बलात्कार पीड़िता पर शारीरिक चोट लगने की उम्मीद करना हास्यास्पद: इलाहाबाद हाईकोर्ट
2016 में 18 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार करने वाले आरोपी को बरी करने का आदेश रद्द करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि भले ही एक महिला संभोग करने की आदी हो, फिर भी उसके साथ बलात्कार नहीं किया जा सकता।
खंडपीठ ने यह भी कहा कि यह स्वीकार करना 'हास्यास्पद' होगा कि बलात्कार पीड़िता, जिसे मानसिक, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक रूप से 'दबाया' गया, उसको उसके बयान को विश्वसनीय बनाने के लिए आंतरिक और बाहरी चोटों का सामना करना पड़ा।
इन महत्वपूर्ण टिप्पणियों के साथ जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस संदीप जैन की खंडपीठ ने आरोपी को बंदूक की नोक पर पीड़िता के साथ बलात्कार करने का दोषी पाया। बता दें कि खंडपीठ में शामिल जस्टिस जैन ने एक अलग लेकिन सहमत में निर्णय लिखा।
अपने 54-पृष्ठ के फैसले में खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों में खामियां पाईं, जिसने अभियोजन पक्ष के मामले को इस आधार पर खारिज कर दिया कि अभियुक्त और शिकायतकर्ता के बीच पहले से दुश्मनी थी, FIR अत्यधिक देरी से दर्ज की गई और 'एक्स' की मेडिकल रिपोर्ट बलात्कार के अपराध/घटना का समर्थन नहीं करती थी।
अदालत ने टिप्पणी की,
"'एक्स' का बयान दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त है, क्योंकि उसका बयान एक घायल गवाह के रूप में उच्च स्तर पर है। जब तक उसके बयान में कोई उचित संदेह नहीं उभरता, तब तक ट्रायल कोर्ट अपीलकर्ता के अपराध के अलावा किसी अन्य निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता था।"
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, 11 सितंबर, 2016 को पीड़िता 'एक्स' अपने मंगेतर 'एस' और छोटे भाई 'आर' के साथ अपने अपार्टमेंट में थी, जब अभियुक्त जबरन एक बन्दूक के साथ घुस आया। उसने 'एक्स' और 'एस' को कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया और उन्हें नग्न अवस्था में फिल्माया। उसके बाद 'एस' को कपड़े पहनाकर आवास से बाहर जाने के लिए मजबूर किया। फिर 'एक्स' के साथ उसके विरोध के बावजूद बलात्कार किया गया।
इसके बाद आरोपी ने धमकी दी कि अगर वह उसके साथ नहीं गई तो वह उसे तीसरी मंजिल से धक्का दे देगा। उसके कहने पर वह आरोपी के साथ चली गई और उसे एक अलग जगह ले जाया गया, जहां उसे बेसुध हालत में छोड़ दिया गया। वह अंततः घर लौटी और अपने परिवार को घटना के बारे में बताया।
आरोपी को बरी किए जाने के खिलाफ सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि घटना का वर्णन FIR दर्ज होने के चरण से लेकर CrPC की धारा 161 के तहत बयान और CrPC की धारा 164 के तहत बयानों और यहां तक कि मुकदमे के चरण तक एक जैसा रहा।
न्यायालय ने आगे कहा कि मुकदमे के दौरान पीड़िता से कई तिथियों पर गहन क्रॉस एक्जामिनेशन की गई, जहां उसकी गवाही अटल रही और उसके बयानों में मौजूद छोटी-मोटी विसंगतियां ऐसी प्रकृति की नहीं थीं, जिन्हें नजरअंदाज न किया जा सके।
