दो से अधिक बच्चों वाले कर्मचारी का परिवार अनुकंपा नियुक्ति के लिए अयोग्य: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मृतक पुलिसकर्मी के बेटे का दावा खारिज किया

Update: 2024-07-08 07:26 GMT

Bombay High Court 

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में मृतक पुलिसकर्मी के बेटे के लिए अनुकंपा नियुक्ति का दावा इस आधार पर खारिज किया कि कर्मचारी के दो से अधिक बच्चे हैं, जिससे उसका परिवार अनुकंपा नियुक्ति के लाभ के लिए अयोग्य हो गया।

जस्टिस एएस चंदुरकर और जस्टिस राजेश एस पाटिल की खंडपीठ ने महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण के फैसले को चुनौती देने वाली रिट याचिका खारिज की। उक्त याचिका में याचिकाकर्ताओं के अनुकंपा नियुक्ति का दावा खारिज करने को बरकरार रखा गया था।

न्यायालय ने कहा,

"प्रतिद्वंद्वी प्रस्तुतियों पर विचार करने और न्यायाधिकरण के फैसले को पढ़ने के बाद हमें नहीं लगता कि रिट क्षेत्राधिकार के प्रयोग में हस्तक्षेप करने का कोई मामला बनता है।"

यह मामला 11 फरवरी 2013 को याचिकाकर्ता विद्या अहिरे के पति की मृत्यु के बाद उठा। उनकी मृत्यु के बाद उन्होंने अपने बेटे मनीष के लिए अनुकंपा नियुक्ति की मांग की। हालांकि याचिकाकर्ताओं के अनुरोध को 11 जनवरी, 2019 को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि परिवार के दो से अधिक बच्चे हैं, जिससे उन्हें 28 मार्च, 2001 के सरकारी संकल्प के तहत लाभ प्राप्त करने से अयोग्य घोषित कर दिया गया।

जीआर में कहा गया कि 31 दिसंबर, 2001 के बाद परिवार में तीसरे बच्चे के जन्म की स्थिति में अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति नहीं दी जा सकती। ऐसा परिवार किसी भी अनुकंपा नियुक्ति के लिए अपात्र होगा।

याचिकाकर्ताओं ने इस निर्णय को यह कहते हुए चुनौती दी कि 2001 के जीआर का कोई प्रकाशन नहीं हुआ और मृतक को जीआर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि जी.आर. लागू नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि तीसरा बच्चा 7 अगस्त, 2002 को महाराष्ट्र सिविल सेवा (छोटे परिवार की घोषणा) नियम, 2005 के लागू होने से पहले पैदा हुआ था।

ये नियम समूह ए, बी, सी और डी पदों पर भर्ती के लिए अतिरिक्त आवश्यक आवश्यकता के रूप में छोटे परिवार की घोषणा का प्रावधान करते हैं। नियम यह प्रावधान करते हैं कि इन नियमों के लागू होने की तिथि पर दो से अधिक बच्चों वाले किसी भी व्यक्ति को नियुक्ति के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि ऐसे लागू होने की तिथि पर उसके बच्चों की संख्या में वृद्धि न हो।

ट्रिब्यूनल ने देखा कि ये नियम राज्य सरकार में पदों पर नियमित भर्ती के उद्देश्य से हैं। अनुकंपा नियुक्ति को नियंत्रित नहीं करते, जो कि जी.आर. 2001 द्वारा शासित विशेष योजना है। न्यायाधिकरण ने आगे कहा कि जी.आर. सरकार द्वारा लिया गया नीतिगत निर्णय है। इसकी अज्ञानता यह तर्क देने का आधार नहीं हो सकती कि यह आवेदक पर लागू नहीं है।

राज्य ने सुनीता दिनेश गायकवाड़ एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य के मामले में औरंगाबाद पीठ के फुल बैंच के फैसले का हवाला देकर न्यायाधिकरण के फैसले का बचाव किया, जिसमें 28 मार्च, 2001 के जी.आर. की वैधता बरकरार रखी गई। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता संकल्प की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते हैं।

हाईकोर्ट को ट्रिब्यूनल के फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं मिला। इसने देखा कि इस मामले में 2005 के नियम लागू नहीं थे, क्योंकि यह मुद्दा 28 मार्च, 2001 के जी.आर. द्वारा शासित है।

अदालत ने आगे कहा,

“यहां दिए गए तर्कों पर न्यायाधिकरण द्वारा सही ढंग से विचार किया गया, क्योंकि सरकारी प्रस्ताव का पूर्व प्रकाशन अनिवार्य नहीं दिखाया गया। याचिकाकर्ताओं के वकील द्वारा जिन निर्णयों पर भरोसा किया गया, वे वैधानिक नियमों के प्रकाशन से संबंधित हैं, जिसमें प्रकाशन की प्रक्रिया अनिवार्य की गई। वर्तमान मामले में हम सरकारी प्रस्ताव की प्रयोज्यता से चिंतित हैं, जिसके लिए इसे प्रकाशित करना आवश्यक नहीं है।”

केस टाइटल– विद्या सुनील अहिर एवं अन्य बनाम पुलिस आयुक्त, ठाणे

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