जजों के कार्यकाल की सुरक्षा न्यायपालिका की स्वतंत्रता का हिस्सा: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा के तबादले के खिलाफ जनहित याचिका खारिज की

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट में हाल ही में किए गए स्थानांतरण को चुनौती देने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया है।
जस्टिस अताउ रहमान मसूदी और जस्टिस अजय कुमार श्रीवास्तव-I की पीठ ने कहा कि न्यायाधीश का स्थानांतरण, शपथ ग्रहण और कामकाज उसके कार्यकाल के सहवर्ती हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 217 (1) (बी) के साथ अनुच्छेद 124 (4) के तहत संरक्षित है।
पीठ ने आगे कहा कि एक बार स्थानांतरण अधिसूचना कानूनी रूप से वैध हो जाने के बाद, संबंधित मामलों को चुनौती देने का अधिकार समान रूप से सुरक्षित रहता है, बशर्ते उचित प्रक्रिया का पालन किया गया हो।
पीठ ने आगे कहा कि कार्यकाल की सुरक्षा "न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अभिन्न अंग" है, और इसलिए, इस मामले में रिट क्षेत्राधिकार का आह्वान करना, वास्तव में, कार्यकाल पर ही सवाल उठाना है, एक ऐसा मामला जिस पर संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही निर्णायक है।
इसके अलावा, इस बात पर जोर देते हुए कि मामले में हस्तक्षेप करने के लिए कोई न्यायोचित आधार प्रस्तुत नहीं किया गया है, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में चर्चा का विशेषाधिकार केवल संसद के दायरे में ही है, उससे परे नहीं।
पीठ ने 22 अप्रैल को पारित अपने आदेश में कहा,
"रिकॉर्ड में प्रस्तुत संपूर्ण सामग्री और हमारे समक्ष प्रस्तुत किए गए आधारों पर विचार करने के पश्चात, हमें कोई प्रक्रियागत अनियमितता या अवैधता नहीं दिखती, जिसके कारण जिस कार्रवाई पर आपत्ति की जा रही है, वह पीड़ित पक्ष के कहने पर भी कानून की नजर में अस्वीकार्य हो सकती है। (7) इसके अलावा, कानून के तहत उचित प्रक्रिया का पालन करने के पश्चात लिए गए ऐसे सभी निर्णय गैर-न्यायसंगत हैं, क्योंकि हाईकोर्ट के न्यायाधीश का कार्यकाल भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के साथ अनुच्छेद 217 (1) (बी) के तहत संरक्षित है।"
जस्टिस वर्मा, जो वर्तमान में अपने आधिकारिक आवासीय परिसर में अवैध नकदी रखने के आरोपों पर आंतरिक जांच का सामना कर रहे हैं, ने 5 अप्रैल को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। जस्टिस वर्मा 21 मार्च को उस समय विवाद का केंद्र बन गए, जब समाचार रिपोर्ट प्रकाशित हुई कि उनके आधिकारिक बंगले के बाहरी हिस्से में एक स्टोररूम में आग लगने के कारण नकदी की बोरियां मिलीं। अधिवक्ता विकास चतुर्वेदी द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि जस्टिस वर्मा का स्थानांतरण और प्रस्तावित शपथ संविधान का उल्लंघन है।
अधिवक्ता अशोक पांडे के माध्यम से दायर जनहित याचिका में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को न्यायाधीश यशवंत वर्मा को पद की शपथ दिलाने से रोकने का निर्देश देने की भी मांग की गई थी। हालांकि, याचिका दायर करने के कुछ दिनों बाद ही जस्टिस वर्मा ने न्यायाधीश के रूप में शपथ ले ली थी।
उल्लेखनीय है कि 22 मार्च को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने आंतरिक प्रक्रिया के तहत जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की थी।
इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने आग बुझाने का वीडियो, दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा के जवाब को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक कर दिया। जस्टिस वर्मा ने नकदी रखने से इनकार किया है और दावा किया है कि यह उनके खिलाफ साजिश है।