बॉम्बे हाईकोर्ट ने बार काउंसिल से अपने मुवक्किल की पैरवी करने वाले वकीलों के खिलाफ दायर शिकायतों पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा

यह देखते हुए कि एक मां और बेटे ने एक वकील के खिलाफ शिकायत दर्ज की, जो उनकी बेटी/बहन के वैवाहिक विवाद में उनका प्रतिनिधित्व कर रहा था, बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा (BCMG) को वकीलों के खिलाफ अनावश्यक रूप से शिकायत दर्ज करने और उन्हें रिट याचिकाओं में प्रतिवादी के रूप में शामिल करने के मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करने का आदेश दिया।
जस्टिस गिरीश कुलकर्णी और जस्टिस अद्वैत सेठना की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं (मां और बेटे) द्वारा अपनी ही बेटी/बहन और उसके वकील के खिलाफ झूठी गवाही का मामला दर्ज करने की मांग करने वाली याचिका दायर करने के अधिकार पर सवाल उठाया। याचिका में वकील और उसके मुवक्किल के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की भी मांग की गई।
खंडपीठ ने प्रार्थनाओं पर गौर करने के बाद कहा कि उन्होंने न केवल उन्हें आश्चर्यचकित किया बल्कि उनकी न्यायिक अंतरात्मा को भी झकझोरा।
जजों ने 21 मार्च को पारित आदेश में दर्ज किया,
"हम याचिकाकर्ताओं की इस चालाकी से अधिक चिंतित हैं कि उन्होंने वकील को प्रतिवादी के रूप में शामिल किया और किस आधार पर उन्हें पक्षकार बनाया जा सकता है। इन कानूनी कार्यवाहियों का बचाव करने के लिए कहा जा सकता है। यह एक गंभीर और बड़ा मुद्दा है, क्योंकि एक अधिवक्ता के खिलाफ इस तरह की राहत मांगी जा रही है वह भी एक रिट याचिका में।"
खंडपीठ ने आगे कहा कि याचिकाकर्ताओं ने BCMG के समक्ष महिला वकील के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा अपनाई गई यह स्थिति न केवल न्याय प्रशासन के बारे में चिंता को सामने लाती है बल्कि पक्षों के वकीलो की सहायता से न्यायालय पक्षों के बीच विवादों का निपटारा भी करता है।
खंडपीठ ने आदेश में कहा,
"वकील अपने मुवक्किलों के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए न्यायालय के अधिकारी होते हैं, इसलिए जब वकीलों के खिलाफ इस तरह की कार्यवाही की जाती है तो यह चिंता का विषय है। इस मुद्दे की गहन जांच की आवश्यकता है। हम यह भी जांच करेंगे कि क्या यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग भी है जिस तरह से वकीलों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू की जाती है, जो अपने मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करते हैं प्रथम दृष्टया बिना किसी वास्तविक कारण के और वह भी एक महिला वकील के खिलाफ।”
आदेश में कहा गया कि याचिकाकर्ताओं ने महिला के वकील के खिलाफ केवल इसलिए शिकायत की क्योंकि उसने अपने अलग हुए पति की सहायता की, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह न्यायालय के आदेशों को बार-बार विफल कर रहा है और जो प्रथम दृष्टया भरण-पोषण का भुगतान न करके न्यायालय द्वारा पारित कई आदेशों की अवमानना का दोषी प्रतीत होता है। इसलिए न्यायाधीशों ने BCMG के अध्यक्ष को आदेश दिया कि वे अगली सुनवाई की तारीख पर तत्काल याचिका में कोई सीनियर वकील उनका प्रतिनिधित्व करे।
न्यायाधीशों ने आदेश में कहा,
"हम BCMG के अध्यक्ष को निर्देश देते हैं कि वे सीनियर वकीलको नियुक्त करें, जो वकीलों और विशेष रूप से महिला वकीलों के व्यापक हित में BCMG का प्रतिनिधित्व करेगा इस तथ्य पर विचार करते हुए कि इस न्यायालय के वकीलों को ऐसी कार्यवाही में पक्ष बनाया जा रहा है और उनके खिलाफ शिकायतें दर्ज की जा रही हैं। यदि वादियों की ओर से इस तरह की कार्रवाइयों की अनुमति दी जाती है,l तो क्या BCMG को कोई रुख अपनाने की आवश्यकता है, यह भी एक मुद्दा है।"
इसके अलावा जजों ने सीनियर वकील अनिल अंतुरकर को वर्तमान कार्यवाही में न्यायालय की सहायता करने और आदेश में उल्लेखित बड़े कानूनी मुद्दों पर ध्यान देने के लिए एमिकस क्यूरी के रूप में उपस्थित होने के लिए कहा।
न्यायाधीशों ने सीनियर वकील अशोक मुंदरगी को भी कार्यवाही में लागू आपराधिक कानून के निहितार्थ पर न्यायालय की सहायता करने के लिए नियुक्त किया जो कि वर्तमान याचिका में रजिस्ट्रार जनरल को प्रथम प्रतिवादी के रूप में शामिल करने सहित की गई प्रार्थनाओं के संदर्भ में है।
जजों ने कहा,
"हम ऐसा आदेश पारित करने के लिए बाध्य हैं, क्योंकि हमने पाया है कि ऐसी कार्यवाही न केवल न्याय प्रशासन से संबंधित है बल्कि वकीलों के अधिकारों और विशेषाधिकारों से भी संबंधित है, जो दिन-प्रतिदिन इस न्यायालय के समक्ष उपस्थित होते हैं।"
इस बीच खंडपीठ ने यह भी कहा कि वैवाहिक विवाद में शामिल महिला के पति ने भरण-पोषण राशि का भुगतान करने से सफलतापूर्वक परहेज किया और हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों की खुलेआम अवहेलना की है।
खंडपीठ ने आदेश में कहा,
"वर्तमान में वह दुबई में बताया जा रहा है, वह भी इस धारणा के तहत है कि दुबई में कानून के मजबूत हथियार उस तक नहीं पहुंच सकते। हालांकि उसकी ओर से ऐसी धारणा पूरी तरह से गलत है। खासकर तब जब वह एक भारतीय नागरिक है और भारतीय पासपोर्ट पर एक विदेशी देश में काम कर रहा है। हम इस मुद्दे पर अलग से विचार करेंगे।"
जजों ने मामले की सुनवाई 4 अप्रैल तक स्थगित करते हुए याचिकाकर्ताओं को वर्तमान कार्यवाही दायर करने में अपने अधिकार को स्पष्ट करते हुए हलफनामा दाखिल करने का भी आदेश दिया।