उम्मीदवार को कट-ऑफ डेट से पहले विज्ञापन के अनुसार पात्रता मानदंड का पालन करना होगा: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार पुलिस फोर्स में कांस्टेबल पद पर एक उम्मीदवार की नियुक्ति संबंधी एक मामले में कहा कि अगर भर्ती प्राधिकरण कट ऑफ डेट आगे नहीं बढ़ाता है तो एक उम्मीदवार या आवेदक को कट ऑफ डेट से पहले विज्ञापन के अनुसार सभी शर्तों और पात्रता मानदंडों का पालन करना होगा।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की खंडपीठ ने पटना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर बिहार राज्य की एक दीवानी अपील पर यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में डीआईजी मुंगेर को प्रतिवादी को कांस्टेबल के रूप में नियुक्त करने का निर्देश दिया था।
पीठ ने कहा है कि केवल उन दस्तावेजों पर विचार किया जाना है, जो आवेदन पत्र के साथ जमा किए गए हैं, जिन्हें विज्ञापन के अनुसार जमा करना आवश्यक है।
पीठ ने कहा,
"कानून के स्थापित प्रस्ताव के अनुसार, एक उम्मीदवार/आवेदक को विज्ञापन के अनुसार सभी शर्तों/पात्रता मानदंडों का पालन उसमें उल्लिखित कट-ऑफ तिथि से पहले करना होगा, जब तक कि भर्ती प्राधिकारी द्वारा डेट को आगे नहीं बढ़ाया जाता है। साथ ही, केवल वे दस्तावेज, जिन्हें आवेदन पत्र के साथ जमा किया गया है, जिसे विज्ञापन के अनुसार जमा करना आवश्यक है, उन्हीं पर विचार किया जाना है।"
इसलिए बेंच ने माना कि जब प्रतिवादी ने विज्ञापन के अनुसार मूल आवेदन के साथ एनसीसी 'बी' प्रमाण पत्र की फोटोकॉपी पेश नहीं की थी, और इसे कट-ऑफ डेट के तीन साल बाद जमा किया गया और वह भी शारीरिक परीक्षण के बाद, इसलिए वह एनसीसी 'बी' प्रमाण पत्र के अतिरिक्त पांच अंक का हकदार नहीं था।
खंडपीठ ने माना कि इन परिस्थितियों में पटना हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने 8 सितंबर 2007 की चयन सूची पर विचार करते हुए बिहार राज्य को प्रतिवादी को एनसीसी 'बी' सर्टिफिकेट के पांच अतिरिक्त अंक आवंटित करते हुए कांस्टेबल के पद पर नियुक्त करने का निर्देश देने में गलती की है।
पटना हाईकोर्ट की खंडपीठ ने आक्षेपित आदेश के माध्यम से अपील दायर करने में 3 वर्ष 55 दिन की देरी को माफ कर दिया था और एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को खारिज करते हुए प्रतिवादी की अपील की अनुमति दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश के खिलाफ राज्य की अपील की अनुमति दी और हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही उम्मीदवार की रिट याचिका को खारिज करने वाले एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को बहाल कर दिया है।
तथ्य
वर्तमान विवाद तब पैदा हुआ जब बिहार पुलिस बल में कांस्टेबलों के चयन के लिए 08.02.2004 को प्रकाशित एक विज्ञापन के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किए गए, जिसके मुताबिक उम्मीदवार को अपने आवेदन पत्र के साथ सभी आवश्यक दस्तावेजों की स्व-सत्यापित प्रतियों को संलग्न करना आवश्यक था।
विज्ञापन में यह भी प्रावधान था कि एनसीसी 'बी' प्रमाण पत्र के लिए अतिरिक्त पांच अंक और एनसीसी 'सी' प्रमाण पत्र के लिए 10 अंक प्रदान किए जाएंगे। चूंकि प्रतिवादी उम्मीदवार ने अपना एनसीसी प्रमाणपत्र जमा नहीं किया, इसलिए उसे एनसीसी 'बी' प्रमाणपत्र के लिए पांच अतिरिक्त अंक नहीं दिए गए।
जब उम्मीदवार ने हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की तो एकल पीठ ने कोई सकारात्मक निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया।
अधिकारियों द्वारा 5 अतिरिक्त अंकों की मांग को खारिज करने के बाद, उसने हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के समक्ष एक पत्र पेटेंट अपील दायर की। हाईकोर्ट ने अपील की अनुमति दी और नियुक्ति प्राधिकारी को मूल रिट याचिकाकर्ता को एनसीसी 'बी' प्रमाण पत्र के पांच अतिरिक्त अंक प्रदान करते हुए कांस्टेबल के रूप में नियुक्त करने का निर्देश दिया।
केस शीर्षक: बिहार राज्य और अन्य बनाम मधु कांत रंजन
सिटेशन: एलएल 2021 एससी 752