जज के खिलाफ शिकायत मिलने के बाद हाईकोर्ट चीफ जस्टिस ने सूचीबद्ध मामला वापस लिया
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के जज के विरुद्ध शिकायत मिलने के पश्चात चीफ जस्टिस शील नागू ने भ्रष्टाचार के मामले में FIR रद्द करने की याचिका उसी दिन वापस ले ली, जिस दिन इसे निर्णय के लिए सूचीबद्ध किया गया था। चीफ जस्टिस ने इस निर्णय को "संस्था के हित में" तथा न्यायाधीश की "प्रतिष्ठा की रक्षा" के लिए बताया।
ऐसा करते हुए उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चीफ जस्टिस की "किसी विशेष मामले को किसी स्पेशल बेंच को आवंटित करने अथवा किसी विशेष मामले को किसी स्पेशल बेंच से वापस लेकर किसी अन्य जज को आवंटित करने की शक्ति असीमित है तथा न्यायिक जांच से मुक्त है"।
आदेश में कहा गया,
"यह मामला कुछ परेशान करने वाली परिस्थितियों में चीफ जस्टिस की एकल पीठ के समक्ष आया।"
आदेश में कहा गया कि एकल जज से "इस मामले को वापस लेने" का कारण शिकायत की प्राप्ति थी, (मौखिक और लिखित दोनों), जिसने चीफ जस्टिस को संबंधित एकल पीठ से इस मामले का रिकॉर्ड मंगवाने और 12 मई को अपराह्न 03.30 बजे चीफ जस्टिस की एकल पीठ गठित करने के लिए बाध्य किया।
आदेश में उल्लेख किया गया कि यह निर्णय "शिकायत को शांत करने, विवाद को समाप्त करने और मामले को यथासंभव शीघ्रता से तय करके संस्थान और संबंधित जज को किसी भी और शर्मिंदगी से बचाने" के लिए लिया गया था।
यह कहते हुए कि ऐसी शिकायतें 11वें घंटे में की जाती हैं, चीफ जस्टिस ने कहा,
"चीफ जस्टिस को इस सीमित समय में यह तय करना होता है कि कौन-सा कदम उठाया जाए। ऐसी स्थिति में उस पीठ की प्रतिष्ठा दांव पर होती है, जिसने मामले को वापस लेने के लिए "सुना और सुरक्षित रखा"। दूसरी ओर, संस्था की समग्र प्रतिष्ठा और न्यायिक प्रणाली में आम लोगों का विश्वास दांव पर होता है। इस विकट स्थिति में यदि चीफ जस्टिस बाद वाले विकल्प को चुनते हैं तो मेरी विनम्र और सुविचारित राय में चीफ जस्टिस अपनी शपथ और सार्वजनिक विश्वास के साथ खड़े हैं।"
मामला जब एकल जज से वापस लिया गया और चीफ जस्टिस के समक्ष सूचीबद्ध किया गया तो याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले पुनीत बाली और राकेश नेहरा के साथ सीनियर वकील मुकुल रोहतगी ने प्रारंभिक आपत्ति उठाई कि चीफ जस्टिस की एकल पीठ उस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती, जिसे अन्य एकल पीठ द्वारा अंतिम आदेश की घोषणा के लिए सुना, सुरक्षित रखा और सूचीबद्ध किया गया था।
आदेश में कहा गया कि चीफ जस्टिस को कुछ शिकायतें प्राप्त हुईं और इन शिकायतों ने उन्हें "संस्था के हित" में तथा एकल जज की प्रतिष्ठा और गरिमा को बनाए रखने के लिए आपातकालीन कदम उठाने के लिए "मजबूर" किया।
न्यायालय ने कहा,
चूंकि मामले की सुनवाई 2 मई को संबंधित एकल जज द्वारा की गई और उसे सुरक्षित रखा गया था तथा शिकायतों की जानकारी चीफ जस्टिस को 08-09 मई को देर से मिली थी, इसलिए "प्रतिक्रिया के लिए बहुत कम समय उपलब्ध था" और चीफ जस्टिस ने 10 मई को प्रशासनिक आदेश पारित करके एकल पीठ से तत्काल मामले को वापस लेने का "कठोर" कदम उठाया।
सीनियर एडवोकेट द्वारा की गई आपत्तियों को खारिज करते हुए चीफ जस्टिस नागू ने कहा,
"चीफ जस्टिस रोस्टर के स्वामी हैं, लेकिन एक बार जब चीफ जस्टिस द्वारा रोस्टर या प्रशासनिक आदेश के माध्यम से किसी मामले को किसी स्पेशल बेंच को सौंप दिया जाता है तो वह विशेष मामला उसके निर्णय तक निर्दिष्ट पीठ के अनन्य अधिकार क्षेत्र में आ जाता है, सिवाय इसके कि रोस्टर में परिवर्तन किया जाता है या चीफ जस्टिस उस विशेष मामले को किसी अन्य पीठ को आवंटित करते हैं।"
न्यायालय ने कहा कि पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के लिए किसी भी मामले को वापस लेने, जिसकी सुनवाई किसी स्पेशल बेंच द्वारा की गई हो तथा जिसे सुरक्षित रखा गया हो तथा वापस लिए गए मामले को किसी जज या चीफ जस्टिस की एकल पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने पर कोई स्पष्ट या निहित प्रतिबंध नहीं है।
चीफ जस्टिस नागू ने इस बात पर प्रकाश डाला कि वर्तमान मामले से पता चलता है कि चीफ जस्टिस ने संस्था की गरिमा और सम्मान तथा जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए "तत्काल मामले को वापस लेने का आपातकालीन कदम उठाया, जिसकी सुनवाई की गई थी तथा जिसे निर्णय सुनाने के लिए सुरक्षित रखा गया तथा उसे पुनः सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस की एकल पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया।"
इसने आगे स्पष्ट किया कि यदि चीफ जस्टिस ने पूर्वोक्त रूप से निवारक आपातकालीन कदम नहीं उठाए होते तो चीफ जस्टिस अपने कर्तव्य में विफल होते तथा अपने द्वारा ली गई शपथ का उल्लंघन करते।
चीफ जस्टिस ने कहा,
"सीमित प्रतिक्रिया समय में चीफ जस्टिस के लिए उपलब्ध एकमात्र उपाय एकल पीठ से सुने गए तथा सुरक्षित रखे गए मामले को वापस लेना था... ताकि उसे किसी अन्य एकल पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जा सके।"
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि रोस्टर बनाने/संशोधित करने के लिए चीफ जस्टिस को उपलब्ध प्रशासनिक शक्ति में किसी भी पीठ से मामले सौंपने और वापस लेने की शक्ति भी शामिल है।
इसने कहा,
"यदि इस शक्ति के अपवाद को उन मामलों को छोड़कर स्वीकार किया जाता है, जो सुने और आरक्षित हैं, तो इस शक्ति के पीछे का उद्देश्य विफल हो जाएगा।"
उपर्युक्त के आलोक में न्यायालय ने मामले को निर्णय के लिए सूचीबद्ध किए जाने से पहले पीठ से वापस लेने पर की गई सभी आपत्तियों को खारिज कर दिया और कहा, "मामले को 26.05.2025 को गुण-दोष के आधार पर सुनवाई के लिए पोस्ट करें।"
केस टाइटल: रूप बंसल बनाम हरियाणा राज्य