आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का निर्देश: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए छह माह में लागू करें आरक्षण लागू

Update: 2025-11-10 08:18 GMT

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय में राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह ट्रांसजेंडर समुदाय को सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण प्रदान करे और इसे छह महीनों के भीतर लागू करे। जस्टिस न्यापथी विजय ने कहा कि ट्रांसजेंडर समुदाय सामाजिक-आर्थिक रूप से अत्यधिक पिछड़ा है और समाज द्वारा उपेक्षित किए जाने के कारण राज्य पर नैतिक व संवैधानिक दायित्व है कि वह उनके लिए सकारात्मक कार्रवाई सुनिश्चित करे।

न्यायालय ने टिप्पणी की,

“भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की समस्याओं की उत्पत्ति परिवार और समाज में उन्हें मिलने वाले कलंक और भेदभाव में निहित है, जिसके परिणामस्वरूप वे सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों से बाहर कर दिए जाते हैं। ऐसे में उन्हें मुख्यधारा में लाना अत्यंत आवश्यक है और राज्य की ओर से सार्वजनिक रोजगार में सकारात्मक कार्रवाई अपनाई जानी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 16(4) और 16(4-A) का उद्देश्य भी इन्हीं सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों को समान अवसर दिलाना है। ट्रांसजेंडर समुदाय न केवल सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा है बल्कि समाज द्वारा त्यागा भी गया। ऐसी स्थिति में राज्य का नैतिक दायित्व है कि वह इनके पक्ष में सक्रिय कदम उठाए।”

याचिका का संदर्भ

अदालत ट्रांसजेंडर महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने स्कूल टीचर (भाषा) पद के लिए सभी आवश्यक योग्यता प्राप्त की थी लेकिन ट्रांसजेंडर श्रेणी के लिए कोई विशिष्ट रिक्ति अधिसूचित न होने के कारण उसका आवेदन विचार नहीं किया गया। 16,000 प्रस्तावित शिक्षक पदों (DSC-2025) में ट्रांसजेंडर अभ्यर्थियों के लिए कोई स्थान नहीं था।

याचिकाकर्ता ने इसे 2014 के NALSA बनाम संघ सरकार निर्णय के विरुद्ध बताया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता दी थी और उन्हें सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग (SEBC) मानते हुए शिक्षा व रोजगार में आरक्षण देने का निर्देश दिया था।

राज्य का पक्ष

राज्य सरकार ने तर्क दिया कि ट्रांसजेंडर्स के लिए विशेष आरक्षण प्रदान करना नीति का मामला है और वर्तमान नीति में ऐसी व्यवस्था न होने के कारण भर्ती प्रक्रिया को गलत नहीं ठहराया जा सकता।

अदालत की कठोर टिप्पणी

अदालत ने कहा कि ट्रांसजेंडर समुदाय देश के सबसे वंचित वर्गों में से एक है और दशकों से भेदभाव तथा सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद राज्य सरकार ने इस समुदाय के लिए न रोजगार में आरक्षण दिया और न शिक्षा संस्थानों में।

न्यायालय ने यह भी कहा कि NALSA निर्णय के बाद अब 10 वर्ष से अधिक समय बीत चुका है और राज्य इस मुद्दे को और टाल नहीं सकता।

जज ने कहा,

“राज्य सरकार को निर्देश दिया जाता है कि वह इस निर्णय की प्रति प्राप्त होने की तारीख से छह महीने के भीतर सार्वजनिक रोजगार में ट्रांसजेंडर्स के लिए आरक्षण प्रदान करे और याचिकाकर्ता के मामले पर स्कूल असिस्टेंट के पद के लिए नियुक्ति के संदर्भ में विचार करे।”

अदालत ने याचिका का निस्तारण करते हुए राज्य को स्पष्ट समयसीमा के भीतर आवश्यक नीति परिवर्तन लागू करने का आदेश दिया।

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