असहमतियों को राष्ट्रविरोधी करार देना संवैधानिक मूल्यों पर हमले जैसाः जस्टिस चंद्रचूड़
गुजरात में एक व्याख्यान देते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि असहमतियों पर प्रतिबंध के लिए राज्य मशीनरी का उपयोग करना भय पैदा करता है।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने असहमति को लोकतंत्र का 'सेफ्टी वाल्व' बताया है। उन्होंने कहा है कि असहमतियों को सिरे से राष्ट्र विरोधी और लोकतंत्र विरोधी करार देना, संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने और विचारशील लोकतंत्र को बढ़ावा देने की देश की प्रतिबद्घता के सीने पर घाव करता है।
गुजरात में एक व्याख्यान देते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि असहमतियों पर प्रतिबंध के लिए राज्य मशीनरी का उपयोग करना भय पैदा करता है, जो कानून का उल्लंघन है।
उन्होंने कहा कि असहमतियों का बचाव करना, याद दिलाता है कि एक निर्वाचित लोकतांत्रिक सरकार हमें विकास और सामाजिक समन्वय के लिए वैध उपकरण प्रदान करती है, वे कभी भी उन मूल्यों और पहचान पर एकाधिकार का दावा नहीं कर सकती है, जो हमारे बहुलतावादी समाज को परिभाषित करते हैं।
15 वें जस्टिस पीडी देसाई मेमोरियल लेक्चर में जस्टिस चंद्रचूड़ ने, The Hues That Make India: From Plurality to Pluralism विषय पर व्याख्यान दिया।
उन्होंने कहा, "असहमति पर लगाम लगाने के लिए राज्य मशीनरी का इस्तेमाल भय पैदा करता है और भय का माहौल बनाता है, जो कानून का उल्लंघन है। यह बहुलतावादी समाज के संवैधानिक लक्ष्य से भटकाव है।"
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के कारण देश के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि "सवाल पूछने और असहमति प्रकट करने की जगह को नष्ट करना, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक, विकास के सभी आधारों को नष्ट कर देगा। इन अर्थों में असहमति लोकतंत्र का एक सेफ्टी वॉल्व है।"
उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट की उस पीठ का हिस्सा हैं, जिसने जनवरी में जिला प्रशासन द्वारा कथित रूप से सीएए विरोधी आंदोलनों में सार्वजनिक संपत्तियों को हुए नुकसान की वसूली के लिए प्रदर्शनकारियों को भेजे गए नोटिसों को रद्द करने की मांग के संबंध में दायर याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा था।
उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा, "असहमतियों पर हमला, संवाद आधारित लोकतांत्रिक समाज के दिल पर हमला करता है। इसलिए, एक राज्य को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वह कानून की सीमा में दिए गए भाषणों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपनी मशीनरी का उपयोग करे और स्वंतत्र भाषण पर रोक और भय पैदा करने की किसी कोशिश को नष्ट करें।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि विमर्श और संवाद की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता प्रत्येक लोकतंत्र का एक अनिवार्य पहलू है, विशेष रूप से सफल लोकतंत्र का।
उन्होंने कहा, "एक लोकतंत्र, जो तर्क और विमर्श के आदर्श से जुड़ा होता है, यह सुनिश्चित करता है कि अल्पसंख्यकों के विचारों का गला नहीं घोंटा जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि हर परिणाम केवल संख्याबल पर आधारित न हो, बल्कि साझा सहमति का परिणाम हो।"
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि लोकतंत्र का "सच्चा परीक्षण", उसकी ऐसे स्पेश का निर्माणा और संरक्षण सुनिश्चित करने की क्षमता है, जहां हर व्यक्ति बिना किसी प्रतिशोध के डर के अपने विचारों को रख सके।
उन्होंने कहा, "संविधान के उदार संकल्पों में बहुलता के लिए प्रतिबद्धता निहित है। संवाद और विमर्श के लिए प्रतिबद्ध एक वैध सरकार राजनीतिक प्रतिस्पर्धा को प्रतिबंधित करने का प्रयास नहीं करती है, बल्कि इसका स्वागत करती है,"
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने भी मत-भिन्नताओं के लिए पारस्परिक सम्मान और संरक्षण के महत्व को भी रेखांकित किया।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का आंकलन औपचारिक रूप से मौजूद संस्थाओं के आधार पर नहीं होता, बल्कि यह देखा जाता है कि विभिन्न वर्गों की अलग-अलग आवाजों को कितना सुना जाता है और उनका कितना सम्मान किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि बहुलतावाद के लिए बड़ा खतरा मतभेदों का दमन और वैकल्पिक या विरोधी दृष्टि प्रदान कर रही लोकप्रिय या अलोकप्रिय आवाज़ों का चुप कराना है।
उन्होंने कहा,"विचारों का दमन राष्ट्र की आत्मा का दमन है।"
न्यायमूर्ति चंदचूड़ ने कहा कि देश की परिकल्पना अपनी विशाल विविधता को समाहित करने के रूप में की गई थी, न कि उन्हें नष्ट करने के रूप में।
उन्होंने कहा, "राष्ट्रीय एकता, साझा सांस्कृतिक मूल्यों और संविधान के मूल आदर्श के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है, जिसमें सभी व्यक्तियों को न केवल मौलिक अधिकारों की गारंटी दी जाती है, बल्कि उनके स्वतंत्र और सुरक्षित प्रयोग की स्थितियां भी दी जाती हैं।"
उन्होंने कहा कि देश का बहुलवाद, विभिन्न राज्यों, नस्लों, भाषाओं और विश्वासों के लोगों की शरणस्थली के रूप में भारत का विचार संरक्षित करने की प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है।
(पीटीआई)