के लिए परिवार और समाज के साथ रहना भी उतना ही ज़रूरी है।

"क़ानून का पेशा कभी-कभी टकराव भरा और अकेलापन देने वाला लगता है। कई बार वकील परिवार को समय देने, दोस्तियों को निभाने और खुद का ख्याल रखने को टालते रहते हैं। लेकिन असल संतोष उन लम्हों में है, जब आप अपने अपनों के बीच होते हैं। इस पेशे में संतोष अकेलेपन में नहीं, बल्कि समाज और रिश्तों में मिलता है।"

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