दिल्ली प्रदूषण: सुप्रीम कोर्ट ने वायु गुणवत्ता आयोग से निर्माण प्रतिबंध हटाने, औद्योगिक प्रतिबंधों में ढील देने पर फैसला करने को कहा

Update: 2021-12-10 08:28 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एक सप्ताह के भीतर निर्माण गतिविधियों और औद्योगिक गतिविधियों पर प्रतिबंध हटाने पर निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी।

कोर्ट ने आदेश दिया,

"हम आयोग को विभिन्न उद्योगों और संगठनों के अनुरोधों की जांच करने का निर्देश देते हैं, जो हमारे आदेशों के आधार पर या अन्यथा उनके परिपत्रों के अनुसार लगाए गए शर्तों में छूट के संबंध में हैं। हमें उम्मीद है कि आयोग एक सप्ताह में इस पर गौर करेगा ।"

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमाना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने दिल्‍ली की वायु गुणवत्ता पर ध्यान देते हुए बिल्डर्स फोरम, चीनी, चावल और कागज़ मिल आदि के ऑपरेटरों की ओर से दायर हस्तक्षेप आवेदनों का निस्तारण करते हुए ये टिप्पणी की।

कोर्ट ने हालांकि निर्माण प्रतिबंध के दौरान श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी के भुगतान से संबंधित एक आवेदन को बरकरार रखा है। कोर्ट ने राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों को निर्माण प्रतिबंध के दौरान मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी के भुगतान के निर्देश के आदेश के अनुपालन को दर्शाने वाले हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया है।

पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, सीनियर एडवोकेट विकास सिंह (याचिकाकर्ता आदित्य दुबे के लिए), सीनियर एडवोकेट डॉ एएम सिंघवी (दिल्ली सरकार के लिए), सीनियर एडवोकेट रंजीत कुमार (यूपी राज्य के लिए) और सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, सीए सुंदरम, संदीप सेठी और पिनाकी मिश्रा को सुना। 

एक मध्यस्थ संगठन की ओर से पेश अधिवक्ता शील त्रेहन ने मजदूरों को मजदूरी का भुगतान न करने के मुद्दे पर प्रकाश डाला।

पिछली सुनवाई पर (3 दिसंबर 2021) को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा लिए गए निर्णयों पर ध्यान दिया था और वायु प्रदूषण से निपटने के लिए केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को इसे लागू करने का निर्देश दिया था।

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए जारी निर्देशों को लागू नहीं करने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की कड़ी आलोचनात्मक टिप्पणियों के बाद आयोग ने सुनवाई से एक दिन पहले कई फैसले लिए थे।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आयोग द्वारा लिए गए निर्णयों से अवगत कराया था, जिसमें चूक करने वाली संस्थाओं के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए "आपातकालीन कार्य बल" और "फ्लाइंग स्क्वॉड" का गठन शामिल है। आयोग ने उन उद्योगों के कामकाज को भी सीमित करने का फैसला किया, जो पीएनजी या क्लीनर ईंधन का उपयोग नहीं कर रहे हैं, सप्ताहांत पर 8 घंटे तक और सप्ताहांत पर उन्हें बंद करने का फैसला किया।

अदालत ने दिल्ली सरकार द्वारा दायर हलफनामे को भी ध्यान में रखा, जिसमें अगले आदेश तक स्कूलों के फिजिकल कामकाज को बंद करने के लिए उसके द्वारा लिए गए निर्णय का उल्लेख किया गया था।

चीफ ज‌स्टिस एनवी रमाना, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ अधिवक्ता निखिल जैन के माध्यम से दायर रिट याचिका आदित्य दुबे बनाम यूनियन ऑफ इंडिया की सुनवाई कर रही थी, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में बिगड़ती वायु गुणवत्ता की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए आपातकालीन कदम उठाने की मांग की गई थी।

24 नवंबर को राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता संकट को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक दिल्ली-एनसीआर में निर्माण गतिविधियों पर फिर से प्रतिबंध लगा दिया था।

दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने पहले हवा की गुणवत्ता में मामूली सुधार को ध्यान में रखते हुए 22 नवंबर से प्रतिबंध हटाने का फैसला किया था।  अदालत ने हालांकि निर्माण से संबंधित गैर-प्रदूषणकारी कार्यों जैसे बढ़ईगीरी, बिजली के काम, नलसाजी और आंतरिक सजावट को जारी रखने की अनुमति दी थी। 

केस शीर्षक: आदित्य दुबे (नाबालिग) और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य

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