कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट ने 'स्टिंग वीडियो' में स्थानीय BJP नेता द्वारा साक्ष्य गढ़ने का आरोप लगाने वाले कार्यकर्ता को रिहा किया
कलकत्ता हाईकोर्ट ने स्थानीय संदेशखाली नेता मम्पी दास को रिहा करने का आदेश दिया। दास पर स्टिंग ऑपरेशन वीडियो में भारतीय जनता (पार्टी) BJP नेता गंगाधर कयाल के आरोप सामने आने के बाद पुलिस ने गिरफ्तार किया, जिसमें दावा किया गया कि दास गवाहों को झूठे सबूत देने के लिए धमकाने और महिलाओं के खिलाफ साजिश रचने में महत्वपूर्ण थे।
गौरतलब है कि CBI पूर्व पंचायत प्रधान शाहजहां शेख द्वारा स्थानीय लोगों के खिलाफ किए गए बलात्कार और जमीन हड़पने के आरोपों की जांच कर रही है।
जस्टिस जय सेनगुप्ता की एकल पीठ ने यह देखते हुए दास को रिहा करने का आदेश दिया कि जबकि उसे गैर-जमानती धारा 195 ए सीआरपीसी के तहत गिरफ्तार किया गया, जो गवाहों को झूठे सबूत प्रस्तुत करने के लिए धमकी देने से संबंधित है, उसके खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं था, जिसे दोनों पुलिस और मजिस्ट्रेट ने नजरअंदाज कर दिया था।
कोर्ट ने कहा:
दंड संहिता की धारा 195ए केवल तभी लागू होगी, जब कोई आरोप हो कि किसी गवाह या शिकायतकर्ता को अदालत में झूठा सबूत देने की धमकी दी गई। ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि दंड संहिता की धारा 195ए का एकमात्र गैर-जमानती आरोप प्रथम दृष्टया भी बनता, क्योंकि ऐसे प्रावधान के संदर्भ में कोई लागू आरोप नहीं लगाया गया। फिर भी याचिकाकर्ता को ऐसे आरोप के आधार पर हिरासत में ले लिया गया और वह अभी भी हिरासत में है। ऐसी अत्यावश्यक परिस्थितियों में यह न्यायालय याचिकाकर्ता को अंतरिम जमानत पर रिहा करने की अपनी असाधारण शक्ति का प्रयोग करने का इरादा रखता है।
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता ने सजहान एसके और उसके साथियों द्वारा महिलाओं के यौन शोषण और भूमि हड़पने के संबंध में संदेशखाली आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। इसके बाद यह कहा गया कि उसे पता चला कि जवाबी कार्रवाई के रूप में संदेशखाली पुलिस स्टेशन में उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया।
यह तर्क दिया गया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 195ए के तहत किसी भी अपराध के लिए सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत याचिकाकर्ता को कोई नोटिस नहीं दिया गया, लेकिन प्रावधान बाद में जोड़ा गया।
यह कहा गया कि यह सोचकर कि मामला केवल जमानती प्रावधानों के तहत था जैसा कि संहिता की धारा 41ए के तहत नोटिस में उल्लिखित है, याचिकाकर्ता आत्मसमर्पण करने और जमानत प्राप्त करने के लिए अदालत में गया।
हालांकि, जब उसने आत्मसमर्पण किया तो कहा गया कि उसे बताया गया कि दंड संहिता की धारा 195ए भी जोड़ी गई। हालांकि केस डायरी प्रस्तुत नहीं की गई, फिर भी उसे हिरासत में ले लिया गया और रिमांड पर ले लिया गया।
यह कहा गया कि यह पूरी तरह से प्रक्रिया का दुरुपयोग था, क्योंकि आईपीसी की धारा 195ए में स्पष्ट था कि यह केवल तभी लागू होगा, जब किसी शिकायतकर्ता या गवाह को मुकदमे के दौरान झूठे सबूत देने के लिए धमकी दी गई।
यह तर्क दिया गया कि न तो पुलिस और न ही मजिस्ट्रेट ने अर्नब मनोरंजन गोस्वामी बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2020) मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन किया।
राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट जनरल ने प्रस्तुत किया कि नियमित आपराधिक न्यायालय द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने के लिए अन्य साधन भी हैं। आमतौर पर रिट कोर्ट को ऐसी चुनौती पर विचार नहीं करना चाहिए। याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर प्रथम दृष्टया मामला बनता है और संहिता की धारा 41ए के तहत नोटिस दिया गया, लेकिन इसका अनुपालन नहीं किया गया।
हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि वर्तमान मामले में प्रारंभिक जांच उपलब्ध धाराओं के तहत थी। इसलिए याचिकाकर्ता उसी के संबंध में आत्मसमर्पण करने के लिए अदालत में गया।
यह कहा गया कि याचिकाकर्ता यह देखकर आश्चर्यचकित था कि आईपीसी की धारा 195ए का आरोप भी जोड़ा गया। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि यह कानून की स्थापित स्थिति है कि दंड संहिता की धारा 195ए केवल तभी लागू होगी, जब कोई आरोप हो कि किसी गवाह या शिकायतकर्ता को अदालत में झूठे सबूत देने की धमकी दी गई।
जमानत और रिमांड के प्रश्न पर पूरी सावधानी से विचार किया जाना चाहिए। दरअसल, किसी आरोपी को रिमांड पर लेना कोरी औपचारिकता नहीं हो सकती। ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि दंड संहिता की धारा 195ए का एकमात्र गैर-जमानती आरोप प्रथम दृष्टया भी बनता है, क्योंकि ऐसे प्रावधान के संदर्भ में कोई लागू आरोप नहीं लगाया गया। फिर भी याचिकाकर्ता को ऐसे आरोप के आधार पर हिरासत में ले लिया गया और वह अभी भी हिरासत में है।
तदनुसार, अदालत ने धारा 195ए के तहत कार्यवाही पर रोक लगाई और याचिकाकर्ता की रिहाई का आदेश दिया।
केस टाइटल: पियाली दास @ मम्पी दास बनाम। पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य।