आर्थिक अक्षमता का बहाना नहीं चलेगा: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने ग्रेच्युटी रोकने को अनुच्छेद 21 का उल्लंघन बताया

Update: 2025-11-04 13:39 GMT

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट फैसला सुनाया कि राज्य संस्थाएं अपने कर्मचारियों को सेवांत लाभ (Terminal Benefits) प्रदान करने की वैधानिक बाध्यता को पूरा करने के लिए आर्थिक अक्षमता को बहाना नहीं बना सकती हैं। कोर्ट ने कहा कि इन लाभों को जारी करने की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) का उल्लंघन है।

जस्टिस महेश्वर राव कुंचेम ऐसे मामले की सुनवाई कर रहे थे जहां कृष्ण जिला सहकारी केंद्रीय बैंक (DCCB) जो कि अनुच्छेद 12 के तहत 'राज्य' के दायरे में आता है, उनके रिटायर कर्मचारियों को सेवांत लाभ देने से मना कर दिया गया। अस्वीकृति का कारण यह था कि प्राथमिक कृषि सहकारी समिति (PACS) जहां याचिकाकर्ताओं को शुरू में प्रतिनियुक्त किया गया, ने अपने अंशदान का हिस्सा जारी करने में वित्तीय अक्षमता व्यक्त की थी।

जस्टिस कुंचेम ने 2013 के समझौता ज्ञापन (Memorandum of Intent) का उल्लेख करते हुए कहा कि DCCB और PACS सहित सभी संबंधित उत्तरदाता अनुच्छेद 12 के तहत राज्य होने के नाते कर्मचारियों को सेवांत लाभ जारी करने के लिए बाध्य हैं। कोर्ट ने कहा कि कर्मचारियों ने अपनी सेवाएं प्रदान की हैं। इसलिए वे कानून के तहत सेवांत लाभ के हकदार हैं और धन की कमी या वित्तीय अक्षमता इस वैधानिक दायित्व को पूरा न करने का वैध बचाव नहीं हो सकता।

कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 की धारा 4(1) के अनुसार पांच वर्ष की निरंतर सेवा के बाद कर्मचारी रिटायर पर ग्रेच्युटी का हकदार होता है। इस अधिकार को कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के बिना छीना नहीं जा सकता है और विलंबित भुगतान पर ब्याज प्राप्त करने का अधिकार भी वैधानिक है, जो अधिकारियों के विवेक के अधीन नहीं है।

याचिकाकर्ता सत्तर, अस्सी और नब्बे वर्ष की आयु वर्ग के सीनियर सिटीजन हैं, कोर्ट ने अपनी चिंता व्यक्त की। कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आधुनिक समाज में सीनियर सिटीजन को सम्मान देने और गरिमा प्रदान करने के सदियों पुराने नैतिक और सांस्कृतिक मूल्य धीरे-धीरे कम हो रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि बैंक ने याचिकाकर्ताओं से उनकी सेवा अवधि के दौरान कार्य लिया लेकिन उनकी रिटायरमेंट की आयु के 14 साल से अधिक समय बीत जाने और कोई कानूनी बाधा न होने के बावजूद उन्हें उनके सेवांत लाभ नहीं दिए गए। कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की कि उत्तरदाताओं का अपने वैधानिक दायित्व से बचना याचिकाकर्ताओं के सांविधिक और संवैधानिक अधिकारों, विशेष रूप से अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त अधिकारों का उल्लंघन है।

PACS की वित्तीय अक्षमता के दावे को कानूनी रूप से अस्थिर बताते हुए कोर्ट ने कहा कि DCCB और PACS संयुक्त रूप से और अलग-अलग सेवांत लाभों के भुगतान के लिए जिम्मेदार हैं। कोर्ट ने आदेश दिया कि उत्तरदाता उस तारीख से 10% ब्याज के साथ सेवांत लाभ जारी करें जिस तारीख से राशि देय हुई। इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने उत्तरदाता (बैंक और PACS) में से प्रत्येक पर याचिकाकर्ताओं को 10,000 का हर्जाना भी लगाया।

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