"शारीरिक रूप से अक्षम वकीलों के प्रवेश में अड़चन पैदा कर रही बीसीआई", दृष्टिबाधित AIBE उम्मीदवार ने किया दावा, 2018 PwD दिशा निर्देशों के उचित क्रियान्वयन की मांग
एक दृष्टिबाधित कानून स्नातक ने दावा किया है कि कानून के पेशे के प्रमुख नियामक संस्था 'बार काउंसिल ऑफ इंडिया' शारीरिक रूप से अक्षम वकीलों के लिए करियर की शुरुआत में ही अड़चने पैदा कर रही है। युवक का दावा है कि काउंसिल ने 24 जनवरी को आयोजित अखिल भारतीय बार परीक्षा में बैठने के लिए, उसे उचित आवास प्रदान करने से इनकार कर दिया है, जबकि वह शारीरिक रूप से स्थायी रूप से अक्षम है।
भारत सरकार की ओर से शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों की परीक्षा कराने के लिए जारी दिशा निर्देशों के अनुसार, ( Guidelines for conducting written examination for persons with benchmark disabilities 2018)
-शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति (Persons with benchmark disabilities) लेखक/ पाठक/ प्रयोगशाल सहायक की सुविधा प्रदान करने अनुमति दी जानी चाहिए, जैसा कि शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के अधिकारों के कानून (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016) की धारा 2 (r)में परिभाषित किया गया है।
-उम्मीदवार अपना लेखक/ पाठक/ प्रयोगशाल सहायक चुनने का विवेक दिया जाना चाहिए या ऐसा करने के लिए परीक्षा निकाय से अनुरोध किया जाना चाहिए;
-यदि उम्मीदवार को अपना लेखक लाने की अनुमति दी गई है, तो उसकी योग्यता उम्मीदवार की योग्यता से "एक स्तर नीचे" होनी चाहिए;
-परीक्षा के प्रति घंटे पर 20 मिनट से कम प्रतिपूरक समय नहीं दिया जाना चाहिए,
-परीक्षा कर रही संस्था को परीक्षा सामगी ब्रेल या ई-टेक्स्ट में या उचित स्क्रीन रीडर युक्त कम्प्यूटर पर उपलब्ध करानी चाहिए।
इसके अलावा, इन नियमों में एक निश्चित स्तर का लचीलापन होना चाहिए, ताकि विभिन्न मामलों के आधार पर विशिष्ट आवश्यकताओं को समायोजित किया जा सके।
मौजूदा मामले में कानून स्नातक ने काउंसिल से आग्रह किया था किउ (i) उसे अपना लेखक लाने की अनुमति प्रदान की जाए (ii) उसे प्रति घंटे 20 मिनट का अतिरिक्त समय प्रदान किया जाए और (iii) उसे लैपटॉप लाने की अनुमति दी जाए, क्योंकि AIBE एक ओपेन बुक एग्जाम है।
हालांकि प्राधिकरण ने उम्मीदवार को शुरू में ओपन बुक एग्जाम के लिए लैपटॉप लाने की अनुमति नहीं दी, जबकि 2018 के दिशानिर्देशों में यह स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है, साथ ही उसकी अन्य दो मांगों, लेखक ओर अतिरिक्त समय को भी स्वीकार नहीं किया।
काउंसिल ने जवाब में कहा, "यह एडमिट कार्ड जारी करने की तारीख पर तय किया जाएगा।"
उम्मीदवार द्वारा दोबारा आग्रह करने पर परिषद ने उसे इंटरनेट सुविधा के बिना लैपटॉप ले जाने की अनुमति दी। इसने उसे एक लेखक ले जाने की अनुमति भी दी गई, जो केवल 12 वीं पास हो, और 2019 से पहले का पास न हो।
उम्मीदवार ने काउंसिल के फैसले पर कहा, "बार काउंसिल द्वारा लेखक की योग्यता 12 वीं तय करना शारीरिक रूप से अक्षम उम्मीदवारों के समान अधिकार के प्रति उसकी प्रतिगामी मानसिकता को दर्शाता है।"
उम्मीदवार ने जोर देते हुए कहा कि 2018 के दिशा निर्देश के अनुसार लेखक की योग्यता उम्मीदवार से केवल एक दर्जा नीचे होनी चाहिए। उसने आगे कहा कि 2018 के दिशानिर्देशों में शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए प्रति घंटे 20 मिनट प्रतिपूरक समय निर्धारित किया गया है, लेकिन बीसीआई ने प्रतिपूरक समय का दावा करने के लिए कम से कम 50% प्रमाणित विकलांगता के ब्रैकेट का "स्व-आविष्कार" किया है।
उत्तेजित छात्र ने कहा, "महामारी के दौर में, जब सिस्टम टूट गया है और उथलपुथल मची हुई है, बार काउंसिल अपनी जिद, कठोरता और सक्षमवादी रवैये के कारण शारीरिक रूप से अक्षम उम्मीदवारों की जिंदगी अधिक कठिन बना रही है।
बड़ी परेशानी यह है कि काउंसिल के पास उम्मीदवारों की शिकायतों को हल करने के लिए एक कार्यात्मक प्रणाली भी नहीं है; जहां ईमेल का कभी भी जवाब नहीं दिया जाता है, और कॉल को कभी नहीं उठाया जाता है।"
उसने दावा किया कि यह लंबे समय से चली आ रही समस्या है, जिसे शारीरिक रूप से अक्षम उम्मीदवारों के लाभ के लिए एक स्पष्ट नीति के बाद ही हल किया जा सकता है। उसने आगे आशा व्यक्त की कि काउंसिल शारीरिक रूप से अक्षम अभ्यर्थियों की शिकायत को हल करने के लिए एक समर्पित हेल्प डेस्क की स्थापना करेगी।
2017 में AIBI की परीक्षा देने वाले नेत्रहीन वकील राहुल बजाज ने कहा कि जब उन्होंने परीक्षा दी थी तो उन्हें भी ऐसी ही चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। राहुल ने कहा, "इस प्रकरण से यह भी पता चलता है कि लोग अभी भी उचित आवासों को कानूनी रूप से गारंटीकृत अधिकारों के रूप में नहीं देखते हैं..।
[नोट: बार काउंसिल ऑफ इंडिया का कार्यालय इस रिपोर्ट को लिखने तक मामले पर टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं था।]