मामला उस याचिका से जुड़ा था, जिसमें याचिकाकर्ता एक दिवंगत कर्मचारी का बेटा ने बैंक से करुणामूलक नियुक्ति की अपनी अर्जी पर जल्द निर्णय लेने की मांग की थी। पिता की मृत्यु 2019 में सेवा के दौरान हुई थी और याचिकाकर्ता ने 2020 में अपनी मां के जरिए आवेदन दिया। इसके बावजूद बैंक ने 2025 तक कोई फैसला नहीं किया जिसके बाद याचिकाकर्ता अदालत पहुंचा।
जस्टिस अजय भानोट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि बैंक की यह देरी उसके कर्तव्यों की अनदेखी है। अदालत ने कहा कि करुणामूलक नियुक्ति के मामलों में दो तरह की देरी होती है- एक आवेदन करने में देरी और दूसरी उस आवेदन पर कार्यवाही करने में देरी। यहां देरी बैंक की तरफ से है, जो उचित नहीं है।
अदालत ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता ने अदालत का दरवाजा देर से खटखटाया और लंबे समय तक परिवारिक मुकदमेबाज़ी में व्यस्त रहा। इसलिए याचिका को 'विलंब और लापरवाही' के आधार पर खारिज कर दिया गया।
इसके बावजूद कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बैंक की लापरवाही को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। इसलिए SBI पर 1 लाख का जुर्माना लगाया गया और कहा गया कि इतनी लंबी देरी अस्वीकार्य है।