बलात्कार केवल शारीरिक हमला नहीं, जमानत देने में उदार दृष्टिकोण समाज हित के खिलाफ: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2025-04-01 08:28 GMT
बलात्कार केवल शारीरिक हमला नहीं, जमानत देने में उदार दृष्टिकोण समाज हित के खिलाफ: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि बलात्कार का अपराध मात्र शारीरिक हमला नहीं माना जा सकता और ऐसे मामलों में जमानत देने में उदार दृष्टिकोण अपनाना समाज के हित के खिलाफ है।

इस संदर्भ मे जस्टिस टी. मल्लिकार्जुन राव की एकल पीठ ने टिप्पणी की,

"बलात्कार का अपराध कम से कम दस वर्षों के कठोर कारावास से दंडनीय है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। सामूहिक बलात्कार के लिए बीस वर्षों के कठोर कारावास की सजा होती है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। याचिकाकर्ता पर लगाया गया अपराध गंभीर प्रकृति का है। वास्तव में, बलात्कार को केवल एक शारीरिक हमले के रूप में नहीं देखा जा सकता। ऐसे मामलों में पीड़िता से प्रतिरोध की अपेक्षा नहीं की जा सकती। चूंकि पीड़िता किसी दुर्भावना या किसी के उकसावे के तहत कार्य नहीं कर रही थी, इसलिए बलात्कार के मामलों में जमानत देने को अलग दृष्टिकोण से देखना आवश्यक है।"

मामले की पृष्ठभूमि

कोर्ट FIR नंबर 1986/2025 के तहत आरोपी नंबर 1 (याचिकाकर्ता) की नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। FIR में भारतीय दंड संहिता (BNS) की धारा 70(1) (सामूहिक बलात्कार), 77 (वोयूरिज्म), 351(2) (आपराधिक धमकी), 69 (छलपूर्ण तरीके से यौन संबंध बनाना), और 75(1) (यौन उत्पीड़न) सहित सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धाराओं के तहत आरोप लगाए गए।

राज्य सरकार ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता जो कानून का फाइनल ईयर का स्टूडेंट है ने पीड़िता (एक तृतीय वर्ष की लॉ स्टूडेंट) के साथ प्रेम और विवाह का झूठा वादा कर धोखे से और जबरन शारीरिक संबंध बनाए। साथ ही उस पर कथित रूप से इस कृत्य का गुप्त रूप से वीडियो रिकॉर्ड करने का भी आरोप है।

इसके अलावा आरोप है कि याचिकाकर्ता के मित्रों ने पीड़िता को इन वीडियो को दिखाकर धमकाया और यदि उसने विरोध किया तो उन्हें सार्वजनिक करने की धमकी दी। इस दबाव में पीड़िता को याचिकाकर्ता के मित्रों (A2 से A4) के साथ भी जबरन यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गयाजिसे सामूहिक बलात्कार करार दिया गया।

लगातार हो रहे उत्पीड़न से तंग आकर पीड़िता ने आत्महत्या करने का प्रयास किया और अपने शयनकक्ष में फांसी लगाने की कोशिश की।

कोर्ट का अवलोकन

कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट भर दाखिल होना जमानत के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकता, बल्कि इसके साथ पूरे मामले की परिस्थितियों को देखना आवश्यक है।

"हालांकि चार्जशीट दाखिल हो चुकी है लेकिन पीड़िता के बयान स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ता की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करते हैं। याचिकाकर्ता पर अन्य अभियुक्तों को इस अपराध में भाग लेने में सहायता करने का आरोप है। चार्जशीट के अनुसार, आरोपी व्यक्तियों ने पीड़िता को शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया और याचिकाकर्ता ने इसे प्रोत्साहित या सुगम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।"

मेडिकल रिपोर्ट में हाल ही में यौन संबंध के सबूत नहीं मिले, लेकिन कोर्ट ने कहा कि यौन उत्पीड़न की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

निष्कर्ष

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जमानत देने से इनकार कर दिया।

मामला संख्या: CRIMINAL PETITION NO: 1986/2025

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