BCI द्वारा बनाए गए कानूनी शिक्षा नियम एडवोकेट एक्ट के अनुरूप नहीं: लॉ कॉलेज ने निरीक्षण का विरोध करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया

बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा जारी निरीक्षण नोटिस के खिलाफ लॉ स्कूल द्वारा दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
नाथीबाई दामोदर ठाकरसे महिला यूनिवर्सिटी लॉ स्कूल द्वारा 2019 में दायर याचिका में कॉलेज के निरीक्षण के लिए BCI द्वारा जारी नोटिस को चुनौती दी गई। याचिकाकर्ता ने नोटिस पर आपत्ति जताई और तर्क दिया कि BCI के पास कॉलेज का निरीक्षण करने का अधिकार नहीं है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि BCI द्वारा बनाए गए कानूनी शिक्षा नियम स्वयं अधिवक्ता अधिनियम के अनुरूप नहीं हैं। उन्होंने तर्क दिया कि BCI ने नियमों में अपने अधिकार का दायरा बढ़ाया। इस प्रकार BCI एडवोकेट अधिनियम में अनुपस्थित होने पर निरीक्षण पर नियम नहीं बना सकता था।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि कॉलेज और यूनिवर्सिटी अलग-अलग संस्थाएं हैं। BCI कॉलेजों का निरीक्षण नहीं कर सकता है।
उन्होंने कहा कि कॉलेज का ऐसा निरीक्षण करने का अधिकार यूनिवर्सिटी के पास है क्योंकि कॉलेज उससे संबद्ध है।
जब न्यायालय ने पूछा कि कॉलेज का निरीक्षण कौन-सा अन्य निकाय कर सकता है तो याचिकाकर्ता ने कहा कि UGC और यूनिवर्सिटी द्वारा गठित समिति को लॉ महाविद्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार है।
इसके बाद न्यायालय ने पूछा कि क्या UGC द्वारा गठित समिति के पास लॉ एजुकेशन में विशेषज्ञता होगी। इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि वकीलों से बनी BCI के पास लॉ एजुकेशन संस्थानों का निरीक्षण करने के लिए अपेक्षित विशेषज्ञता का अभाव है।
इस याचिका का विरोध करते हुए BCI ने तर्क दिया कि संस्थानों में शिक्षा के मानक को बनाए रखने के लिए लॉ कालेजों का निरीक्षण करना उसका वैधानिक कर्तव्य है।
न्यायालय ने मामले में डॉ. मिलिंद साठे को न्यायमित्र नियुक्त किया था। कल सुनवाई के दौरान न्यायमित्र ने BCI को उपलब्ध विभिन्न शक्तियों के बारे में विस्तार से बताया।
उन्होंने कहा कि कानूनी शिक्षा को बनाए रखने में बीसीआई की प्रमुख भूमिका है और कानूनी शिक्षा के संबंध में BCI की मौलिक शक्तियों में लॉ महाविद्यालयों के निरीक्षण जैसी सहायक शक्तियां शामिल हैं।
एमिकस ने एडवोकेट एक्ट की धारा 7 का हवाला दिया, जो BCI के कार्य से संबंधित है। विशेष रूप से उन्होंने धारा 7(एच) का हवाला दिया, जिसमें प्रावधान है कि BCI का कार्य कानूनी शिक्षा को बढ़ावा देना और यूनिवर्सिटी तथा राज्य बार काउंसिल के परामर्श से ऐसी शिक्षा के मानक निर्धारित करना है।
इसके अतिरिक्त उन्होंने धारा 7(आई) का हवाला दिया जिसमें कहा गया कि BCI के कार्यों में ऐसे यूनिवर्सिटी को मान्यता देना शामिल है, जिनकी कानून में डिग्री एडवोकेट के रूप में नामांकन के लिए योग्यता होगी। इस उद्देश्य के लिए विश्वविद्यालयों का दौरा करना और उनका निरीक्षण करना शामिल है।
इसके अलावा एडवोकेट एक्ट की धारा 49(डी) का संदर्भ दिया गया, जिसमें प्रावधान है कि बीसीआई भारत में यूनिवर्सिटी द्वारा पालन किए जाने वाले कानूनी शिक्षा के मानकों और उस उद्देश्य के लिए यूनिवर्सिटी के निरीक्षण के लिए नियम बना सकता है।
एमिकस ने कानूनी शिक्षा नियम 2008 का भी हवाला दिया और कहा कि BCI नियमों के अनुसार लॉ कॉलेजों का निरीक्षण कर सकता है।
चीफ जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस एमएस कार्णिक की खंडपीठ ने दलीलें सुनीं और मामले को आदेश के लिए सुरक्षित रख लिया।
केस टाइटल: नाथीबाई दामोदर ठाकरसे महिला विश्वविद्यालय लॉ स्कूल बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (WP/1501/2019)