जमानत पर रिहा हुए आरोपी को मौज-मस्ती के लिए या रिश्तेदार की शादी में शामिल होने के लिए विदेश यात्रा करने का कोई अंतर्निहित अधिकार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जमानत पर रिहा हुए आरोपी को केवल रिश्तेदार की शादी में शामिल होने और मौज-मस्ती करने के लिए विदेश यात्रा करने के अधिकार के रूप में अनुमति नहीं मिल सकती।
जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि आरोपी को गैर-जरूरी उद्देश्यों के लिए विदेश यात्रा करने का स्वत: अधिकार नहीं मिल सकता, क्योंकि उसे पहले ऐसी अनुमति दी गई थी।
पीठ ने टिप्पणी की,
"जमानत पर रिहा हुए आरोपी को चिकित्सा उपचार, आवश्यक आधिकारिक कर्तव्यों में शामिल होने आदि जैसी कुछ जरूरी जरूरतों के लिए विदेश यात्रा करने की अनुमति दी जा सकती है। विदेश में रिश्तेदार की शादी और दूसरे देश की मौज-मस्ती के लिए विदेश यात्रा करना विचाराधीन आरोपी के लिए बिल्कुल भी जरूरी उद्देश्य नहीं है।"
इसके साथ ही एकल जज ने आदित्य मूर्ति नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी, जिस पर भारतीय दंड संहिता (IPC) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था। उसने लखनऊ के स्पेशल सीबीआई जज के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे विदेश यात्रा करने की अनुमति नहीं दी गई।
आरोपी मूर्ति ने अपने पिता की बहन के पोते (पर-भतीजे) की शादी में शामिल होने के लिए अमेरिका जाने की अनुमति मांगी थी। बाद में भारत लौटने से पहले पेरिस और फ्रांस के नीस शहर की यात्रा करना चाहता था।
निचली अदालत ने उसकी याचिका अस्वीकार करते हुए अपने आदेश में कहा कि आरोपी के खिलाफ मामले की प्रगति की निगरानी हाईकोर्ट के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी की जा रही है। ऐसी परिस्थितियों में यदि उसे विदेश यात्रा करने की अनुमति दी जाती है तो इससे मामले के निपटारे में अनावश्यक देरी हो सकती है।
हाईकोर्ट के समक्ष उसके वकील ने तर्क दिया कि आवेदक के मुकदमे का सामना करने के लिए वापस न आने की कोई संभावना नहीं है। यह मुकदमा पिछले 15 वर्षों से चल रहा है और आवेदक की मात्र 22 दिनों की अनुपस्थिति से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा।
यह भी तर्क दिया गया कि आवेदक को विदेश यात्रा करने का मौलिक अधिकार है। पहले भी कई मौकों पर उसे ऐसी यात्रा करने की अनुमति दी गई थी।
आरोपी के वकील की बात सुनने के बाद पीठ ने शुरू में ही यह नोट किया कि आवेदक के खिलाफ कार्यवाही CBI द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के आधार पर शुरू की गई। ट्रायल कोर्ट, जो बचाव पक्ष के साक्ष्य के चरण में पहुंच चुका है, उसने उस पर IPC की धारा 120-बी के साथ IPC की धारा 420 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा धारा 13(2) के साथ 13(1) (डी) के तहत अपराध करने का आरोप लगाया।
अदालत ने आगे जितेंद्र बनाम यूपी राज्य 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि एक व्यक्ति जिसे अदालत द्वारा लगाई गई शर्तों के अधीन गिरफ्तार किया गया और जमानत पर रिहा किया गया, वह अदालत द्वारा जारी किए गए निर्देशों के अधीन रहता है और उसे अदालत की रचनात्मक हिरासत में माना जाएगा।
पीठ ने टिप्पणी की,
"इसलिए आवेदक को एक स्वतंत्र व्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता का आनंद नहीं मिलता। उसकी स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, जिसमें देश से बाहर जाने पर प्रतिबंध भी शामिल है।"
इस पृष्ठभूमि में एकल जज ने कहा कि जब मुकदमा बचाव पक्ष के साक्ष्य के चरण में पहुंच गया तो आवेदक को अपने रिश्तेदार की शादी में शामिल होने के लिए यूएसए और पारिवारिक आनंद यात्रा का आनंद लेने के लिए फ्रांस जाने का अधिकार नहीं है।
इसके साथ ही उसका आवेदन खारिज कर दिया गया।
केस टाइटल- आदित्य मूर्ति बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो/भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो एलकेओ 2025 लाइव लॉ (एबी) 159