सुनवाई के लिए स्वीकार किये जाने के बाद भी अग्रिम जमानत याचिका पर अनिश्चितकाल का स्थगन व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए हानिकारक: सुप्रीम कोर्ट
"जब अग्रिम जमानत के लिए एक आवेदन एकल न्यायाधीश के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था, जिसके साथ अंतरिम राहत के लिए एक आवेदन भी था, तो जहां तक अंतरिम प्रार्थना का संबंध है, न्यायाधीश को कोई न कोई फैसला करना चाहिए था, या सरकार को कुछ उचित समय देने के बाद उस याचिका को विचार के लिए लिया जाना चाहिए था।"
सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम सुरक्षा की मांग करने वाले एक आवेदन पर विचार किए बिना, सुनवाई के लिए स्वीकृत अग्रिम जमानत याचिका को बाद में सूचीबद्ध करने के लिए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा निर्देश दिये जाने की प्रक्रिया को अस्वीकार कर दिया है।
प्रक्रिया के तौर पर अपनाए गए तरीके को अस्वीकार करते हुए, सीजेआई एनवी रमना, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की एक पीठ ने कहा है कि जब अंतरिम राहत की अर्जी के साथ अग्रिम जमानत के लिए एक आवेदन उच्च न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था, तो जहां तक कि अंतरिम प्रार्थना का संबंध है, न्यायाधीश को कोई न कोई फैसला करना चाहिए था, या सरकार को कुछ उचित समय देने के बाद (याचिका पर) विचार करना चाहिए था।
बेंच के अनुसार, भले ही याचिका सुनवाई के लिए मंजूर कर ली गयी हो, न्यायाधीश को मामले में मांगी गई राहत की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए इसे एक विशिष्ट तिथि पर अंतिम निपटान के लिए सूचीबद्ध करना चाहिए था।
मौजूदा विशेष अनुमति याचिका में, याचिकाकर्ता की मुख्य शिकायत यह थी कि हाईकोर्ट ने उनके द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका को नियत समय में सूचीबद्ध करने के निर्देश के साथ स्वीकार किया, लेकिन जमानत याचिका के लंबित रहने के दौरान अंतरिम सुरक्षा की उनकी मांग संबंधी आई.ए. पर विचार नहीं किया, जबकि उसी प्राथमिकी के सह-अभियुक्तों को हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत के आवेदन के अंतिम निपटारे तक गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह दृष्टिकोण अपनाया कि सुनवाई के लिए स्वीकार किये जाने के बाद भी अग्रिम जमानत से संबंधित मामले में इस प्रकार का अनिश्चितकालीन स्थगन किसी व्यक्ति के मूल्यवान अधिकार के लिए हानिकारक है।
"जब अग्रिम जमानत के लिए एक याचिका को एकल न्यायाधीश के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था, जिसके साथ अंतरिम राहत के लिए एक अर्जी भी दी गयी थी, तो जहां तक अंतरिम याचिका का संबंध है, न्यायाधीश को कोई न कोई फैसला करना चाहिए था या सरकार को कुछ उचित समय देने के बाद उसे विचार के लिए लिया जाना चाहिए था। भले ही याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार की गयी थी, लेकिन न्यायाधीश को मामले में मांगी गई राहत की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए एक विशिष्ट तिथि पर अंतिम निपटान के लिए उसे सूचीबद्ध करना चाहिए था। खासकर अग्रिम जमानत से संबंधित मामले में कोई विशिष्ट तिथि देना ऐसी प्रक्रिया नहीं है जिसे स्वीकार किया जा सकता है।"
"हमारा सुविचारित मत है कि अग्रिम जमानत से संबंधित मामले में इस प्रकार का अनिश्चितकालीन स्थगन, वह भी सुनवाई के लिए अर्जी स्वीकार करने के बाद, व्यक्ति के मूल्यवान अधिकार के लिए हानिकारक है। हम यह स्पष्ट करते हैं कि हमने याचिका के गुण-दोषों पर कोई टिप्पणी नहीं की है, क्योंकि इस स्तर पर ऐसा करना हमारे लिए समय-पूर्व होगा। हालाँकि, जिस तरह से एकल न्यायाधीश ने मामले को निपटाया है, उस पर ध्यान देने के बाद, हम इस बात पर जोर देना आवश्यक समझते हैं कि जब कोई व्यक्ति न्यायालय के समक्ष होता है और वह भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामले में, तब (कोर्ट से) कम से कम यह उम्मीद की जाती है कि ऐसे व्यक्ति को उसके मामले के गुण-दोष के आधार पर कोई न कोई निर्णय दिया जाए और उसे अनिश्चितता की स्थिति में न धकेला जाए या बिना सुने उसकी निंदा न की जाए, क्योंकि यह बहुत मायने रखता है।''
मामले के गुण-दोषों के बारे में चर्चा किये बिना, बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि जब कोई व्यक्ति अदालत के सामने होता है और वह भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामले में, तो कम से कम यह उम्मीद की जाती है कि उसके मामले की योग्यता के आधार पर ऐसे व्यक्ति को कोई न कोई निर्णय दिया जाए और उसे अनिश्चितता की स्थिति में न धकेलें या जब यह मायने रखता हो, तो बिना सुने उसकी निंदा न की जाए।
इसलिए खंडपीठ ने हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश से अनुरोध किया कि वर्तमान आदेश की एक प्रति प्राप्त होने की तारीख से दो सप्ताह की अवधि के भीतर अग्रिम जमानत आवेदन का शीघ्रता से और प्राथमिकता के साथ निपटारा करें।
हाईकोर्ट को अंतरिम राहत के लिए आईए के गुण-दोषों पर विचार करने के लिए कहते हुए, बेंच ने याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा प्रदान की है और स्पष्ट किया है कि उसका यह आदेश गुण-दोषों के आधार पर एकल न्यायाधीश द्वारा लिये जाने वाले दृष्टिकोण को प्रभावित नहीं करेगा।
केस शीर्षक: राजेश सेठ बनाम छत्तीसगढ़ सरकार, एसएलपी (क्रिमिनल) 1247/2022
साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (एससी) 223