कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा, विशिष्ट नीति के अभाव में शहरी स्थानीय निकायों के तहत पदों पर अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा सकती
कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस हिरण्मय भट्टाचार्य की एकल पीठ ने माना कि शहरी स्थानीय निकायों के तहत पदों पर अनुकंपा नियुक्तियों को नियंत्रित करने के लिए विशिष्ट नीति का अभाव है, इसलिए ऐसे पदों पर अनुकंपा नियुक्तियां नहीं दी जा सकती हैं।
तथ्य
मामले में शामिल कर्मचारी आरामबाग नगर पालिका में कार्यरत था। 4 नवंबर, 2014 को सेवा में रहते हुए उसकी मृत्यु हो गई। उसकी तलाकशुदा बेटी (याचिकाकर्ता) ने अपने पिता के निधन के बाद अनुकंपा नियुक्ति की मांग की। वह मृतक की आश्रित थी। इसलिए उसने शहरी स्थानीय निकायों के लिए अनुकंपा नियुक्ति नीति के तहत रोजगार के लिए आवेदन किया।
स्थानीय निकायों के निदेशक ने 16 अगस्त, 2022 को उसके आवेदन पर सुनवाई की और उसे खारिज कर दिया। अस्वीकृति का निर्णय उसे 30 अगस्त, 2022 को सूचित किया गया। आवेदन को खारिज कर दिया गया क्योंकि शहरी विकास और नगर निगम मामलों के विभाग के तहत शहरी स्थानीय निकायों के कर्मचारियों के परिवार के सदस्यों के लिए नियुक्तियों की अनुमति देने वाली कोई सरकारी नीति नहीं थी। इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने प्रतिवादियों को उसके आवेदन की फिर से जांच करने का निर्देश दिया। हालांकि, उसका आवेदन फिर से खारिज कर दिया गया।
इससे व्यथित होकर रिट याचिका दायर की गई। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह अपने मृत पिता के आश्रित के रूप में अनुकंपा नियुक्ति की हकदार थी। आगे तर्क दिया गया कि अधिसूचना संख्या 303-ईएमपी/1एम-10/2000, 21 अगस्त, 2002 के अनुसार, शहरी स्थानीय निकायों के मृत कर्मचारियों के परिवार के सदस्यों को अनुकंपा नियुक्ति की मांग करने की अनुमति थी।
दूसरी ओर, प्रतिवादी राज्य द्वारा यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता शहरी स्थानीय निकायों के कर्मचारियों के लिए ऐसी नियुक्तियों को नियंत्रित करने वाली नीति की अनुपस्थिति के कारण अनुकंपा नियुक्ति की हकदार नहीं थी। यह तर्क दिया गया कि अधिसूचना संख्या 303-ईएमपी/1एम-10/2000, 21 अगस्त, 2002 को अधिसूचना संख्या 251-ईएमपी, 3 दिसंबर, 2013 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।
राज्य द्वारा यह भी प्रस्तुत किया गया कि पश्चिम बंगाल राज्य बनाम देबब्रत तिवारी एवं अन्य के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 303-ईएमपी जैसे परिपत्र स्थानीय अधिकारियों पर लागू नहीं होते। यह भी तर्क दिया गया कि वित्त विभाग ने सूचित किया था कि श्रम विभाग के आदेश संख्या 251-ईएमपी के लाभ दिनांक 3 दिसंबर, 2013 के अनुसार नगरपालिका कर्मचारियों पर लागू नहीं होंगे।
निष्कर्ष
न्यायालय ने यह देखा कि पश्चिम बंगाल राज्य में शहरी स्थानीय निकायों के लिए एक शासी नीति का अभाव था।
पश्चिम बंगाल राज्य बनाम देबब्रत तिवारी एवं अन्य के मामले पर भरोसा किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2002 में जारी परिपत्र संख्या 301-Emp, 302-Emp और 303-Emp केवल राज्य सरकार के विभागों पर लागू होते हैं, न कि स्थानीय प्राधिकरणों पर, जैसा कि परिपत्र संख्या 142-Emp. (1 नवंबर 2007) के अनुसार है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि स्थानीय प्राधिकरणों में अनुकंपा नियुक्तियों के लिए ऐसे प्राधिकरणों द्वारा तैयार की गई विशिष्ट नीति की आवश्यकता होती है। इसके अलावा 1 नवंबर, 2007 के परिपत्र संख्या 142-Emp ने स्थानीय प्राधिकरणों में अनुकंपा नियुक्तियों के लिए विशिष्ट नीति तैयार करने की अनुमति दी।
न्यायालय ने देखा कि अधिसूचना संख्या 251-Emp द्वारा सभी पूर्व अधिसूचनाओं को हटा दिया गया था। इसलिए 2002 का परिपत्र अब लागू नहीं था। न्यायालय ने माना कि अनुकंपा नियुक्तियां केवल मौजूदा नीति के अनुसार ही की जा सकती हैं। इसलिए, याचिकाकर्ता के पास ऐसी नीति के अभाव में अनुकंपा के आधार पर रोजगार का दावा करने का कोई लागू करने योग्य अधिकार नहीं था।
अदालत ने आगे कहा कि स्थानीय निकाय निदेशक द्वारा नगर निगम कर्मचारियों के लिए लागू अनुकंपा नियुक्ति की नीति के अभाव के आधार पर याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज करना सही था। इसलिए स्थानीय निकाय निदेशक के आदेश को अदालत ने बरकरार रखा।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ रिट याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल और नंबर: चैताली रॉय (मंडल) बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य | WPA/20811/2022