Chhattisgarh NAN Scam | सुप्रीम कोर्ट ने अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला की अग्रिम ज़मानत रद्द की
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में भ्रष्टाचार से संबंधित 2015 के नागरिक आपूर्ति निगम (NAN) घोटाले में पूर्व आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा और सह-आरोपी आलोक शुक्ला को दी गई अग्रिम ज़मानत रद्द कर दी।
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा 2020 में दी गई अग्रिम ज़मानत को चुनौती देने वाली प्रवर्तन निदेशालय (ED) की अपीलों पर यह आदेश पारित किया।
ED ने दलील दी थी कि टुटेजा और शुक्ला को दी गई अग्रिम ज़मानत के कारण वह PMLA के तहत अभियोजन पक्ष की शिकायत दर्ज नहीं कर सका। इसके अलावा, उसने तर्क दिया कि टुटेजा और शुक्ला अग्रिम ज़मानत का दुरुपयोग कर रहे हैं।
ED ने आरोप लगाया कि राज्य के सीनियर अधिकारियों और आरोपियों के बीच मिलीभगत थी, गवाहों को प्रभावित किया गया और कार्यवाही को रोकने की कोशिश की गई। इसने दावा किया है कि ज़मानत देने वाले जज ने दो दिन पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी और आरोपियों के बीच व्हाट्सएप पर हुई बातचीत से कथित राजनीतिक हस्तक्षेप का पता चलता है।
अपने आदेश में अदालत ने कहा कि उसने विवादित आदेशों और अभिलेखों में मौजूद सामग्रियों का अवलोकन किया। हालांकि, इस स्तर पर इन सामग्रियों की जांच करना आगे की कार्यवाही के लिए हानिकारक होगा और ट्रायल कोर्ट को प्रभावित कर सकता है।
अदालत ने कहा,
"यह कहना पर्याप्त है कि यह अग्रिम ज़मानत के लिए उपयुक्त मामला नहीं है। हालांकि, इस स्तर पर उक्त सामग्रियों पर विचार करना आगे की कार्यवाही के लिए हानिकारक होगा। इसलिए ट्रायल कोर्ट को प्रभावित कर सकता है।"
तदनुसार, अदालत ने शुक्ला और NAN के तत्कालीन अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक टुटेजा को दी गई अग्रिम ज़मानत रद्द की और निर्देश दिया कि उन्हें आदेश प्राप्त होने की तिथि से चार सप्ताह की अवधि के लिए ED द्वारा हिरासत में लिया जाए। उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया और जांच पूरी करने और शिकायत दर्ज करने में सहायता के लिए ED के साथ सहयोग करने का निर्देश दिया गया।
अदालत ने निर्देश दिया कि चार सप्ताह की हिरासत अवधि पूरी होने के बाद यदि किसी अन्य मामले में आवश्यकता न हो तो दोनों प्रतिवादियों को ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए गए नियमों और शर्तों के अधीन रिहा कर दिया जाएगा।
Case Title– Directorate of Enforcement v. Anil Tuteja and Ors.