हाईकोर्ट जजों द्वारा सुनवाई के बाद कई महीनों तक फैसला सुरक्षित रखने की प्रवृत्ति चिंताजनक: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़

Update: 2024-04-08 13:53 GMT

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने हाईकोर्ट जजों द्वारा सुनवाई पूरी करने के बाद लंबे समय तक मामलों पर फैसले सुरक्षित रखने पर गंभीर चिंता व्यक्त की।

सीजेआई ने कहा कि जब उन्होंने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिसों को पत्र लिखकर उन मामलों के विवरण के बारे में जानकारी मांगी, जहां तीन महीने से अधिक समय से फैसले सुरक्षित रखे गए हैं, तो कई हाईकोर्ट जजों ने उन मामलों को अपने बोर्ड से मुक्त कर दिया।

उन्होंने कहा,

"चिंता की बात यह है कि जज बिना निर्णय के 10 महीने से अधिक समय तक मामलों को अपने पास रखते हैं। मैंने सभी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिसों को पत्र लिखा है कि कृपया उन मामलों का विवरण के बारे में मुझे सूचित करें, जो निर्णय आरक्षित होने के बाद 3 महीने से अधिक समय से लंबित हैं, जिससे हमारे पास 3 महीने से अधिक समय तक निर्णय आरक्षित रहने के बाद लंबित मामलों की सूची हो। पत्र प्रसारित होने के बाद इसे मेरी जानकारी में लाया गया कि कई जजों ने मामलों की सुनवाई अलग कर दी और उन्हें छोड़ दिया। इससे स्थिति और खराब हो गई! क्योंकि पक्षों को अब नए सिरे से वकील करने पड़ते हैं, मामले को फिर से सुना जाता है।"

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की प्रथा न्यायिक प्रभावकारिता और त्वरित न्याय के सिद्धांत को गंभीर नुकसान पहुंचा रही है। न केवल पक्षकारों और वकीलों को मुकदमेबाजी की प्रक्रिया से फिर से गुजरना पड़ता है, बल्कि निर्णयों की गुणवत्ता का भी त्याग करना पड़ता है, क्योंकि मौखिक तर्क अब न्यायिक दिमाग में ताजा नहीं रहते हैं।

सीजेआई ने आगे कहा,

"इसलिए जब आप 10 महीने से 2 साल तक लंबित किसी मामले को छोड़ देते हैं तो न्यायपालिका का समय बर्बाद होता है। ईमानदारी से कहूं तो 10 महीने के बाद मुझे नहीं पता कि जज को मामले याद हैं या नहीं, क्योंकि मौखिक दलीलें मायने नहीं रखती हैं, यह केवल वही है, जो आपके पास कागज पर है। जिस पर आप मामले का फैसला करेंगे।"

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