एनसीडीआरसी के समक्ष लिखित बयान दाखिल करने में 45 दिनों से अधिक की देरी वाला संविधान पीठ का निर्णय केवल भविष्यलक्षी प्रभाव से लागू करने के लिए स्वीकार नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-07-10 07:42 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम हिली मल्टीपर्पज कोल्ड स्टोरेज प्राइवेट लिमिटेड [(2020) 5 एससीसी 757 मामले में संवैधानिक पीठ के फैसले में कहा गया था कि राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के समक्ष लिखित बयान दाखिल करने में 30 + 15 दिन (45 दिन) से अधिक की देरी केवल भविष्यलक्षी (Prospectively) प्रभाव से लागू करने के लिए स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

संवैधानिक पीठ इस मामले में [04.03.2020] के फैसले से पहले 30+15 दिनों (45 दिन) की अवधि से 7 दिनों की देरी के लिए आवेदन दायर किया गया था। एनसीडीआरसी ने संवैधानिक पीठ के फैसले का हवाला देते हुए लिखित बयान दाखिल करने में देरी के आवेदन को खारिज कर दिया। इस बर्खास्तगी के खिलाफ पक्षकारों ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की।

न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि,

"हमारे विचार में, चूंकि देरी के लिए आवेदन संवैधानिक पीठ के फैसले से पहले दायर किया गया था, जो कि 04.03.2020 को दिया गया था, देरी के लिए उक्त आवेदन पर मैरिट के आधार पर विचार किया जाना चाहिए था और इसे खारिज नहीं किया जाना चाहिए था। न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (सुप्रा) के मामले में संविधान पीठ के फैसले के आधार पर खारिज कर दिया गया क्योंकि उक्त निर्णय को भविष्यलक्षी रूप से संचालित करना था और लिखित बयान के साथ-साथ देरी के लिए आवेदन उक्त फैसला से बहुत पहले दायर किया गया था। "

पीठ ने एनसीडीआरसी के आदेश को पलटते हुए 25,000 रुपये के जुर्माने के भुगतान पर 7 दिनों की देरी को स्वीकार करने का निर्णय दिया। अदालत ने कहा कि यदि भुगतान किया जाता है तो एनसीडीआरसी द्वारा लिखित बयान को स्वीकार किया जाएगा और एनसीडीआरसी द्वारा प्रतिवादी द्वारा दायर शिकायत को यथासंभव शीघ्रता से अधिमानतः छह महीने के भीतर तय करने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा।

संविधान पीठ ने हिली मल्टीपर्पज कोल्ड स्टोरेज प्राइवेट लिमिटेड मामले में कहा था कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 उपभोक्ता फोरम को 45 दिनों की अवधि से आगे का समय बढ़ाने का अधिकार नहीं देता है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 13 के तहत निर्धारित समय अवधि अनिवार्य है, न कि निर्देशिका। यह भी कहा कि शिकायत के साथ नोटिस प्राप्त होने के समय से समयरेखा शुरू हो जाएगी, न कि केवल नोटिस प्राप्त होने से समय से।

केस: डॉ. ए सुरेश कुमार बनाम अमित अग्रवाल

कोरम: जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी

CITATION: LL 2021 SC 290

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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