बॉम्बे हाईकोर्ट ने डॉक्टर को गलत OBC सर्टिफिकेट पर लिया गया MBBS एडमिशन बरकरार रखने की अनुमति दी, कहा- इससे राष्ट्रीय क्षति होगी

Update: 2024-05-13 05:21 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में डॉक्टर के MBBS रद्द करने से इनकार किया। हालांकि यह गलत जानकारी के आधार पर OBC-नॉन-क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट के तहत प्राप्त किया गया। कोर्ट ने कहा कि जब याचिकाकर्ता ने डॉक्टर के रूप में अर्हता प्राप्त कर ली है तो उसका एडमिशन रद्द करने से देश को नुकसान होगा।

अदालत नेक हा,

“याचिकाकर्ता ने MBBS का कोर्स पूरा कर लिया है। इसलिए, इस स्तर पर याचिकाकर्ता द्वारा प्राप्त योग्यता को वापस लेना उचित नहीं होगा, जब याचिकाकर्ता ने डॉक्टर के रूप में अर्हता प्राप्त कर ली है। हमारे देश में, जहां जनसंख्या के मुकाबले डॉक्टरों का अनुपात बहुत कम है, याचिकाकर्ता द्वारा प्राप्त योग्यता को वापस लेने की कोई भी कार्रवाई राष्ट्रीय क्षति होगी, क्योंकि इस देश के नागरिक डॉक्टर से वंचित हो जाएंगे।”

जस्टिस एएस चंदूरकर और जस्टिस जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने गैर-क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट रद्द कर दिया और उसके एडमिशन को ओपन श्रेणी में पुनः वर्गीकृत किया। साथ ही उसे फीस में अंतर के साथ-साथ झूठी प्रस्तुति के लिए 50,000 रुपये का जुर्माना भी भरने का निर्देश दिया।

अदालत ने कहा,

“हम मेडिकल कोर्स में एडमिशन में उच्च प्रतिस्पर्धा के प्रति सचेत हैं और हम ओपन कैटेगरी के तहत उक्त कोर्स में नामांकन के लिए होने वाले उच्च खर्च के बारे में भी सचेत हैं। हालांकि, यह उचित नहीं होगा कि स्टूडेंट को अनुचित साधन प्राप्त करना चाहिए और न ही यह ओबीसी कैटेगरी के तहत एडमिशन पाने के लिए अनुचित साधनों का हिस्सा बनने के लिए माता-पिता की कार्रवाई को उचित ठहराएगा।”

अदालत अवैध NCL सर्टिफिकेट के आधार पर MBBS कोर्स में याचिकाकर्ता का एडमिशन रद्द करने को चुनौती देने वाली रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

याचिकाकर्ता ने OBC-NCL सर्टिफिकेट के आधार पर OBC कैटेगरी के तहत शैक्षणिक वर्ष 2012-13 में लोकमान्य तिलक नगर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, सायन में MBBS कोर्ट में दाखिला लिया। इसके बाद ऐसे एडमिशन की जांच की मांग करने वाली रिट याचिका के बाद OBC कैटेगरी के तहत प्रवेशित सभी छात्रों के खिलाफ जांच शुरू की गई।

याचिकाकर्ता के पिता, जिन्होंने सर्टिफिकेट प्राप्त किया था, की जांच समिति द्वारा की गई। समिति ने वैवाहिक स्थिति और आय के संबंध में उनके बयानों में विसंगतियां पाईं। 2008 में अपनी पत्नी को तलाक देने का दावा करने के बावजूद, उन्होंने कहा कि वे अपने बच्चों की खातिर एक साथ रहते हैं, जिसे समिति ने विरोधाभासी माना। इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता के पिता ने अपनी पत्नी की रोजगार स्थिति को गलत तरीके से प्रस्तुत किया, यह दावा करते हुए कि उसकी कोई आय नहीं थी, जबकि वास्तव में वह निगम में कार्यरत थी।

जांच रिपोर्ट के आधार पर कॉलेज अधिकारियों ने 8 अक्टूबर, 2013 को सर्टिफिकेट रद्द कर दिया, जिसके बाद 1 फरवरी, 2014 को याचिकाकर्ता का एडमिशन रद्द कर दिया गया।

याचिकाकर्ता ने एडमिशन रद्द करने को चुनौती देते हुए 5 फरवरी 2014 को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने अंतरिम राहत देते हुए याचिकाकर्ता को अपना MBBS कोर्स जारी रखने की अनुमति दी। हालांकि, अदालत ने उन्हें OBC कैटेगरी का लाभ प्राप्त करने से प्रतिबंधित कर दिया।

याचिकाकर्ता ने MBBS कोर्स, इंटर्नशिप और प्रसूति एवं स्त्री रोग में डिप्लोमा कोर्स पूरा करने पर प्रकाश डाला। उसने तर्क दिया कि उसके पिता की गलत बयानी उनके इस विश्वास के कारण थी कि तलाक से उनकी पत्नी की आय पर विचार करने से छूट मिलती है।

उन्होंने तर्क दिया कि 14 अक्टूबर 2008 के सरकारी प्रस्ताव के अनुसार अकेले उनके पिता की आय सर्टिफिकेट प्राप्त करने के लिए निर्धारित सीमा से कम थी। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसके पिता ने सटीक जानकारी प्रदान की और सर्टिफिकेट और एडमिशन रद्द करने को चुनौती दी।

अदालत ने 25 जून, 2012 को NCL सर्टिफिकेट के लिए याचिकाकर्ता के पिता के आवेदन का विश्लेषण किया। अदालत ने कहा कि यह बताने के बावजूद कि उसकी पत्नी बिना किसी आय वाली गृहिणी थी, वास्तव में वह निगम में तृतीय श्रेणी कर्मचारी के रूप में कार्यरत है।

अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि नॉन-क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट के लिए ऊपरी आय सीमा के संबंध में सरकारी प्रस्ताव और कार्यालय ज्ञापन केवल एक माता-पिता की आय पर विचार करने को निर्दिष्ट नहीं करता है। इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि माता-पिता दोनों की आय को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

अदालत ने कहा कि यह गलत सूचना सर्टिफिकेट के लिए आय सीमा से अधिक होने से बचने का प्रयास है। इसके अतिरिक्त, अपनी पत्नी को तलाक देने का पिता का दावा उनके निरंतर सहवास के साक्ष्य के साथ विरोधाभासी है। कोर्ट ने इस दलील को विरोधाभासी पाया और खारिज कर दिया।

इस प्रकार, अदालत ने कहा कि नॉन-क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट आवेदन गलत जानकारी पर आधारित था, इसलिए इसे रद्द करना जरूरी है।

अदालत ने टिप्पणी की,

“यदि मेडिकल पेशा झूठी जानकारी की नींव पर आधारित है तो निश्चित रूप से यह महान पेशे पर धब्बा होगा। हमारे विचार में उस मामले में किसी भी स्टूडेंट की नींव गलत जानकारी और तथ्य को दबाने के आधार पर नहीं बनाई जानी चाहिए।”

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने फरवरी 2014 से अंतरिम अदालत के आदेशों के तहत अपना MBBS कोर्स पूरा किया था। अदालत ने अनुचित तरीकों को स्वीकार किया, जिसके द्वारा उसने एडमिशनल लिया और कॉलेज को उसे डिग्री प्रदान करने का निर्देश दिया, लेकिन उसके एडमिशन को "ओपन कैटेगरी" के रूप में पुनः वर्गीकृत कर दिया।

केस टाइटल- लुबना शौकत मुजावर बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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