BNSS प्रावधान अधिकतम विचाराधीन अवधि को सीमित करता है, जो PMLA पर लागू होता है: सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी
सुप्रीम कोर्ट ने धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 के तहत धन शोधन के मामले में लाल चंदन तस्कर बादशाह मजीद मलिक को जमानत दी।
जस्टिस अभय ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने इस आधार पर जमानत दी कि उसने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 479(1) के पहले प्रावधान के अनुसार अपराध के लिए अधिकतम सजा का एक तिहाई से अधिक हिस्सा काट लिया।
सुप्रीम कोर्ट ने विजय मदन लाल चौधरी के मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि CrPC की धारा 436ए के लाभकारी प्रावधान PMLA के तहत अभियोजन पर लागू होंगे, क्योंकि धारा 436ए PMLA के अधिनियमन के बाद पेश की गई। इसलिए न्यायालय ने फैसला सुनाया कि BNSS की धारा 479 (1) के संगत प्रावधान PMLA के तहत अभियोजन पर भी इसी तरह लागू होंगे।
विजय मदन लाल चौधरी के मामले में यह माना गया कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 436ए का लाभकारी प्रावधान PMLA के तहत अभियोजन पर लागू होगा, क्योंकि धारा 436 ए PMLA के अधिनियमन के बाद विधि पुस्तकों में आई है। इसलिए BNSS की धारा 479 (1) के संगत प्रावधान PMLA के तहत अभियोजन पर लागू होंगे। मामले के तथ्यों में अपीलकर्ता ने दो साल और 11 महीने की अवधि के लिए कारावास की सजा काटी। अपीलकर्ता के खिलाफ आरोपित अपराध के लिए अधिकतम सजा 7 साल के कारावास की है।
मामले के तथ्यों में यह विवादित नहीं है कि अपीलकर्ता को अतीत में किसी भी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया गया। इसलिए धारा 479(1) का पहला प्रावधान इस मामले पर लागू होगा, क्योंकि अपीलकर्ता ने अपने खिलाफ लगाए गए अपराधों के लिए निर्धारित अधिकतम कारावास अवधि के एक तिहाई से अधिक अवधि के लिए हिरासत में लिया।
धारा 479(1) में प्रावधान है कि यदि किसी विचाराधीन कैदी को अपराध के लिए अधिकतम कारावास अवधि के आधे से अधिक समय तक हिरासत में रखा गया तो उसे जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए, जब तक कि अपराध में मृत्यु या आजीवन कारावास शामिल न हो। पहली शर्त यह है कि पहली बार अपराध करने वाले (कोई ऐसा व्यक्ति जिसके खिलाफ पहले कोई दोष सिद्ध न हुआ हो) को अधिकतम कारावास अवधि के एक तिहाई समय तक हिरासत में रखने पर बांड पर रिहा किया जा सकता है।
मलिक पर लाल चंदन की तस्करी और इन गतिविधियों से प्राप्त आय को सफेद करने का आरोप है। ED ने मलिक पर अपनी अवैध गतिविधियों को छिपाने के लिए जाली दस्तावेजों और शेल कंपनियों का उपयोग करके निर्यात खेपों को गलत तरीके से घोषित करने का आरोप लगाया।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मलिक की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। अदालत ने पाया कि मलिक पर पहले कोई दोष सिद्ध नहीं हुआ, जिससे वह BNSS की धारा 479(1) के पहले प्रावधान के आवेदन के लिए पात्र हो गया, क्योंकि उसने अपराधों के लिए अधिकतम कारावास अवधि का एक तिहाई से अधिक समय काट लिया था।
प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने जमानत आवेदन का विरोध किया और अदालत से धारा 479(1) के दूसरे प्रावधान पर विचार करने का आग्रह किया। दूसरे प्रावधान में यह प्रावधान है कि अदालत सरकारी वकील की सुनवाई करने और लिखित कारण बताने के बाद विचाराधीन कैदी को अधिकतम सजा के आधे से अधिक समय तक हिरासत में रखने का आदेश दे सकती है।
ED ने तर्क दिया कि मलिक के खिलाफ आरोपों में लाल चंदन की तस्करी शामिल है, जो एक दुर्लभ और संरक्षित लकड़ी की प्रजाति है। हालांकि, अदालत ने नोट किया कि सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 140 के साथ धारा 132, 135(1)(ए)(ii), 135(1)(बी)(ii) के तहत लगाए गए अपराध के तहत अधिकतम सजा केवल तीन साल थी। इसलिए अदालत ने पाया कि इस मामले में दूसरा प्रावधान लागू नहीं होता।
अदालत ने मलिक की अपील स्वीकार कर ली और निर्देश दिया कि उसे जमानत पर रिहा करने के लिए एक सप्ताह के भीतर विशेष अदालत के समक्ष पेश किया जाए। विशेष अदालत को मामले के अंतिम निपटारे तक मलिक की रिहाई के लिए उचित नियम और शर्तें तय करने का आदेश दिया गया।
मामले की पृष्ठभूमि
मलिक और उसके साथियों पर 2015 में 3.12 करोड़ रुपये मूल्य के 7.8 मीट्रिक टन लाल चंदन की तस्करी करने का आरोप है, जिसे उन्होंने कपड़े के गोंद, रेडिएटर और अन्य सामान के रूप में गलत तरीके से घोषित करके किया था। इस जब्ती से पहले मलिक के सिंडिकेट ने कथित तौर पर 47 करोड़ रुपये मूल्य के लाल चंदन की 17 अन्य खेपों की तस्करी की थी।
अभियोजन पक्ष ने हाईकोर्ट के समक्ष दावा किया कि मलिक का इसी तरह के अपराधों का इतिहास रहा है, जिसमें ड्यूटी ड्रॉबैक दावों का दुरुपयोग करने के लिए जाली दस्तावेजों का उपयोग करके तस्करी के लिए 2005 की गिरफ्तारी भी शामिल है।
ED ने आरोप लगाया कि मलिक ने शेल कंपनियों और व्यक्तिगत खातों के माध्यम से अपराध की आय को लूटा, विशेष रूप से अपनी कंपनी एम्पायर इंडिया मल्टीट्रेड प्राइवेट लिमिटेड का उपयोग करके। ED ने दावा किया कि 2011 और 2017 के बीच मलिक के निजी अकाउंट में लगभफग 9.86 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए गए। मलिक ने मुकदमे में अनावश्यक देरी के आधार पर जमानत मांगी, जिससे त्वरित सुनवाई के उनके अधिकार का उल्लंघन हुआ।
केस टाइटल- बादशाह मजीद मलिक बनाम प्रवर्तन निदेशालय