पत्नी ने सास और देवरों के खिलाफ धारा 498ए आईपीसी के तहत दर्ज कराई थी एफआईआर, सुप्रीम कोर्ट ने रद्द करते हुए कहा-क्रूरता के आरोप दूर की कौड़ी और अस्पष्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महिला की ओर से अपने ससुराल पक्ष के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 ए के तहत शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। पत्नी ने ससुराल पक्ष के खिलाफ क्रूरता के अपराध का आरोप लगाया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाही को रद्द करते हुए कहा कि आरोप "सामान्य और साधारण किस्म के" थे। महिला ने अपनी सास और दो देवरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी, जिनमें से एक देवर न्यायिक अधिकारी है।
हाईकोर्ट ने धारा 482 सीआरपीसी के तहत कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद आरोपी व्यक्तियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि मामले में कई आरोप असंभावित और असंगत थे।
उन्होंने देवर अलग-अलग शहरों में रहते थे और उनके साथ शिकायतकर्ता की बातचीत केवल त्योहारों के मौकों तक ही सीमित थी। शिकायतकर्ता लगभग दो वर्षों तक अपने वैवाहिक घर में रही। 2009 में उसने स्वेच्छा से वह घर छोड़ दिया और अपने माता-पिता के साथ रहना शुरू कर दिया।
कोर्ट ने जो सबसे चौंकाने वाला तथ्य नोट किया वह यह था कि 2013 में पति ने तलाक की मांग के लिए याचिका दायर की थी, जिसके तुरंत बाद शिकायत दर्ज कराई गई थी।
पत्नी ने न्यायिक सेवा में कार्यरत अपने के खिलाफ हाईकोर्ट और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को भी एक गुमनाम शिकायत भेजी थी, जिसे बाद में उसने स्वीकार भी किया कि शिकायत उसी ने भेजी थी।
कोर्ट ने कहा,
"वैवाहिक विवादों में पति के परिजनों के खिलाफ पत्नी की ओर शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए याचिका दायर करने के उदाहरण न तो दुर्लभ हैं और न ही हाल में पैदा हुआ चलन है।"
कोर्ट ने फैसले में ऐसे कई उदाहरणों का जिक्र किया जिनमें ये माना गया है कि ससुराल पक्ष के खिलाफ अपराध के मामलों को रद्द किया जा सकता है, अगर वह सामान्य और साधारण किस्म के हैं। (कहकशां कौसर उर्फ सोनम और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य, 2022 लाइव लॉ (एससी) 141)।
महमूद अली और अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य 2023 लाइव लॉ (एससी) 613 मामले में हाल के फैसले का भी संदर्भ दिया गया, जिसमें कहा गया था कि यदि एफआईआर/शिकायत को व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण दर्ज किया गया है तो उसे रद्द करने के लिए संबंधित परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता की ओर से अपने देवर के खिलाफ गुमनाम शिकायत दर्ज कराने का कृत्य व्यक्तिगत दुश्मनी का संकेत देने वाली परिस्थिति है। फैसले में कहा गया कि पत्नी ने 2009 में स्वेच्छा से अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया था और पति की ओर से तलाक की मांग किए जाने के जाने के तुरंत बाद 2013 में शिकायत दर्ज की गई थी।
अदालत को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि एफआईआर में उल्लेख किया गया है कि अपराध 2007 और 2013 के बीच हुए थे, हालांकि 2009 के बाद उत्पीड़न के संबंध में कोई आरोप नहीं है।
शिकायत में देवरों द्वारा उत्पीड़न के किसी विशेष उदाहरण का उल्लेख नहीं किया गया था। अदालत ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता को मैक्सी पहनने के लिए ताना देने वाला सास का कथित बयान क्रूरता नहीं माना जाएगा।
कोर्ट ने देखा,
"..उसके आरोप ज्यादातर सामान्य और साधारण किस्म के हैं, बिना किसी विशेष विवरण के कि कैसे और कब उसका सास और देवर, जो पूरी तरह से अलग-अलग शहरों में रहते थे, उन्होंने उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया।"
शिकायतकर्ता का एक अन्य आरोप यह था कि एक देवर ने अपनी शादी की तारीख पर शिकायतकर्ता और उसके माता-पिता से मांग की कि वे उसे 2.5 लाख रुपये और एक कार प्रदान करें।
कोर्ट ने इसमें कहा, "वह अपनी शादी के समय अपनी भाभी से दहेज की ऐसी मांग क्यों करेगा, भले ही वह इस तरह के गैरकानूनी काम करने के लिए इच्छुक हो, इसे समझ पाना मुश्किल है और यह संसंगत है।"
न्यायालय ने कहा कि आरोप "दूर की कौड़ी" और "असंभवना" हैं।
यह कहते हुए कि आपराधिक प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति देना "स्पष्ट अन्याय" होगा, न्यायालय ने आपराधिक मामले को रद्द कर दिया।
केस टाइटलः अभिषेक बनाम मध्य प्रदेश राज्य
साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एससी) 731; 2023INSC779