आगे विचार करने का निर्देश देने वाले हानिरहित आदेशों द्वारा मामलों का 'शीघ्र' निपटारा न्याय के लिए हानिकारक: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि किसी दावे या अभ्यावेदन पर विचार करने का निर्देश देने वाले प्रतीततः हानिरहित आदेशों द्वारा कार्यवाही के निपटारे से अत्यधिक बोझ से दबी न्यायिक संस्थाओं में मामलों का त्वरित या आसान निपटारा हो सकता है। हालांकि, ऐसे आदेश न्याय के लिए हानिकारक होने के बजाय अधिक हानिकारक हैं।
इस संबंध में जस्टिस तरलादा राजशेखर राव ने स्पष्ट किया,
“यह न्यायालय इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं है कि किसी दावे या अभ्यावेदन पर "विचार" करने का निर्देश देने से पहले न्यायालय/अधिकारियों को यह जाँच करनी चाहिए कि क्या दावा या अभ्यावेदन किसी "जीवित" मुद्दे के संदर्भ में है या किसी "मृत" या "पुराने" मुद्दे के संदर्भ में है। यदि यह किसी "मृत" या "पुराने" मुद्दे या विवाद के संदर्भ में है तो न्यायालय/अधिकरण को मामले को समाप्त कर देना चाहिए और विचार या पुनर्विचार का निर्देश नहीं देना चाहिए। यदि न्यायालय/अधिकरण मामले के गुण-दोष की स्वयं जांच किए बिना "विचार" करने का निर्देश देता है तो उसे यह स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसा विचार सीमा या विलंब और आलस्य से संबंधित किसी भी विवाद पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगा। यदि न्यायालय स्पष्ट रूप से ऐसा नहीं भी कहता है तो भी यही कानूनी स्थिति और प्रभाव होगा।”
Case Title: Somisetty Subbarayudu and others v. The State of AP