अनुच्छेद 30: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान प्रवेश एवं शुल्क नियामक समिति से छूट का दावा नहीं कर सकते

Update: 2023-03-18 10:51 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान प्रवेश और शुल्क नियामक समिति (AFRCकी कार्रवाई के खिलाफ पूर्ण प्र‌तिरक्षा का दावा नहीं कर सकता, वह भी यह कहकर कि उसे संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत सुरक्षा प्राप्त है।

न्यायालय यह तय कर रहा था कि क्या मध्य प्रदेश में एक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान को वो फीस, जिसे वह चार्ज कर रहा है, उसे मध्य प्रदेश निजी व्यावसायिक शिक्षण संस्थान (प्रवेश का विनियम और शुल्क का निर्धारण) अधिनियम, 2007 (संक्षेप में, 2007 का अधिनियम) के प्रावधानों के तहत प्रवेश और शुल्क नियामक समिति से तय करानी पड़ेगी।

मॉडर्न डेंटल कॉलेज एंड रिसर्च सेंटर और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य [(2016) 7 एससीसी 353] में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था।

अपीलकर्ता आइकॉन एजुकेशन सोसाइटी ने मौजूदा कार्यवाही में, 2007 के अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती दी, जो AFRC को अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान द्वारा प्रस्तावित फीस की जांच करने का अधिकार देता है।

इस मुद्दे को तय करने के लिए जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ ने टीएमए पई और पीएम इनामदार मामलों का उल्लेख किया।

पीठ ने कहा कि यह माना गया था कि जब एक संस्था अपनी फीस तय करने के लिए स्वतंत्र है तो राज्य यह सुनिश्चित करने के लिए इसे विनियमित कर सकता है कि कोई मुनाफाखोरी या कैपिटेशन फीस ना चार्ज की जाए।

कोर्ट ने कहा,

"उचित फीस तय करना भी संविधान के अनुच्छेद 30(1) के आशयों में एक संस्था की स्थापना और प्रशासन के अधिकार का एक घटक है, और प्रत्येक संस्थान अपनी फीस तय करने के लिए स्वतंत्र है, जो इस सीमा के अधीन है कि इसमें कोई मुनाफाखोरी नहीं हो सकती है और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से या किसी भी रूप में कोई कैपिटेशन शुल्क नहीं लिया जा सकता है। इस उद्देश्य की प्राप्‍त‌ि के लिए प्रवेश और शुल्क संरचना को विनियमित करने की अनुमति है।"

पीठ ने यह भी कहा कि इसी अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट ने मॉडर्न डेंटल कॉलेज में एक उचित प्रतिबंध के रूप में बरकरार रखा था और कुछ प्रावधानों को अवैध मान ‌लिया गया था।

"इसलिए, अपीलकर्ता सोसाइटी के लिए 2007 के अधिनियम की वैधता को फिर से चुनौती देने के लिए बहुत देर हो चुकी है, क्योंकि इस कानून के प्रावधानों को इस न्यायालय द्वारा पहले ही अवैध माना जा चुका है, जिसका अर्थ है कि AFRC के पास धारा 9(1) में दिए गए मापदंडों को ध्यान में रखते हुए, शैक्षणिक संस्थान द्वारा प्रस्तावित किए जाने के बाद ही शुल्क को विनियमित करने की शक्ति है"।

न्यायालय ने आगे यह भी कहा कि AFRC की भूमिका सोसाइटी द्वारा प्रस्तावित फीस की समीक्षा करना था न कि एकतरफा शुल्क तय करना।

न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता सोसाइटी को 2007 के अधिनियम की धारा 9 के प्रावधानों के अनुसार, समीक्षा और विनियमन के उद्देश्य से प्रस्तावित शुल्क अनिवार्य रूप से AFRC को सबमिट करना होगा।

केस टाइटल: आइकॉन एजुकेशन सोसायटी बनाम मध्य प्रदेश राज्य

साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एससी) 202

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