कार्यपालिका द्वारा फैसलों का उल्लंघन किये जाने से अराजकता पैदा हो जायेगी : सुप्रीम कोर्ट ने सीईआरसी में नियुक्ति नहीं किये जाने के लिए केंद्र को लगायी फटकार
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग (सीईआरसी) में विधि सदस्य की नियुक्ति न किये जाने को लेकर केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा, "हमने इस मामले में काफी संयम दिखाया है। हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे संयम का गलत अर्थ लगाया गया है।"
कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा,
"सरकार उपभोक्ताओं की मदद करने या आयोग को व्यावहारिक बनाने के प्रति रुचि दिखाती नहीं प्रतीत होती है। मामले के निपटारे के लिए नियुक्तियां नहीं किये जाने के कारण अन्य ट्रिब्यूनल्स और आयोगों के कामकाज को देखकर यह कोई असामान्य परिदृश्य नजर नहीं आता।''
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में व्यवस्था दी थी कि आयोग में कानून के क्षेत्र से एक सदस्य होना अनिवार्य होगा, जो या तो न्यायिक अधिकारी के पद पर रहा हो या कानूनी पेशे में व्यापक अनुभव रखने वाला व्यक्ति हो, जिसके पास हाईकोर्ट के न्यायाधीश अथवा जिला जज नियुक्त किये जाने की पर्याप्त योग्यता हो। आयोग में विधि सदस्य नियुक्त न किये जाने के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की गयी थी। कोर्ट ने प्रथम दृष्ट्या जान बूझकर आदेश की अवज्ञा किये जाने के मद्देनजर इससे पहले केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग के दो सदस्यों को तब तक छुट्टी पर जाने का निेर्देश दिया था, जब तक आयोग में एक विधि सदस्य की नियुक्ति नहीं हो जाती।
बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय भी शामिल हैं, ने कहा कि सरकार उपभोक्ताओं या आयोग के हितों के बारे में चिंतित नहीं दिख रही है।
बेंच ने कहा :
"जिस तरीके से सरकार न्यायालय के फैसले के खिलाफ कार्य कर रही है, उसके प्रति हमें नाराजगी व्यक्त करनी होगी। कानून पारित करना विधायिका का काम है और कानून के प्रावधानों को लागू करना कार्यपालिका का। न्यायपालिका के पास कानून की व्याख्या करने का काम है। संबंधित कानून की व्याख्या हमारे फैसलों द्वारा की गयी थी। कार्यपालिका से न तो इस कोर्ट के फैसले के उल्लंघन की अपेक्षा की जा सकती है, न ही इसकी अनुमति दी जा सकती है। यह अराजकता को निमंत्रण देगा। लोकतंत्र के इन तीनों स्तंभों के परस्पर सम्मान के लिए जरूरी है कि वे एक-दूसरे की भूमिका और कार्यप्रणाली का सम्मान करें।"
कोर्ट ने वह अनुरोध भी ठुकरा दिया जिसमें उपभोक्ताओं के हित प्रभावित होने को आधार बनाकर फैसलों की घोषणा पर लगी रोक हटाने की मांग की गयी थी।
कोर्ट ने कहा :
"समय बीतने के बावजूद सरकार नींद से जागती प्रतीत नहीं हो रही है और तब से लेकर अब तक चार माह से अधिक बीत चुके हैँ। हम उपभोक्ताओं की मदद कर पाने में अक्षम हैं क्योंकि सरकार उपभोक्ताओं की मदद करने या आयोग को प्रभावी बनाने में दिलचस्पी नहीं ले रही है। मामले के निपटारे के लिए नियुक्तियां नहीं किये जाने के कारण अन्य ट्रिब्यूनल्स और आयोगों के कामकाज को देखकर यह कोई असामान्य परिदृश्य नजर नहीं आता।"
कोर्ट ने हालांकि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल का आग्रह मानकर मामले की सुनवाई 20 जनवरी 2021 तक के लिए स्थगित कर दी।
केस : के के अग्रवाल बनाम संजीव नंदन सहाय [अवमानना याचिका (सिविल) नंबर 429 / 2020]