इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश: स्मृति ईरानी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने वाली शूटर वर्तिका सिंह के खिलाफ जालसाजी का केस रद्द

Update: 2025-12-23 11:32 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने अंतरराष्ट्रीय शूटर और राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित वर्तिका सिंह के खिलाफ दर्ज जालसाजी और मानहानि से जुड़े आपराधिक मामलों को रद्द कर दिया।

अदालत ने कहा कि इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं है कि वर्तिका सिंह ने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) या तत्कालीन केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के कार्यालय के नाम से कथित पत्रों की जालसाजी की थी।

जस्टिस राजीव सिंह की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि पुलिस द्वारा लगाए गए आरोप महज अनुमान पर आधारित हैं और रिकॉर्ड पर ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है, जिससे यह साबित हो सके कि कथित फर्जी दस्तावेज वर्तिका सिंह द्वारा तैयार किए गए।

मामले की पृष्ठभूमि

वर्ष 2020 से जुड़ी है, जब वर्तिका सिंह का दावा है कि उनसे अप्रैल 2020 में राजनेश सिंह नामक व्यक्ति ने संपर्क किया था। उसने खुद को भाजपा का सक्रिय नेता और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का करीबी बताया था।

आरोप है कि राजनेश सिंह ने वर्तिका को राष्ट्रीय महिला आयोग का सदस्य बनाए जाने का झांसा दिया और व्हाट्सएप के जरिए कुछ दस्तावेज भेजे, जिनमें स्मृति ईरानी द्वारा प्रधानमंत्री को भेजे गए कथित अनुशंसा पत्र भी शामिल थे।

वर्तिका सिंह के अनुसार नवंबर 2020 में राजनेश सिंह ने नियुक्ति को अंतिम रूप देने के लिए उनसे 25 लाख रुपये की रिश्वत की मांग की।

रिश्वत देने से इनकार करने के बाद वर्तिका सिंह ने कथित धोखाधड़ी को उजागर करने का प्रयास किया और दस्तावेजों की सत्यता की जांच तथा रिश्वत की मांग की शिकायत लेकर संबंधित अधिकारियों से संपर्क किया।

इसके बाद वर्तिका सिंह के खिलाफ कई FIR दर्ज की गईं। इनमें से एक FIR अंडर सेक्रेटरी (जनरल एडमिनिस्ट्रेशन) द्वारा दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि वर्तिका सिंह ने राजनेश सिंह को बदनाम करने के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार किए।

इस एफआईआर को चुनौती देते हुए वर्तिका सिंह ने हाईकोर्ट का रुख किया। उन्होंने दलील दी कि वह स्वयं धोखाधड़ी की शिकार हैं और जांच अधिकारी ने बिना ठोस साक्ष्य के यांत्रिक तरीके से चार्जशीट दाखिल कर दी।

हाईकोर्ट ने केस डायरी, रिकॉर्ड और पक्षकारों की दलीलों पर विचार करते हुए कहा कि उपलब्ध सामग्री में वर्तिका सिंह के खिलाफ जालसाजी या धोखाधड़ी का कोई प्रमाण नहीं है।

अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले शीला सेबेस्टियन बनाम आर. जवाहराज का हवाला देते हुए कहा कि यदि यह साबित न हो कि दस्तावेज आरोपी द्वारा तैयार किए गए हैं, तो जालसाजी का अपराध नहीं बनता।

अदालत ने यह भी नोट किया कि जिन दस्तावेजों की बात की जा रही है, वे वर्तिका सिंह को भेजे गए और उन्होंने उन्हें जांच के लिए अधिकारियों और अन्य गणमान्य व्यक्तियों को सौंप दिया था। साथ ही सह-आरोपी से जुड़े एक मामले में जांच अधिकारी द्वारा क्लोजर रिपोर्ट भी दाखिल की जा चुकी थी।

इन तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धाराओं 419, 420, 467, 468, 471, 120-बी, 509, 34 तथा आईटी एक्ट की धारा 66/67C के तहत वर्तिका सिंह के खिलाफ चल रही पूरी आपराधिक कार्यवाही रद्द की।

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