गोविंद पानसरे हत्याकांड मामले में ट्रायल की निगरानी नहीं करेंगे: बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, मामले में रोजाना सुनवाई का आदेश दिया
बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार (2 जनवरी) को कहा कि वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के नेता गोविंद पानसरे की हत्या मामले में ट्रायल की निगरानी जारी नहीं रखेगा, जिनकी अगस्त 2013 में कथित तौर पर दक्षिणपंथी चरमपंथियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
जस्टिस अजय गडकरी और कमल खता की खंडपीठ ने मुख्य आरोपी वीरेंद्र तावड़े द्वारा दायर एक आवेदन का निपटारा करते हुए कहा कि आज की तारीख में जिस एकमात्र पहलू की जांच की जा रही है, उसमे फरार आरोपियों का ठिकाना है।
पीठ ने अपना आदेश सुनाते हुए कहा,
“इसके लिए इस अदालत द्वारा निगरानी की आवश्यकता नहीं है। हालांकि प्रस्तुतियों को ध्यान में रखते हुए हम मुकदमे में तेजी लाते हैं और मामले की सुनवाई रोजाना आधार पर करने का आदेश देते हैं।"
पीठ ने दिसंबर 2024 में अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए यह स्पष्ट कर दिया था कि मामले में ऐसा कुछ भी नहीं बचा है, जिस पर हाईकोर्ट द्वारा आगे निगरानी की आवश्यकता हो।
पीठ ने पानसरे के परिजनों की इस दलील पर भी विचार करने से इनकार कर दिया कि विशेष जांच दल (SIT) (2015 से मामले की जांच कर रहा है) और राज्य का आतंकवाद निरोधक दस्ता (ATS) जिसे 2022 में जांच का काम सौंपा गया पानसरे, तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर, पत्रकार गौरी लंकेश और एमएम कलबुर्गी की हत्याओं में सनातन संस्थान की भूमिका की जांच करने में विफल रहा।
हत्या के समय पानसरे की उम्र 82 वर्ष थी। 2016 तक समीर गायकवाड़ और मुख्य आरोपी वीरेंद्रसिंह तावड़े के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किए गए। 2019 में चार अन्य अमोल काले, वासुदेव सूर्यवशी, अमित दिगवेकर और भरत कुर्ने के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किए गए। उन पर हत्या, हत्या के प्रयास, आपराधिक साजिश और शस्त्र अधिनियम के उल्लंघन के आरोप लगाए गए हैं।
2015 से अब तक छह आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है, लेकिन एसआईटी अपराध के हथियारों, भागने वाली बाइक और फरार कथित शूटरों सारंग अकोलकर और विनय पवार का पता नहीं लगा पाई है।
अदालत का यह आदेश मुख्य आरोपी तावड़े द्वारा दायर एक आवेदन पर आया हैजिसने हाईकोर्ट से इस मामले में मुकदमे की निगरानी बंद करने का आग्रह किया था। उन्होंने तर्क दिया कि मुकदमे की निगरानी जारी रखकर, खासकर जब कई गवाहों की जांच हो चुकी है हाईकोर्ट निचली अदालत की शक्तियों का दुरुपयोग नहीं कर सकता।