हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के रूप में मेधावी महिला वकीलों पर विचार किया जाएः सुप्रीम कोर्ट महिला वकील एसोसिएशन पहुंची सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-04-06 13:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट वुमन लाॅयर एसोसिएशन (एससीडब्ल्यूएलए) ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दायर कर विभिन्न हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाली मेधावी महिला वकीलों पर विचार करने के लिए निर्देश देने की मांग की है।

इस आवेदन के माध्यम से एससीडब्ल्यूएलए ने मैसर्स पीएलआर प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड और अन्य के मामले में पक्षकार बनाए जाने की मांग की है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट न्यायाधीश के पदों की रिक्तियों के मुद्दे पर विचार कर रही है।

आवेदन में, एसोसिएशन ने कहा कि उच्च न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व ''निकृष्ट रूप से कम'' है। अब तक सुप्रीम कोर्ट में केवल 8 महिला जजों की नियुक्ति की गई है। भारत की महिला प्रधान न्यायाधीश कभी नहीं बनी है। देश के 25 उच्च न्यायालयों में से केवल एक महिला मुख्य न्यायाधीश (तेलंगाना हाईकोर्ट में सीजे हेमा कोहली) है। हाईकोर्ट के 661 जजों में से केवल 73 (लगभग 11.04 प्रतिशत) महिलाएं हैं। मणिपुर, मेघालय, पटना, त्रिपुरा और उत्तराखंड जैसे पाँच हाईकोर्ट में एक भी महिला न्यायाधीश नहीं है।

संविधान के आर्टिकल 14 और 15 (3) का हवाला देते हुए, एसोसिएशन ने कहा कि महिलाओं की योग्यता को उचित महत्व देते हुए उच्च न्यायपालिका में महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व होना चाहिए।

आवेदन में कहा गया है कि,

''.. एसोसिएशन को भारतीय उच्च न्यायपालिका में महिलाओं के पर्याप्त प्रतिनिधित्व के बारे में गहरी चिंता है। न्याय वितरण प्रणाली में महिलाओं की भागीदारी सामाजिक प्रगति और लैंगिक समानता के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है जो इन कार्डिनल/आधारभूत मुद्दों के प्रति देश की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।''

आवेदन में न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा द्वारा सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त होने के अवसर पर दिए गए विदाई भाषण को संदर्भित किया गया है, जहां उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि बेंच में लिंग समानता होने पर समाज को लाभ होता है।

भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल द्वारा दिए उस भाषण का भी संदर्भ दिया गया है,जिसमें उन्होंने बेंच में लैंगिक असमानता के बारे में चिंता व्यक्त की थी।

एजी ने कहा था कि,

''महिलाओं के प्रतिनिधित्व में सुधार यौन हिंसा से जुड़े मामलों में अधिक संतुलन बनाने और सशक्त दृष्टिकोण की दिशा में एक लंबा रास्ता तय कर सकता है।''

इस पृष्ठभूमि में, एसोसिएशन ने सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध किया है कि वह सुप्रीम कोर्ट महिला वकील एसोसिएशन की ओर से दिए गए सुझावों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट में न्यायाधीशों (जिन हाईकोर्ट में महिला न्यायाधीशों का प्रतिनिधित्व कम है) के रूप में नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाली मेधावी महिला वकीलों के नामों पर विचार करे। वहीं उच्च न्यायपालिका में महिलाओं के पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए दिशा-निर्देश भी दिए जाएं।

एसोसिएशन ने मांग की है कि यूनियन आॅफ इंडिया को निर्देश दिया जाए कि वह महिला न्यायाधीशों पर विचार करने लिए न्यायिक नियुक्ति के मेमोरंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) में प्रावधान शामिल करेे और उच्चतर न्यायपालिका में महिला न्यायाधीशों को शामिल करने की प्रक्रिया को तेज करे।

आवेदन का प्रारूप स्नेहा कलिता (एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड) ने तैयार किया है और वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी पावनी और शोभा गुप्ता ने इसे अंतिम रूप दिया है। एडवोकेट ब्रिस्टी रेखा महंत द्वारा शोध किया गया है।

25 मार्च को, इस मामले पर विचार करते हुए सीजेआई एसए बोबड़े, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने अटार्नी जनरल से पूछा था कि लंबित कॉलेजियम सिफारिशों को तय लेने के लिए कितने समय की आवश्यकता होगी?

दिसंबर 2019 में जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की खंडपीठ ने मामले में एक आदेश पारित किया था, जिसमें कहा गया था कि हाईकोर्ट कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित व्यक्ति, जिसे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम और सरकार द्वारा अनुमोदित किया जाता है, उसे 6 महीने के अंदर नियुक्त किया जाना चाहिए।

2019 में हुई मामले की एक अन्य सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की थी कि हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के लगभग 40 प्रतिशत स्वीकृत पद खाली पड़े हैं, और अटार्नी जनरल से नियुक्ति प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए कदम उठाने का आग्रह किया था।

नवम्बर 2019 में दिए गए आदेश के तहत पीठ ने कहा था कि,

''... यह निर्धारित किया गया है कि एक प्रयास यह किया जाना चाहिए कि रिक्तियों के लिए सिफारिशें छह महीने पहले भेजी जानी चाहिए। यह एक ऐसा पहलू है जिस पर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को ध्यान देना होगा। छह महीने की यह अवधि इस अपेक्षा से उत्पन्न होती है कि उक्त अवधि सिफारिश के चरण से लेकर नियुक्ति तक नामों को अंतिम रूप देने के लिए पर्याप्त होगी। इस प्रकार, छह महीने पहले नाम भेजना तभी सार्थक होगा, जब तक नियुक्ति की प्रक्रिया छह महीने के भीतर पूरी हो जाए, यह एक ऐसा काम है,जिसे सरकार को करना चाहिए।''

मामला 8 अप्रैल को अदालत के समक्ष सूचीबद्ध होने की संभावना है।

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