''अवैध प्रवासियों को निकालने के लिए पूरे भारत में लागू की जाए एनआरसी, मतदाता सूची संशोधित करने के लिए केंद्र सरकार को दिया जाए निर्देश" : सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर
सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर मांग की गई है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह भारत में अवैध रूप से रह रहे उन सभी विदेशियों के खिलाफ कार्रवाई करें, जो फाॅरनर एक्ट 1946 और 1 मार्च, 1947 व 19 जुलाई 1948 की कट ऑफ डेट का उल्लंघन करते हुए यहां रह रहे हैं।
याचिका में नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 14-ए को लागू करने के लिए नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) को पूरे राष्ट्र में लागू करने की मांग की गई है। कहा गया है कि ''केंद्र सरकार उक्त प्रावधान को लागू करने में विफल रही है, जिसके कारण देश के नागरिकों को जबरदस्त समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।''
वकील विष्णु शंकर जैन की ओर से छह याचिकाकर्ताओं के माध्यम से यह याचिका दायर की गई है। जिसे अधिवक्ता हरि शंकर जैन द्वारा तैयार किया गया है। याचिका में मांग की गई है कि पूरे भारत में एनआरसी को लागू करने की दिशा में लगातार काम करते हुए ''अवैध विदेशी प्रवासियों'' के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
याचिका में कहा गया है कि
''संसद और राज्य विधानसभा चुनावों की मतदाता सूचियों की जाँच की जानी चाहिए और इनमें से विदेशी नागरिकों के नामों को हटाया जाना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 142 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अनुसार सरकार को मतदाता सूची में एक नागरिक का नाम शामिल करने से पहले उसकी राष्ट्रीयता को चेक करना चाहिए।''
तर्क दिया गया है कि सरकार ने नागरिकता अधिनियम 1955 के खंड 154ए को लागू नहीं किया है। जिस कारण राष्ट्र को ''बड़ी समस्याओं'' का सामना करना पड़ रहा है। याचिका में दलील दी गई है कि देश में लाखों लोग अवैध रूप से रहते हैं और जो देश की एकता व संप्रभुता के लिए खतरा हैं।
याचिका में यह भी कहा गया है कि-
''अधिनियम 1955 के खंड 154ए के अनुसार यह केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि वह अपने देश के नागरिकों का पंजीकरण नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर में करें। परंतु अभी तक सरकार ने इस कर्तव्य को नहीं निभाया है। जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्र को बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। देश में लाखों लोग अवैध रूप से रहते हैं। यह राष्ट्र की एकता और संप्रभुता को खतरे में डालता है। इसके अलावा, ये लोग करों का भुगतान किए बिना ही सुख के साधानों और सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं।''
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि चुनाव आयोग ने अवैध विदेशियों को अपना नाम मतदाता सूची में शामिल करने की अनुमति दी है, जिसके कारण उन्होंने ''अवैध तरीके और साधनों'' के माध्यम से आधार कार्ड, पैन कार्ड और राशन कार्ड आदि प्राप्त कर लिए हैं। ''इन जाली दस्तावेजों के सहारे इन लोगों ने रोजगार प्राप्त करते हुए अन्य सरकारी योजनाओं के सभी लाभ भी प्राप्त कर लिए हैं।''
वहीं देश में अवैध प्रवासियों की मौजूदगी ने देश में काफी तनाव पैदा कर दिया है। जिसमें राजनीतिक, आर्थिक, जातीय और सांप्रदायिक तनाव शामिल हैं। वे ''भारतीय नागरिकों को उनकी आजीविका से वंचित करते हुए अर्धकुशल और कुशल,दोनों तरह की नौकरियों तो छीन ही रहे हैं,इसके अलावा देश में कानून और व्यवस्था की समस्या भी पैदा कर रहे हैं।''
यह भी कहा गया है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के प्रवासियों का भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करना एक ''उपद्रवी या हानिप्रद'' कृत्य है,जो भारत की जनसांख्यिकी को बदलने के इरादे से किया जा रहा है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इस समय अप्रवासी काफी सारे निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव के परिणामों को प्रभावित करने की स्थिति में हैं,विशेष रूप से उत्तर-पूर्व में। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि यह समस्या सिर्फ असम और पश्चिम बंगाल तक ही सीमित नहीं है बल्कि पूरे भारत में है।
इस प्रकार, याचिका में कहा गया है कि-
''यह विचित्र है कि केंद्र सरकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 6 और 7 में निहित प्रावधानों को लागू करने में विफल रही है और नागरिकता अधिनियम की धारा 14-ए के जनादेश को भी कार्यान्वयन नहीं करवा पा रही है, हालांकि यह 3 दिसम्बर 2004 को लागू हो गई थी। केंद्र सरकार की इस सुस्ती के कारण राष्ट्र, राज्यों और देश के नागरिकों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इस तरह की निष्क्रियता ने बाहरी आक्रामकता के चलते आंतरिक अशांति की स्थिति पैदा कर दी है, जबकि भारत सरकार का संविधान के अनुच्छेद 355 के तहत यह संवैधानिक दायित्व है ... एक सरकार का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य यह है कि सभी विदेशी मनुष्यों को बाहर निकाले और देश को विदेशी अवैध प्रवासियों से बचाने के लिए कड़ी कार्रवाई करें।''
इन सभी तथ्यों को देखते हुए याचिका में कोर्ट से आग्रह किया गया है कि वह केंद्र सरकार को निर्देश जारी करें ताकि भारत के प्रत्येक नागरिक को पहचान पत्र जारी किया जा सके। वहीं ईसी को भी निर्देश दिया जाए कि वह संसद और राज्य की विधानसभाओं के चुनावों के लिए बनाई गई मतदाता सूची को संशोधित करें। इन मतदाता सूची से विदेशियों और उन लोगों के नाम हटाए जाएं जो भारत के नागरिक नहीं हैं।
इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की है कि शीर्ष न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए जीओआई को निर्देश दें कि वह ऐसे दिशा-निर्देश तैयार करें,जिनके तहत संसद और राज्य की विधानसभाओं के चुनाव के लिए तैयार मतदाता सूची में किसी व्यक्ति का नाम मतदाता के रूप में शामिल करने से पहले उसकी नागरिकता निर्धारित की जा सके या चेक की जा सके।''