उधार दिए गए रुपए का पूरा भुगतान साबित करने का बोझ दावा करने वाली पार्टी पर: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि जब किसी पार्टी ने रुपए के भुगतान और उसके एक हिस्से का पुनर्भुगतान स्वीकार किया है तो यह साबित/स्थापित करने का दायित्व उस पार्टी पर ही है कि बकाया राशि की पूर्ण और अंतिम आदयगी हो चुकी है।
कोर्ट ने कहा,
"एक पार्टी जो किसी विशेष तारीख को निश्चित राशि की प्राप्ति स्वीकार करती है और बाद की तारीख में पूर्ण और अंतिम अदयागी की मांग करती है, उसी पर जिम्मेदारी होती है।"
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की खंडपीठ ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एक अपील की अनुमति दी, जिसने दो मनी सूट्स में पहली अपीलीय अदालत के आदेश और डिक्री को रद्द कर दिया था, जिसे आरंभ में निचली अदालत ने खारिज कर दिया था। पीठ ने उत्तरदाताओं पर 50,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया।
तथ्य
अपीलार्थी ने प्रतिवादी के खिलाफ 10,48,000 रुपये और 67,31,000 रुपये की वसूली के लिए दो मनी सूट्स दायर किए थे। प्रथम दृष्टया, अपीलकर्ता ने आरोप लगाया कि प्रतिवादियों ने 10,50,000 रुपये उधार लिए थे और केवल 5,00,000 रुपये चुकाए। ब्याज के साथ मूलधन 10,48,000 रुपये था।
दूसरे मुकदमे में, अपीलकर्ता ने आरोप लगाया कि प्रतिवादी ने अपीलकर्ता और उसके पति को अपने रियल एस्टेट बिजनेस का प्रलोभन दिया और व्यापारिक लेनदेन में आसानी के लिए कोरे कागजों पर अपीलकर्ता के हस्ताक्षर ले लिए। बाद में, अपीलकर्ता को पता चला कि उसकी जानकारी के बिना उसके खाते से 54,50,000 रुपये निकाल लिए गए। इस संबंध में प्रतिवादियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 467, 468 और 471 के साथ सहपठित धारा 120-बी के तहत एफआईआर दर्ज की गई।
हालांकि, 50,00,000 रुपये की बैंक गारंटी पेश करने पर प्रतिवादियों को अग्रिम जमानत दे दी गई। इस प्रकार 12% ब्याज के साथ मूल राशि 67,31,000 रुपये हो गई। पहले मुकदमे में प्रतिवादियों ने धन प्राप्ति की बात स्वीकार की और निवेदन किया कि उन्होंने 07.08.2006 को 5,00,000 रुपये पूर्ण और अंतिम अदायगी के रूप में दिए थे।
दूसरे मुकदमे प्रतिवादियों की दलील यह थी कि व्यापार लेनदेन के लिए पैसे लिए गए थे, जिसमें से 30,00,000 रुपये अपीलकर्ता और उसके बेटे ने प्रतिवादियों को प्यार और स्नेह से दिए थे।
निचली अदालत ने दोनों मुकदमों को खारिज कर दिया था। अपील पर, प्रथम अपीलीय अदालत ने निचली अदालत के आदेश को उलट दिया था, जिसे अंततः दूसरी अपील में हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता को अग्रिम जमानत देने के लिए भुगतान किए गए धन को वापस करने का भी निर्देश दिया था।
विवाद
अपीलकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट राजीव भल्ला ने तर्क दिया कि निचली अदालत और हाईकोर्ट ने पूर्ण और अंतिम अदायगी की प्रतिवादियों की याचिका को स्वीकार करने में गलती की थी।
सीनियर एडवोकेट श्री निधेश गुप्ता ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता के बेटे को मुकदमे में पक्षकार बनाने में विफलता उसके मामले के लिए घातक है। उन्होंने कहा कि एक बार यह स्थापित हो जाने के बाद कि प्रतिवादियों को भुगतान अधिकृत किया गया था और यह भी कि एक समझौता हो गया था, अपीलकर्ता का मामला विफल हो गया।
विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि प्रतिवादियों ने स्वीकार किया था कि उन्होंने अपीलकर्ता से 10,50,000 रुपए प्राप्त किए थे, हालांकि दावा किया कि पूर्ण और अंतिम अदायगी 5,00,000 रुपये के लिए थी।
कोर्ट का मत था कि जब पूर्ण और अंतिम अदायगी अपीलकर्ता से प्राप्त स्वीकृत मूल राशि से कम राशि की थी तो यह स्थापित करने का बोझ प्रतिवादियों पर डाला गया था कि अदायगी हुई थी। कोर्ट ने आगे कहा कि तीसरे पक्ष के मध्यस्थों के मौखिक साक्ष्य पर्याप्त नहीं होंगे, खासकर जब समझौता/अदायगी का कोई लिखित ज्ञापन नहीं है।
"समझौता/अदायगी का कोई लिखित ज्ञापन भी नहीं था। जब एक निश्चित राशि का भुगतान और उसी के एक हिस्से का पुनर्भुगतान स्वीकार किया जाता है, पार्टी यह तर्क देती है कि इस प्रकार आंशिक पुनर्भुगतान पूर्ण और अंतिम अदायगी में था, इससे उस पर एक बड़ा बोझ डाला गया है ताकि यह दिखाया जा सके कि एक अदायगी हुई थी। कथित तीसरे पक्ष के मध्यस्थों के मौखिक साक्ष्य ऐसे मामलों में पूर्ण और अंतिम अदायगी स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, जहां सभी लेनदेन केवल बैंकिंग चैनलों के माध्यम से हुए हैं और प्रतिवादियों ने दावा किया कि वे व्यापारिक लेनदेन थे।"
न्यायालय ने कहा कि दूसरे मुकदमे के संबंध में, प्रतिवादियों का बचाव यह था कि अपीलकर्ता को दिया गया पैसा रियल इस्टेट बिजने में निवेश के लिए था। इस राशि में से 30,00,000 रुपये अपीलकर्ता और उसके बेटे ने प्रतिवादियों को प्यार और स्नेह से दिया था। अपीलकर्ता के बेटे ने इस आशय का एक हलफनामा सबूत के रूप में जोड़ा था।
कोर्ट ने कहा कि यह दिखाने की जिम्मेदारी प्रतिवादियों पर थी कि बिजनेस ट्रांजेक्शन थे और पैसे का हिसाब था, जिसे करने में वह पूरी तरह से विफल रहा था।
कोर्ट ने कहा,
"पैसे की वसूली के मुकदमे में, एक प्रतिवादी पैसे की प्राप्ति को स्वीकार करता है, लेकिन यह दावा करता है कि यह एक अनुग्रहवश किया गया भुगतान था, वह यह साबित करने के लिए बाध्य है कि यह एक अनुग्रहवश किया गया भुगतान था।"
इसके अलावा 08.03.2006 के हलफनामे के अवलोकन पर कोर्ट ने भौतिक विरोधाभास पाया। कोर्ट ने का कि अपीलकर्ता और प्रतिवादियों के बीच कोई लेनदेन नहीं था, लेकिन 07.08.2006 को प्रतिवादियों ने पूर्ण और अंतिम अदायगी की थी।
शीर्षक: अनीता रानी बनाम अशोक कुमार और अन्य, Civil Appeal Nos. 7750-7751 of 2021
सिटेशन : LL 2021 SC 746