यौन उत्पीड़न के 'Gender-Specific' कानून के तहत केवल पुरुषों पर ही मुकदमा चलाया जा सकता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

Update: 2024-07-27 05:16 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354ए के तहत यौन उत्पीड़न के आरोप महिलाओं के खिलाफ लागू नहीं किए जा सकते, क्योंकि प्रावधान विशेष रूप से "पुरुष" शब्द से शुरू होता है।

जस्टिस अजय कुमार गुप्ता की एकल पीठ ने प्रावधान का अवलोकन किया, जो इस प्रकार शुरू होता है,

"[354ए. यौन उत्पीड़न और यौन उत्पीड़न के लिए दंड--(1) कोई पुरुष निम्नलिखित में से कोई भी कृत्य करता है--"

यह माना गया,

"यह सुरक्षित रूप से स्वीकार किया जा सकता है कि कोई महिला आईपीसी की धारा 354ए के तहत आरोपी नहीं हो सकती, जैसा कि उक्त अधिनियम में प्रयुक्त शब्दावली से स्पष्ट है। यह अपराध जेंडर स्पेफिक (Gender-Specific) है। इस अपराध के तहत केवल पुरुष पर ही मुकदमा चलाया जा सकता है। आईपीसी की धारा 354ए की उप-धाराओं (1), (2) और (3) में प्रयुक्त विशिष्ट शब्द "पुरुष" के परिणामस्वरूप कोई महिला आरोपी इस धारा की शरारत के अंतर्गत नहीं आएगी। तदनुसार, आईपीसी की धारा 354ए के तहत दंडनीय अपराध का आरोप वर्तमान याचिकाकर्ता के खिलाफ लागू नहीं होता है।"

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ताओं ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 401 के साथ धारा 482 के तहत यह आपराधिक पुनर्विचार आवेदन दायर किया, जिसमें उनके खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही रद्द करने की मांग की गई।

15 सितंबर 2018 को विपक्षी पक्ष संख्या 2 ने याचिकाकर्ता समेत चार आरोपियों के खिलाफ लिखित शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि समीर पंडित और याचिकाकर्ता ने वास्तविक शिकायतकर्ता की मां को प्रताड़ित करने की कोशिश की।

यह कहा गया कि आरोपी समीर पंडित उसके घर आया और वास्तविक शिकायतकर्ता के कमरे में घुस गया, जब वह अपनी ड्रेस बदल रही थी और आरोपी व्यक्ति ने गलत इरादे से उसके साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की।

यह तर्क दिया गया कि समीर पंडित याचिकाकर्ता का जैविक पिता था और एफआईआर में याचिकाकर्ता के खिलाफ एक और आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता समीर पंडित की बेटी होने के नाते अन्य लोगों के साथ हमेशा शिकायतकर्ता की मां को उकसाती और प्रताड़ित करती थी।

यह भी याचिकाकर्ता का मामला है कि उचित जांच के बिना आईपीसी की धारा 354ए/506/34 के तहत याचिकाकर्ता समेत चार आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया, जबकि याचिकाकर्ता पूरी तरह से निर्दोष थी। कथित अपराधों में उसकी कोई भूमिका नहीं थी।

यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ मामले को आगे बढ़ाने के लिए आरोप पत्र में पर्याप्त सामग्री उपलब्ध नहीं थी और याचिकाकर्ता के खिलाफ पूरी कार्यवाही कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, जिसमें तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

इसके अलावा, यह भी तर्क दिया गया कि धारा 354 ए महिला आरोपी के खिलाफ लागू नहीं हो सकती। यह केवल पुरुष आरोपी के खिलाफ लागू हो सकती है, क्योंकि धारा "पुरुष" शब्द से शुरू होती है। इस प्रकार, याचिकाकर्ता के खिलाफ पूरी कार्यवाही रद्द करने की आवश्यकता है।

राज्य की ओर से पेश हुए वकीलों ने प्रस्तुत किया कि एफआईआर में याचिकाकर्ता सहित आरोपी व्यक्तियों का नाम है, जिन्होंने अपने सामान्य इरादे को आगे बढ़ाते हुए शिकायतकर्ता और उसकी मां को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी।

यह कहा गया कि समीर पंडित ने शिकायतकर्ता के निवास पर यौन संबंध बनाने की मांग करके उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाई और यौन संबंध बनाने की ऐसी अवैध मांग के लिए याचिकाकर्ता सामान्य इरादे को आगे बढ़ाते हुए कथित अपराध में शामिल था, इसलिए धारा 354 ए वर्तमान याचिकाकर्ता के खिलाफ लागू होती है।

पक्षकारों की सुनवाई के बाद न्यायालय ने माना कि वर्तमान याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 354ए/506/34 के तहत दंडनीय अपराध के लिए एक भी आरोप नहीं लगाया गया और आरोप केवल समीर पंडित के खिलाफ है।

न्यायालय ने कहा,

जांच के दौरान एकत्र किए गए संपूर्ण साक्ष्य से इस न्यायालय को शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों के संबंध में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई विशेष भूमिका नहीं मिली। ऐसी परिस्थितियों में वर्तमान याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए सभी आरोप केवल आरोपी पर बदला लेने के लिए और निजी और व्यक्तिगत रंजिश के कारण उसे परेशान करने के उद्देश्य से लगाए गए हैं।

उपरोक्त टिप्पणियों के बावजूद, न्यायालय ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को भी स्वीकार कर लिया कि जानबूझकर किसी महिला को आईपीसी की धारा 354ए के तहत मामले में आरोपी के रूप में नहीं फंसाया जा सकता। इस प्रकार उसके खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी गई।

केस टाइटल: सुस्मिता पंडित बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य

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