पक्षकारों के बीच मौजूदा विवाद के बारे में ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष के बारे में न्यायालय ने कहा कि यह अभियोजन पक्ष की कहानी को बदनाम करने का एकमात्र कारण नहीं हो सकता, जो अन्यथा विधिवत साबित हो चुका है।
न्यायालय ने कहा,
"झगड़े की प्रकृति न तो निर्दिष्ट की गई और न ही ऐसा दिखाया गया, जिससे 'एक्स' और उसके परिवार के सदस्यों को अपीलकर्ता के खिलाफ झूठा आरोप लगाने के लिए उकसाया जा सके। न तो झगड़े की प्रकृति और न ही इसकी तारीख और समय साबित हुआ। आरोपी के खिलाफ दर्ज FIR बलात्कार के जघन्य अपराध की है। अभियोजन पक्ष की कहानी के समर्थन में 'एक्स' द्वारा पेश किए गए प्रत्यक्ष साक्ष्य और अन्य सामग्री दोनों के आधार पर साक्ष्य मौजूद हैं।"
पीड़िता के शरीर पर चोटों के अभाव के बारे में न्यायालय ने कहा कि एक बार यह साबित हो जाने के बाद कि उसे इस हद तक दबाया गया या वश में किया गया कि उसका प्रतिरोध टूट गया या नकार दिया गया, चोट के माध्यम से घटना के सबूत की आवश्यकता नहीं थी।
खंडपीठ ने कहा कि 'एक्स' के निजी अंगों पर चोट की अनुपस्थिति, योनि स्मीयर में शुक्राणुओं की अनुपस्थिति अभियोजन पक्ष के मामले को संदिग्ध नहीं बनाती है और भले ही 'एक्स' संभोग करने की आदी थी, तब भी उसके साथ बलात्कार नहीं हो सकता था।
खंडपीठ ने कहा,
"अभियोजन पक्ष ने यह साबित करने के लिए सबूत पेश किए कि प्रतिरोध को बेअसर कर दिया गया, यह साबित करके कि 'आर', जो 'एक्स' का छोटा भाई है, जिसकी उम्र लगभग 12 साल है, पर हमला किया गया और 'एक्स' को नग्न अवस्था में फिल्माए जाने से पहले उसे 'अपार्टमेंट' से बाहर निकाल दिया गया। उसके बाद 'एक्स' पर बलात्कार किए जाने से पहले उसके मंगेतर 'एस' को बंदूक की धमकी के तहत 'अपार्टमेंट' से बाहर निकाल दिया गया। एक बार जब पीड़िता, जो 18 साल की है, उसको इस तरह से मानसिक, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक रूप से वश में कर लिया गया और उस पर काबू पा लिया गया तो यह दलील स्वीकार करना कि उसे आंतरिक और बाहरी चोटें लगी हुई दिखाई जानी चाहिए, हास्यास्पद होगा।"
इस पृष्ठभूमि में तथा बलात्कार पीड़िता की अडिग गवाही पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने बरी करने के आदेश को पलट दिया तथा आरोपी को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376, 452 तथा 506 के तहत अपराध का दोषी पाया तथा उसे 7 वर्ष कारावास की सजा सुनाई (जो कि IPC की धारा 376 के लिए न्यूनतम सजा है, जैसा कि 2016 में प्रावधान था)।
हालांकि, यह देखते हुए कि आरोपी 6 वर्ष 9 महीने तथा 11 दिन (वास्तविक) तक कारावास में रहा है, न्यायालय ने जेल अधीक्षक, जिला जेल, इटावा (यूपी) को निर्देश दिया कि वह छूट के साथ पहले से काटी गई सजा की गणना करें तथा 30 दिनों के भीतर ट्रायल कोर्ट के माध्यम से आरोपी को सूचित करें। वर्तमान में जमानत पर चल रहे आरोपी को 30 जुलाई तक आत्मसमर्पण करने को कहा गया, यदि कोई सजा बची हुई है।
केस टाइटल- यू.पी. राज्य बनाम पुष्पेंद्र उर्फ गब्बर पुत्र ब्रह्मदत्त 2025 लाइव लॉ (एबी) 160