महाराष्ट्र सहकारी समिति अधिनियम खुली सदस्यता को बढ़ावा देता है, यदि सभी शर्तें पूरी होती हैं तो आवेदक की अस्वीकृति अनुचित है: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पाया कि महाराष्ट्र सहकारी समिति अधिनियम, 1960 (एमसीएस अधिनियम) की धारा 23 'खुली सदस्यता' की अवधारणा को बढ़ावा देती है। इस प्रकार, आवेदकों द्वारा एमसीएस अधिनियम द्वारा अनिवार्य सभी शर्तों को पूरा करने के बावजूद, सहकारी बैंक द्वारा इसके प्रशासन को बाधित करने के कथित उद्देश्यों के आधार पर सदस्यता को अस्वीकार करना, एमसीएस अधिनियम की धारा 23 का उल्लंघन माना गया।
जस्टिस एसजी चपलगांवकर की एकल न्यायाधीश पीठ महाराष्ट्र के सहकारिता मंत्री के आदेश को याचिकाकर्ताओं द्वारा दी गई चुनौती पर विचार कर रही थी, जिसके द्वारा बैंक/प्रतिवादी द्वारा याचिकाकर्ताओं को अपनी सदस्यता देने से इनकार करने के निर्णय को बरकरार रखा गया था।
याचिकाकर्ताओं ने अहमदनगर मर्चेंट को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड (प्रतिवादी संख्या 4) की सदस्यता के लिए आवेदन किया था। हालांकि, बैंक के निदेशक मंडल ने याचिकाकर्ताओं को सदस्यता देने से इनकार करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया। उन्होंने सहकारिता आयुक्त और रजिस्ट्रार सहकारी समितियों (प्रतिवादी संख्या 2) के समक्ष अपील की, जिन्होंने अपील स्वीकार की और बैंक को याचिकाकर्ताओं को सदस्य के रूप में स्वीकार करने का निर्देश दिया।
बैंक ने अपीलीय प्राधिकारी/कैबिनेट मंत्री (प्रतिवादी संख्या 1) के समक्ष एमसीएस अधिनियम की धारा 154 के तहत एक संशोधन आवेदन दायर किया। कैबिनेट मंत्री ने बैंक की अपील स्वीकार की और इस प्रकार याचिकाकर्ताओं के सदस्यता आवेदन को खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ताओं ने बैंक की सदस्यता के लिए निर्धारित शुल्क और प्रभार का विधिवत भुगतान किया है। हालांकि, बैंक ने उनके आवेदनों को इस कारण से खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ताओं के थोक आवेदन बैंक के प्रशासन को बाधित करने के उद्देश्य से किए गए थे।
न्यायालय ने एमसीएस अधिनियम की धारा 23 का हवाला दिया और कहा कि यह प्रावधान 'खुली सदस्यता' की अवधारणा को बढ़ावा देता है, यानी सहकारी समिति किसी ऐसे व्यक्ति की सदस्यता से इनकार नहीं कर सकती है जिसने एमसीएस अधिनियम और उपनियमों के तहत मानदंडों को पूरा किया हो।
इस प्रकार न्यायालय ने माना कि बैंक का संकल्प एम.सी.एस. अधिनियम की धारा 23 तथा बैंक के उपनियमों का उल्लंघन है।
इसने यह भी माना कि कैबिनेट मंत्री के आदेश में आयुक्त के आदेश को पलटने के लिए उचित कारण नहीं दिए गए। इसने कहा कि कैबिनेट मंत्री ने एम.सी.एस. अधिनियम के उद्देश्य तथा दायरे पर विचार नहीं किया। इसके अलावा, "माननीय मंत्री द्वारा एम.सी.एस. अधिनियम, 1960 की धारा 23 के अंतर्गत खुली सदस्यता की अवधारणा के सामने याचिकाकर्ताओं को सदस्यता से वंचित करने या प्रबंध समिति के निर्णय को उचित ठहराने का कोई कारण दर्ज नहीं किया गया है।"
इस प्रकार न्यायालय ने बैंक के संकल्प तथा कैबिनेट मंत्री के आदेश को खारिज कर दिया। इसने बैंक को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को सदस्यता प्रदान की जाए, जब वे बैंक के उपनियमों में प्रदत्त शर्तों को पूरा करते हैं।
केस टाइटल: श्रीमती मधुरा मुकुल गंधे एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य के माननीय कैबिनेट मंत्री एवं अन्य। (रिट याचिका संख्या 10807/2016)