क्या POCSO Act जेंडर-न्यूट्रल है? सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार, महिला आरोपी के खिलाफ ट्रायल पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक नाबालिग लड़के के यौन उत्पीड़न की आरोपी महिला द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया। इस याचिका में उसने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act) के प्रावधानों को महिला आरोपियों पर लागू होने को चुनौती दी।
याचिकाकर्ता अर्चना पाटिल की ओर से सीनियर एडवोकेट हशमत पाशा ने दलील दी कि POCSO Act की धाराएँ 3(1)(ए) से 3(1)(सी) लिंग-विशिष्ट हैं और याचिकाकर्ता के मामले में लागू नहीं होतीं।
इस दलील को दर्ज करते हुए जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने आदेश दिया,
"नोटिस जारी करें। इस बीच ट्रायल कोर्ट में आगे की कार्यवाही स्थगित रहेगी।"
POCSO Act की धारा 3(1)(ए) से 3(1)(सी) बच्चों के खिलाफ प्रवेशात्मक यौन हमले को परिभाषित करती है और अपराधी को “वह” और “उसका” सर्वनामों का उपयोग करके संदर्भित करती है। POCSO Act की धारा 3 में लिखा है -
“3. प्रवेशात्मक यौन हमला।—किसी व्यक्ति को “प्रवेशात्मक यौन हमला” करने वाला कहा जाता है यदि—
(1) वह किसी भी सीमा तक अपने लिंग को किसी बच्चे की योनि, मुँह, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश कराता है या बच्चे को अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए मजबूर करता है; या
(2) वह किसी भी सीमा तक जेंडर के अलावा, किसी भी वस्तु या शरीर के किसी भाग को बच्चे की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश कराता है या बच्चे को अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए मजबूर करता है; या
(3) वह बच्चे के शरीर के किसी भाग को इस प्रकार से छेड़ता है, जिससे योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या बच्चे के शरीर के किसी भाग में प्रवेश हो जाए या बच्चे को अपने साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए मजबूर करता है; या
(4) वह बच्चे के लिंग, योनि, गुदा, मूत्रमार्ग पर अपना मुँह लगाता है या बच्चे को ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए मजबूर करता है।”
याचिका में कर्नाटक हाईकोर्ट के 18 अगस्त, 2025 के उस फैसले को चुनौती दी गई, जिसमें पाटिल के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया गया। हाईकोर्ट ने माना कि POCSO Act जेंडर रूप से न्यूट्रल है और धारा 4 और 6 के तहत अपराध किसी महिला के खिलाफ आरोपित किए जा सकते हैं।
यह मामला लड़के के माता-पिता की शिकायत से उत्पन्न हुआ है, जिसमें आरोप लगाया गया कि उनके 48 वर्षीय पड़ोसी पाटिल ने फरवरी और जून, 2020 के बीच उनके 13 वर्षीय बेटे का यौन उत्पीड़न किया था, जब वह कला की शिक्षा लेने के लिए उनके घर गया।
जांच के बाद POCSO Act की धारा 4 (प्रवेशात्मक यौन हमले के लिए दंड) और धारा 6 (प्रवेशात्मक यौन हमले के लिए दंड) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोप पत्र दायर किया गया, जिसके परिणामस्वरूप एडिशनल सिटी सिविल और सेशन जज (फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट-I), बेंगलुरु के समक्ष आपराधिक मामला दर्ज किया गया।
हाईकोर्ट में अपनी याचिका में पाटिल ने तर्क दिया कि उनके विरुद्ध लगाए गए POCSO Act के प्रावधान लिंग-विशिष्ट हैं और महिला अभियुक्तों पर लागू नहीं हो सकते।
हालांकि, हाईकोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि यह एक्ट लिंग-भेदभाव से परे सभी बच्चों की रक्षा करता है। इसके प्रावधान पुरुष और महिला अपराधियों पर समान रूप से लागू होते हैं।
हाईकोर्ट ने कहा था,
"यह अधिनियम एक प्रगतिशील अधिनियम होने के नाते बचपन की पवित्रता की रक्षा के लिए है। यह जेंडर न्यूट्रलिटी पर आधारित है और इसका लाभकारी उद्देश्य सभी बच्चों की, चाहे वे किसी भी लिंग के हों, सुरक्षा प्रदान करना है। इस प्रकार, यह अधिनियम जेंडर न्यूट्रल है। धारा 3 और 5, जो अधिनियम की धारा 4 और 6 के अंतर्गत अपराधों का आधार बनती हैं, हमले के विभिन्न रूपों का वर्णन करती हैं। हालांकि, कुछ प्रावधानों में लिंग-भेदक सर्वनामों का प्रयोग हो सकता है, लेकिन अधिनियम की प्रस्तावना और उद्देश्य ऐसे प्रयोग को समावेशी बनाते हैं। इसलिए यह पुरुष और महिला दोनों को समाहित करता है।"
Case Title – Archana Patil v. State of Karnataka & Anr.