पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन पर कार्य स्थगित : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बार एसोसिएशन को कारण बताओ नोटिस जारी किया

Update: 2025-01-27 05:47 GMT
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन पर कार्य स्थगित : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बार एसोसिएशन को कारण बताओ नोटिस जारी किया

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को एडवोकेट कलेक्ट्रेट बार एसोसिएशन, कलेक्ट्रेट-अमरोहा द्वारा पारित शोक प्रस्ताव पर आपत्ति जताई, जिसमें भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के कारण न्यायिक कार्य से विरत रहने का निर्णय लिया गया।

जस्टिस जेजे मुनीर की पीठ ने बार एसोसिएशन के सचिव और अध्यक्ष को नोटिस जारी कर हलफनामे के माध्यम से कारण बताने को कहा कि इस मामले को अलग से मामला दर्ज करने के बाद आपराधिक अवमानना ​​मामलों की सुनवाई करने वाली पीठ के समक्ष क्यों न रखा जाए।

अदालत ने अपने आदेश में कहा,

"प्रथम दृष्टया, अध्यक्ष और सचिव, जिन्होंने दिनांक 27.12.2024 को शोक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें यह प्रस्ताव पारित गया कि एसोसिएशन के सदस्य न्यायिक कार्य से विरत रहेंगे, वे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करने के लिए उत्तरदायी हैं, जिसमें वकीलों के संघ द्वारा अपने सदस्यों को न्यायालय में अपने कर्तव्यों से विरत रहने के लिए कहने वाली किसी भी कार्रवाई पर रोक लगाई गई है।"

संदर्भ के लिए, एकल जज ने फैजाबाद बार एसोसिएशन बनाम बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश एवं अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले के साथ-साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेशों को ध्यान में रखते हुए यह आदेश पारित किया, जिसमें राज्य के बार एसोसिएशनों को काम से विरत रहने के लिए कोई प्रस्ताव पारित करने या किसी प्रस्ताव का समर्थन करने के खिलाफ सख्त चेतावनी दी गई।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में हाईकोर्ट से हड़तालों का स्वत: संज्ञान लेने और बार के पूरे शासी निकाय के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई शुरू करने को कहा था।

हाईकोर्ट ने पिछले साल अगस्त में निर्देश दिया कि राज्य के किसी भी वकील या उनके संघ द्वारा हड़ताल पर जाने या न्यायालय के किसी वकील/अधिकारी/कर्मचारी या उनके रिश्तेदारों की मृत्यु के कारण शोक संवेदना के कारण काम से विरत रहने के किसी भी कृत्य को आपराधिक अवमानना ​​का प्रत्यक्ष कृत्य माना जाएगा।

हाईकोर्ट मुख्य रूप से अमरोहा के चकबंदी उपनिदेशक द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दायर रिट याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें याचिकाकर्ता के चक को उस स्थान से हटा दिया गया, जहां वह उसके पति के चक से सटा हुआ।

दूसरी ओर, विवादित आदेश के तहत उसे एक चक दे ​​दिया गया, जिससे कथित तौर पर उसे उसकी मूल जोत से वंचित कर दिया गया।

प्रतिवादी 1 से 13 को नोटिस जारी करते हुए अदालत ने सूचीबद्ध होने की अगली तारीख तक विवादित आदेश निलंबित कर दिया। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि 7 फरवरी, 2025 तक याचिकाकर्ता को विवादित भूमि से बेदखल नहीं किया जाएगा।

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