कलकत्ता हाईकोर्ट ने बंगाल सरकार को सार्वजनिक रोजगार में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए 1% आरक्षण सुनिश्चित करने का निर्देश दिया
कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को सुप्रीम कोर्ट के NALSA दिशा-निर्देशों के अनुसार राज्य में सार्वजनिक रोजगार में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए 1% आरक्षण सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
जस्टिस राजशेखर मंथा की एकल पीठ ने कहा,
“यह न्यायालय नोट करता है कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ एवं अन्य (2014) के अनुच्छेद 135 (3) के अनुसार राज्य में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अभी तक आरक्षण नहीं दिया गया। उन परिस्थितियों में यह न्यायालय पश्चिम बंगाल सरकार के मुख्य सचिव को राज्य में सभी सार्वजनिक रोजगार में NALSA मामले में उल्लिखित व्यक्तियों की श्रेणी के लिए 1% आरक्षण सुनिश्चित करने का निर्देश देता है।”
न्यायालय ट्रांसजेंडर व्यक्ति की याचिका पर निर्णय दे रहा था, जिसने 2014 और 2022 में शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण की थी। लेकिन उसे काउंसलिंग प्रक्रिया या साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाया गया।
जस्टिस मंथा ने नालसा बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें संविधान के भाग III के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए उनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई।
यह देखा गया कि नालसा निर्णय में न्यायालय ने राज्य और संघ सरकारों को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा मानने और उन्हें सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण सहित सभी प्रकार के लाभ प्रदान करने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने आगे कहा कि हालांकि राज्य ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आरक्षण के लिए अपनी नीति तैयार की थी लेकिन इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार नहीं बनाया गया।
तदनुसार, इसने राज्य में सभी सार्वजनिक रोजगार में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए 1% आरक्षण बनाए रखने का निर्देश दिया और पश्चिम बंगाल प्राथमिक शिक्षा बोर्ड के सचिव को याचिकाकर्ता के इंटरव्यू और काउंसलिंग की व्यवस्था करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल- मृणाल बारिक बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।