अपराध की प्रकृति की परवाह किए बिना हर मामले में जमानत के लिए COVID कोई रामबाण नहीं : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-05-22 09:24 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि अपराध की प्रकृति और गंभीरता की परवाह किए बिना सभी मामलों में कोविड ​​​​की आशंका को जमानत के आधार के रूप में उद्धृत नहीं किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की अवकाश पीठ पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के अप्रैल के आदेश के खिलाफ एक एसएलपी पर विचार कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता, एक होटल मालिक को धारा 3 (वेश्यालय खोले की सजा या परिसर को वेश्यालय के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति देना), 4 (वेश्यावृत्ति की कमाई पर जीने के लिए सजा) और 5 (वेश्यावृत्ति के लिए व्यक्ति को खरीदना, प्रेरित करना या लेना) अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियमके तहत एक प्राथमिकी के संबंध में अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया था।

उच्च न्यायालय के समक्ष, राज्य के वकील ने संबंधित पुलिस निरीक्षक के निर्देश पर उच्च न्यायालय को अवगत कराया था कि पुलिस को गुप्त सूचना मिली थी कि याचिकाकर्ता अनैतिक तस्करी में लिप्त था। इसके बाद जब उसके होटल पर छापा मारा गया तो वह भागने में सफल रहा। होटल की तलाशी लेने पर दो लड़कियों सहित 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जो उज्बेकिस्तान की नागरिक थीं। यह आग्रह किया गया था कि याचिकाकर्ता की हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता है ताकि पूरे गिरोह का पता लगाया जा सके जिनके साथ याचिकाकर्ता की अनैतिक तस्करी के धंधे में सांठगांठ हो सकती है। इसे देखते हुए हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी।

शुक्रवार को याचिकाकर्ता के वकील ने अवकाश पीठ के समक्ष दलील दी,

"योर लॉर्डशिप, जब पुलिस ने होटल में छापा मारा था तब परिसर से कोई महिला नहीं पकड़ी गई थी। केवल दो महिलाओं को पकड़ा गया था जो मेरी पत्नी और मेरे होटल में काम करने वाली एक रिसेप्शनिस्ट थीं। हाईकोर्ट ने मुझे केवल इस आधार पर जमानत देने से इनकार कर दिया कि लोक अभियोजक ने सुनवाई के दौरान बयान दिया कि 2 उज्बेकिस्तानी लड़कियों को होटल से बरामद किया गया था। लेकिन रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं है, प्राथमिकी में भी कुछ भी दिखाने के लिए नहीं है कि उक्त लड़कियों की बरामदगी..."

उन्होंने प्रार्थना की,

"योर लॉर्डशिप, ये COVID समय हैं। कृपया मुझे अग्रिम जमानत दें।"

न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने व्यक्त किया,

"COVID यहां भी आता है?! एक 3, 4, 5 मामले में (PITA, 1956 की धारा 3, 4, 5)?! आपके परिसर में 15 ग्राहक कहां पाए गए? कोरोना हर चीज के लिए रामबाण है? और आप अग्रिम जमानत की मांग कर रहे हैं!" 

जज ने वकील से कहा,

"या तो आप तुरंत सरेंडर कर दें या फिर हम एसएसपी को आपको गिरफ्तार करने का निर्देश देंगे!"

इसके बाद पीठ ने अपने आदेश को आगे बढ़ाया-

"हमें इस मामले में PITA , 1956 की धारा 3, 4 और 5 के तहत अपराधों से संबंधित याचिकाकर्ता की अग्रिम जमानत देने की प्रार्थना को खारिज करने वाले आदेश में किसी भी हस्तक्षेप पर विचार करने का कोई कारण नहीं लगता है, विशेष रूप से, जहां यह रिकॉर्ड में आया है कि याचिकाकर्ता उस परिसर का मालिक है जहां छापा मारा गया था।"

पीठ ने आगे निर्देश दिया कि इसके अलावा,

"आरोप की प्रकृति और समग्र परिस्थितियों को देखते हुए हमारा स्पष्ट रूप से यह विचार है कि याचिकाकर्ता को संबंधित न्यायालय या जांच अधिकारी के समक्ष कल यानी 22.05.2021 तक तुरंत आत्मसमर्पण कर देना चाहिए।"

पीठ ने निर्देश दिया,

"यदि याचिकाकर्ता ऐसा करने में विफल रहता है, तो वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, जिला - एसएएस मोहाली, पंजाब सुनिश्चित करेंगे कि याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी के लिए उचित कदम उठाए जाएं।"

पीठ ने एसएसपी को शुक्रवार से एक सप्ताह के भीतर अनुपालन रिपोर्ट शीर्ष अदालत को सौंपने को भी कहा।

गौरतलब है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में फैसला सुनाया कि वर्तमान महामारी जैसे कारणों से मौत की आशंका अग्रिम जमानत देने के लिए एक वैध आधार है।

हाईकोर्ट ने यहां तक ​​कहा कि,

"आरोपियों के खिलाफ आरोप गंभीर हो सकते हैं लेकिन उनके पक्ष में बेगुनाही का अनुमान केवल आरोप के आधार पर दूर नहीं किया जा सकता है"।

"एक आरोपी जिस पर मुकदमा नहीं चलाया गया है और यहां तक ​​कि पुलिस जांच भी पूरी नहीं हुई है, उसे मौजूदा परिस्थितियों में आत्मसमर्पण करने और नियमित जमानत प्राप्त करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। यहां तक ​​​​कि उन मामलों में जहां पुलिस रिपोर्ट धारा 173 (2) सीआरपीसी के तहत प्रस्तुत की गई है , और उसके खिलाफ समन / वारंट जारी किए गए हैं, ऐसे आरोपी को भी संरक्षित करने की आवश्यकता है, " हाईकोर्ट ने कहा है। हाईकोर्ट ने यहां तक ​​​​कहा कि "अग्रिम जमानत देने के लिए स्थापित मानदंड जैसे प्रकृति और आरोप की गंभीरता, आदि अब देश की वर्तमान स्थिति के कारण महत्व खो चुके हैं।"

उक्त मामले में, हाईकोर्ट ने एक आरोपी को धारा 420, 467 (जिसमें आजीवन कारावास की सजा भी है), 468, 471, 506, 406 आईपीसी के तहत अग्रिम जमानत दी।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इस आदेश को चुनौती देते हुए यूपी राज्य ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। एसजी तुषार मेहता ने मंगलवार को न्यायमूर्ति विनीत सरन की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि आरोपी एक ठग है और उसे केवल COVID ​​​​-19 के आधार पर अग्रिम जमानत दी गई थी। बेंच अगले हफ्ते मामले की सुनवाई के लिए तैयार हो गई।

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