हिरासत में यातना के आरोपों पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने स्टूडेंट्स की गिरफ्तारी पर उठाए सवाल

कलकत्ता हाईकोर्ट ने उत्तर बंगाल के एक महिला पुलिस थाने में तीन महिला कॉलेज छात्राओं की हिरासत और कथित पुलिस यातना को लेकर राज्य पुलिस द्वारा जवाब न दिए जाने पर चिंता व्यक्त की है।
जस्टिस तीरथंकर घोष ने टिप्पणी की,"अपने से पूछें कि उन्हें किस प्रावधान के तहत ले जाया गया था? आज सुबह मैं स्तब्ध रह गया जब एसडीपीओ रैंक के अधिकारी इसका जवाब नहीं दे सके। ऐसा नहीं है कि विरोध प्रदर्शन नहीं होते या कभी-कभी उग्र नहीं होते। ये सामान्य बातें हैं। उन्हें लंबे समय तक हिरासत में रखा गया, पुलिस को यह तय करने की प्रक्रिया में होना चाहिए कि यह संज्ञेय अपराध है या असंज्ञेय। आज मैं स्तब्ध था, यह एसडीपीओ रैंक का अधिकारी है, यह बहुत चिंताजनक है, उन्हें प्रशिक्षित किए जाने की आवश्यकता है, पुलिस कार्रवाई कर सकती है, लेकिन आपने किताब के किस प्रावधान के तहत कार्रवाई की,"
छात्राओं ने हाईकोर्ट का रुख किया और अपनी कथित अवैध हिरासत के खिलाफ याचिका दायर की। उन्होंने बताया कि जब वे अपने कॉलेज के बाहर राज्य की शिक्षा नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थीं, तब उन्हें हिरासत में ले लिया गया। इसी तरह के विरोध प्रदर्शन कोलकाता में भी हुए, जहां शिक्षा मंत्री ब्रत्या बसु के काफिले और प्रदर्शनकारी छात्रों के बीच झड़पें हुईं, जिससे कुछ छात्र घायल हो गए।
छात्राओं का दावा है कि उन्हें सुबह 10 बजे से रात 2 बजे तक हिरासत में रखा गया और इस दौरान महिला पुलिस अधिकारियों द्वारा उनके साथ क्रूरतापूर्वक मारपीट की गई और उनकी जाति को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की गई। छात्राओं की चिकित्सीय रिपोर्ट भी पेश की गई, जिसमें उनके शरीर पर कई चोटों के निशान पाए गए।
छात्राओं की ओर से पेश एडवोकेट ने दावा किया कि पुलिस हिरासत में रहते हुए उन्हें बेरहमी से पीटा गया और उन्हें पानी या स्वच्छता संबंधी सुविधाएं नहीं दी गईं। यह भी आरोप लगाया गया कि उन्हें डंडों से मारा गया, उनके ऊपर पैर रखे गए, एक-दूसरे को पीटने के लिए मजबूर किया गया और फिर रात 2 बजे बिना किसी कारण बताए थाने से जाने के लिए कह दिया गया।
एडवोकेट ने यह भी बताया कि जब इन छात्राओं ने अपने शहर में चिकित्सा उपचार लेना चाहा, तो उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी गई, जिससे उन्हें कोलकाता आकर एक चिकित्सा अधिकारी से रिपोर्ट लेनी पड़ी और अपनी शिकायत दर्ज करानी पड़ी। वकील ने सीसीटीवी फुटेज को रिकॉर्ड में लाने की मांग की और दलील दी कि जो कुछ हुआ, वह सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशानिर्देशों का उल्लंघन है।
राज्य के वकील ने पुलिस द्वारा की गई यातना के दावों को खारिज किया और कहा कि छात्राओं को विरोध प्रदर्शन के दौरान अशांति फैलाने के कारण हिरासत में लिया गया था और उनकी हिरासत में यातना झेलने की बातें असत्य हैं। राज्य की ओर से कोर्ट से अनुरोध किया गया कि उसे इन आरोपों का तथ्यों के आधार पर खंडन करने की अनुमति दी जाए।