महाराष्ट्र में जेल के कैदियों के लिए ई-मुलाकात सिस्टम लागू करने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराएं: बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा

Update: 2024-05-09 07:10 GMT

Bombay High Court

बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह जेलों में ई-मुलाकात सिस्टम के कार्यान्वयन का समर्थन करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की उपलब्धता सुनिश्चित करें, जिससे वकील और परिवार के सदस्य वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करके कैदियों के साथ वर्चुअल तरीके से बात कर सकें।

चीफ जस्टिस देवेंद्र उपाध्याय और जस्टिस आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा राज्य भर में कैदियों के लिए ई-मुलाकात और स्मार्ट कार्ड कॉलिंग सुविधाओं के लिए सरकारी प्रस्ताव (GR) जारी करने के बाद पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज द्वारा दायर जनहित याचिका का निपटारा किया।

अदालत ने निर्देश दिया,

"राज्य सरकार 22 मार्च 2024 के सरकारी संकल्प में निहित प्रावधानों को महाराष्ट्र राज्य की सभी जेलों में लागू करेगी और जहां भी आवश्यक हो पर्याप्त बुनियादी ढांचा भी उपलब्ध कराएगी, जिससे 22 मार्च 2024 के सरकारी प्रस्ताव को लागू किया जा सके और जेलों में बंद सभी कैदियों को फ़ोन कॉल और ई-मुलाकात की सुविधा दी जा सके।"

22 मार्च 2024 के जीआर में पाकिस्तानी कैदियों को छोड़कर कैदियों के लिए फ़ोन कॉल और ई-मुलाकात (इलेक्ट्रॉनिक मीटिंग) सुविधाओं के प्रावधान हैं। जनहित याचिका में महाराष्ट्र की सभी जेलों में मॉडल जेल मैनुअल 2016 के खंड 8.38 में उल्लिखित टेलीफोन और इलेक्ट्रॉनिक संचार के प्रावधानों को लागू करने और इस तरह के संचार के तरीकों को बंद करने के निर्णय को चुनौती देने के निर्देश मांगे गए।

मॉडल जेल मैनुअल के खंड 8.38 के अनुसार जेल अधीक्षक कैदियों को उनके परिवारों और वकीलों से संपर्क करने के लिए भुगतान करने पर टेलीफोन या इलेक्ट्रॉनिक संचार उपकरणों का उपयोग करने की अनुमति दे सकते हैं। जनहित याचिका में ऐसे संचार तरीकों को बंद करने के फैसले को चुनौती दी गई, जिन्हें दिसंबर 2021 में अचानक रोक दिया गया।

याचिका में कहा गया है कि बंद करने से संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत विभिन्न संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।

जनहित याचिका में कहा गया कि महामारी के दौरान वॉयस और वीडियो कॉल का उपयोग उपलब्ध था, जिससे कैदी अपने परिवारों और कानूनी प्रतिनिधियों से संवाद कर सकते थे। हालांकि दिसंबर 2021 में यह सेवा रोक दी गई।

वर्तमान कार्यवाही के दौरान राज्य ने ऐसी सुविधाओं को बहाल करने के लिए जीआर के बारे में हाईकोर्ट को सूचित करते हुए हलफनामा प्रस्तुत किया।

पीयूसीएल के लिए वकील रेबेका गोंजाल्विस ने महाराष्ट्र की 60 जेलों में जीआर के कार्यान्वयन का समर्थन करने के लिए बुनियादी ढांचे की पर्याप्तता के बारे में चिंता जताई, जिनमें लगभग 37,000 कैदी हैं।

याचिकाकर्ताओं ने राज्य की सभी जेलों में इन प्रावधानों के समान कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के साथ-साथ जहां आवश्यक हो, वहां आवश्यक बुनियादी ढांचे के प्रावधान के लिए निर्देश मांगा।

न्यायालय ने GR में परिलक्षित राज्य सरकार के निर्णय की सराहना की तथा राज्य सरकार को महाराष्ट्र के सभी कारागारों में संकल्प में उल्लिखित प्रावधानों को लागू करने के निर्देश के साथ जनहित याचिका का निपटारा किया।

गोंसाल्वेस ने यह भी तर्क दिया कि GR के संचालन से पाकिस्तानी कैदियों को बाहर रखना गैरकानूनी है।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विशिष्ट बहिष्करणों के संबंध में किसी भी शिकायत को रिट याचिका दायर करने सहित उचित कानूनी उपायों के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है।

मामले की पृष्ठभूमि -

जनहित याचिका में तर्क दिया गया कि प्रौद्योगिकी तक पहुंच से वंचित करना विशेष रूप से जब इसे महामारी के दौरान सफलतापूर्वक लागू किया गया, मनमानी कार्रवाई के बराबर है तथा कैदियों के अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में परिवार तथा मित्रों के साथ संपर्क बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया गया। विशेष रूप से उन कैदियों के लिए जो अपने आवास से दूर हैं।

याचिका में कहा गया कि पिछले कुछ वर्षों में कैदियों के लिए संचार सुविधाओं में वृद्धिशील सुधार हुए हैं। 2014 में सिक्का बॉक्स सुविधा शुरू की गई। इसके बाद 2019 में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के निर्देशानुसार महीने में दो बार दस मिनट के लिए मासिक कॉल की सुविधा शुरू की गई।

याचिका में टेलीफोन और इलेक्ट्रॉनिक संचार को कैदियों के इंटरव्यू के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता देने की भी मांग की गई, जैसा कि 28 अप्रैल 1962 के सरकारी प्रस्ताव में उल्लिखित कैदियों को सुविधाएं नियमों में निर्दिष्ट है।

केस टाइटल - पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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