अनुसूचित जनजाति सूची में प्रविष्टि को यथावत पढ़ा जाना चाहिए, संविधान-पूर्व साक्ष्य को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जनजाति की स्थिति की लगातार प्रविष्टियाँ दर्शाने वाले संविधान-पूर्व दस्तावेज़ी साक्ष्य को केवल इस आधार पर नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि दावेदार आत्मीयता परीक्षण को पूरा करने में विफल रहे हैं। न्यायालय ने अनुसूचित जनजाति जाति प्रमाण पत्र जांच समिति के एक आदेश को रद्द कर दिया और उसे वेदांत वानखड़े और उनके पिता, जिन्होंने 'ठाकुर' अनुसूचित जनजाति से संबंधित होने का दावा किया था, उनको वैधता प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिया।
जस्टिस एम.एस. जावलकर और जस्टिस प्रवीण एस. पाटिल की खंडपीठ ने कहा कि आत्मीयता परीक्षण निर्णायक परीक्षण नहीं है। यह सुसंगत दस्तावेज़ी साक्ष्य से अधिक महत्वपूर्ण नहीं हो सकता, खासकर जब ऐसे साक्ष्य में 1950 से पहले के रिकॉर्ड शामिल हों जिन्हें सतर्कता प्रकोष्ठ द्वारा सत्यापित किया गया हो।
न्यायालय ने कहा,
“अनुसूचित जनजातियों की सूची में किसी जनजाति की प्रविष्टि को उसके वास्तविक स्वरूप में ही पढ़ा जाना चाहिए। न्यायालय सहित कोई भी प्राधिकारी उक्त प्रविष्टि में कुछ भी जोड़ या घटा नहीं सकता। हमारी सुविचारित राय में जाति जाँच समिति ने कई पूर्व-संवैधानिक दस्तावेजों को उचित महत्व नहीं दिया, जिनका कानून की दृष्टि में सबसे अधिक प्रमाणिक मूल्य है।”
याचिकाकर्ताओं ने 1912 से 1948 तक के कई दस्तावेजों का हवाला दिया था, जिनमें उनकी जाति "ठाकुर" दर्शाई गई और नाम में कुछ विसंगतियों को स्पष्ट करने के लिए 1939 का रजिस्टर्ड दत्तक ग्रहण विलेख प्रस्तुत किया। हालांकि, जांच समिति ने दस्तावेजी साक्ष्य, आत्मीयता और क्षेत्र प्रतिबंध के आधार पर उनके दावों को खारिज कर दिया।
न्यायालय ने कहा कि दशकों पुराने 17 दस्तावेजों को केवल दो असंगत प्रविष्टियों के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता, जिनकी उचित व्याख्या की गई। न्यायालय ने आगे कहा कि सतर्कता प्रकोष्ठ ने इन दस्तावेजों को वास्तविक पाया था। फिर भी समिति ने बिना किसी औचित्य के उन्हें खारिज कर दिया।
न्यायालय ने आगे कहा,
"याचिकाकर्ता ने आत्मीयता के संबंध में पूछे गए सभी प्रश्नों के उत्तर दिए। हालांकि, जाति जांच समिति ने वास्तव में इस पर विचार नहीं किया। अनुसूचित जनजाति "ठाकुर" के लक्षणों/विशेषताओं के संबंध में कोई वैज्ञानिक सामग्री उपलब्ध न होने के कारण जांच समिति द्वारा अभिलेखों में प्रस्तुत दस्तावेजों के बजाय आत्मीयता को महत्व देना अनुचित था।"
न्यायालय ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि समिति ने स्थापित कानूनी सिद्धांतों की अनदेखी की है। न्यायालय ने इस स्थिति पर अपनी नाराजगी व्यक्त की और टिप्पणी की कि यह एकमात्र ऐसा मामला नहीं है, जिसमें समिति ने इस तरह से कार्य किया हो; समिति दिशानिर्देशों के विपरीत कार्य कर रही है। 1950 से पहले के दस्तावेजों पर विश्वास न करके उनके वैध दावों को खारिज कर रही है।
हाईकोर्ट ने जांच समिति का 31.12.2021 का आदेश रद्द कर दिया और उसे दो सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ताओं को जाति वैधता प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिया।
Case Title: Vedant & Anr. v. Scheduled Tribe Caste Certificate Scrutiny Committee, Amravati & Ors. [Writ Petition Nos. 1849 of 2022 & 2360 of 2022]